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________________ ३ दिसम्बर सन् १९८८ की प्रभात वेला! मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी एवं मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. ने महाराष्ट्र की सीमा में मंगल प्रवेश किया। उस समय सुबह-सुबह का वातावरण अत्यन्त सुरम्य था। मुनिद्वय द्रुतगति से विहार करते हुए धुलिया मालेगांव होते हुए नासिक पहुँचे। नासिक का बडा कटु अनुभव रहा। यहाँ गच्छवाद बहुत मजबुत है। गच्छीय मुनि भगवन्तो के अलावा अन्य गच्छ के मुनि भगवन्त यदि यहाँ आते है तो उनके लिये ठहरने, गोचरी पानी आदि की समस्या बनी रहती है, यहाँ तक कि जैन श्रावक भी जानते हुए भी अनजान बने रहते है। इसलिये गच्छीय मुनि भगवन्तों को इस बारे में सोचकर उचित कदम उठाना चाहिये। हो सकता है, भविष्य में अन्य स्थानों पर उनके साथ भी यही व्यवहार हो जाये। पुज्य मुनिराज श्री महाराष्ट्र प्रदेश के फैले सह्याद्रि के विषम मार्गों से विहार करते हुए वासिंद पहुँचे यहाँ कल्याण श्री संघ एवं मोहना श्री संघ के श्रावक दर्शनार्थ आये। और आगे के कार्यक्रम के बारे में विस्तृत चर्चा की। मगसर सुदी पुर्णिमा की शुभ सुबह वेला में कल्याणनगर प्रवेश हेतू महाजन वाडी पहुँचे। महाजन वाडी में परम्परानुसार मुनिद्वय का सामैया कल्याण श्री संघ की तरफ से गाजे बाजे के साथ हुआ। कल्याण नगर के विभिन्न मार्गों से होकर अन्य जिन मंदिर के दर्शन वन्दन के पश्चात् स्टेशन रोड स्थित प्रताप हाल में पधारें। प्रताप हाल में मंगलाचरण के पश्चात मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी ने ओजपूर्ण वाणी में जिन सुत्रो के आधार पर अमृतमय प्रवचन दिये। प्रवचन श्रवण कर श्रोता गण मंत्रमुग्ध हो गये। मुनि भगवन्तों के कल्याण पधारने का यह पहला अवसर था। स्वामीभक्ति और प्रभावना का लाभ शा जुहारमलजी छोगमलजी ने लिया। यहाँ पर स्थिरता के पश्चात मुनिद्वय ने २७ दिसम्बर १९८८ को प्रात: ७ बजे अपने गंतव्य की ओर विहार प्रारंभ किया और ठीक साढे नौ बजे मोहना गाँव में प्रवेश किया जिन शासनदेव और मुनि भगवन्तों की जय जयकार से गगन मंडल गुंजायमान हो उठा। मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी के दीप्त मुखमंडल पर संतोष की आभा जगमगा रही थी। एक संतोष था, इसलिये कि अपनी समय सीमा में गंतव्य स्थान इन्दापुर (तलाशेत) पहँचना। और सर्वाधिक संतोष इसलिये भी था कि मोहना नगर के श्रावकों में संकीर्णता न होकर सौहार्द्र का भाव था। एक उत्साह था। आनन्द व हर्षोल्लास का वातावरण था। कोंकण क्षेत्र में विहार करने का मुनिद्वय का एक हेतु था, एक उद्देश्य था, कि समाज में व्याप्त भेदभाव व संकीर्णता को दूर कर समानता और सौहार्द्र का वातावरण निर्माण करना ताकि भविष्य में सुखमय और आनन्ददायक वातावरण में मुनि भगवन्तों का विचरण हो। मोहना नगरमें इस दृष्टि से मात्र प्रोत्साहन की आवश्यकता थी। उपयुक्त भूमिका तैयार थी। मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी ने मोहना के जनसमुदाय को उद्बोधित किया। उन्होने सकल समाज को जिन शासन के उत्तरोतर विकास, समृद्धि और उन्नति के लिये संप्रेरित किया। नूतन इसवी वर्ष सन १९८९. १ जनवरी की प्रभात वेला में मोहना नगरजनों को एक विचित्र अनुभव हुआ। भुवन भास्कर की कोमल किरणों को धरती पर उतरते देखकर नगरजनों को ऐसा आभास हुआ मानो प्रभादेवी वास्तविक ज्ञानी, सिद्ध पुरुष और साधु-संत तो सब कुछ का त्याग कर कल्याण मार्ग पर ही विचरण करते रहते हैं। ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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