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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्ध - इतिहास - वर्णन करने वाला यह एक सुंदर काव्य है। इसके अतिरिक्त का शिलालेख है, पुलकेशी द्वितीय के संदर्भ में। अकलंक इन्हीं मरोल (१०२४ ई.) अरसिबिदि में प्राप्त आलेख भी महत्त्वपूर्ण रविकीर्ति के शिष्य थे। वादामी का मेगण वसदि और लक्कुडि है। अक्कादेवी, जयसिंह द्वितीय की बहिन ने जैनधर्म का अच्छा का ब्रह्मजिनालय और पट्टदकल की जैनवसदि कला की दृष्टि से प्रसार किया। होनवाड व हुंगुण्ड जैनसंस्कृति के गढ़ थे। बड़े महत्त्वपूर्ण हैं, जहां मध्यकालीन गुफाएँ और जैनमंदिर हैं। बेलगाँव क्षेत्र प्राचीन काल में कुण्डी या कहन्डी मण्डल रायपुर जिले में हम्पी का गानिगिति मंदिर बड़ा प्रसिद्ध है। कहा जाता था जो शिलाहार और रट्ट परिवारों के अधिकार में हम्पी के महल-क्षेत्र के आसपास खुदाई की गई थी, जिससे दो था। कोन्नुर हलसी (खानपुर) और सौनदत्ती अच्छे जैन-केन्द्र जैनमंदिर प्रकाश में आए हैं। वैसे यहाँ काफी मंदिर हैं। पान थे। गोक्का प्लेट देज्जा महाराज के दान का उल्लेख करता है सुपारी जैन मंदिर में एक संस्कृत शिलालेख मिला है। जिसके आर्हत पूजा के लिए। यहाँ के किले में जैन-पुरातत्त्व दर्शनीय है। अनुसार देवराज द्वितीय ने सं. १४२६ में पार्श्वनाथ चैत्यालय यहाँ १०८ जैनमंदिर रहे हैं। कमलवसदि दर्शनीय है। बनवाया था। बल्लादी जिले में हरपनहल्ली की होस-वसदि में ___ अदूर में दो शिलालेख मिले हैं, जो जैनमंदिर के लिए कलात्मक नाग प्रतीक दर्शनीय है। यहाँ का उज्जिम जैन-मंदिर भूमिदान का उल्लेख करते हैं। नारायण-मंदिर के दो शिलालेख शैवों के अधिकार में है। हुवली का अनन्तवसदि मंदिर कलात्मक जैनों के हैं। मूलगुण्ड और लक्कुण्डि उत्तम जैनकेन्द्र थे। है, जहाँ दसवीं शती की धरणेन्द्र पद्मावती के साथ तीर्थंकर पार्श्वनाथ की सुंदर प्रतिमा कला सुरक्षित है। उत्तर कन्नड जिले में १५ से १७ वीं शती तक का जैन पुरातत्त्व मिलता है। दक्षिण कन्नड जिला तो और भी समृद्ध है धारवाड के लक्ष्मेश्वर नगर में ५३ शिलालेख हैं, जिनमें इस दिशा में। बेल्लरी जिले में गुफा-जैन-मंदिर है, जिसमें बहुत इस नगर के अनेक नाम मिलते हैं। यहाँ के शंख वसदि मंदिर में सारी मूर्तियाँ रखी हुई हैं। कोगाली जैन शिलालेख (१० वीं शती) प्राप्त ७०० ई. के शिलालेख के अनुसार अकलंक परंपरा के है नन्दि बेवरू मन्नेरा मसलेलाद कुदतनी आदि स्थान ऐसे हैं, जो पंडित उदयदेव चालुक्य राजा विजयादित्य द्वितीय के राजगुरु जैनकेन्द्र माने जाते हैं। थे। महाकवि पम्प का आदिपुराण इसी मंदिर में लिखा गया था। यहीं के अनन्तनाथ वसदि में पद्मावती और सरस्वती की सुंदर वस्तुत: कर्नाटक का चप्पा-चप्पा जैन-संस्कृति का परिचय मूर्तियाँ है। लक्ष्मेश्वर के समीपवर्ती बंकापुर में गुणभद्राचार्य ने देता है। यहाँ सभी स्थानों के पुरातत्त्व के विषय में लिखना अपना उत्तर पुराण पूरा किया था। यहाँ के कुछ जैनमंदिर आज संभव नहीं है। पर कतिपय महत्त्वपूर्ण स्थलों का उल्लेख करना मस्जिदों के रूप में विद्यमान हैं। कोटमचगी का पार्श्वनाथ मंदिर अत्यावश्यक है। उदाहरणत: बीदर जिले का मलखंड राष्ट्रकूट नरेडिल का नारायण मंदिर, बंदरसिंगी की आदिनाथ प्रतिमा, राजाओं का प्राचीन मान्यखेटनगर है, जो अमोघवर्ष के समय कलस्नयु का जैन वसदि, आरट्टकाल का पार्श्वनाथ वसदि,गुडिगेरी जैन-संस्कृति का महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गया था। लगभग २०० का महावीर वसदि, हवेरी का मुद्ददु माणिक्य वसदि, अम्मिनवाबी वर्षों तक यह नगर जैनकेन्द्र बना रहा है। यहाँ सोमदेव, पुष्पदन्त का पार्श्वनाथ वसदि आदि मंदिरों का पुरातत्त्व भी अत्यन्त जैसे मूर्धन्य आचायों ने साहित्य सृजन किया। यहाँ नेमिनाथ महत्त्वपूर्ण है। वसति नाम का लगभग ८वीं शताब्दी का एक जैनमंदिर है। कारथीड जिले का उत्तर कनाड़ा भाग कभी वनवासी बीजापुर का विशाल जैनमंदिर १५वीं शताब्दी में मस्जिद प्रदेश कहा जाता था। पुष्पदंत भूतबलि द्वारा की गई षटखण्डागम के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। यहाँ पार्श्वनाथ मंदिर कुछ की रचना का श्रेय इसी प्रदेश को जाता है। ग्रेल्सोप्पा में समय पहले जमीन से निकाला गया है। यहाँ की करामुद्दीन ज्वालामालिनी की मूर्ति, हाडुवल्ली में त्रिकाल चौबीसी की मस्जिद भी मूलत: जैनमंदिर ही है। इसी जिले में ऐहोल एक कांस्यमूर्ति, गुंडबल की पार्श्वनाथ की मूर्ति विशेष उल्लेखनीय गाँव है, जो किसी समय चालुक्य की राजधानी रहा है। यहाँ के हैं। हमचा का इतिहास लगभग १५०० वर्ष पुराना है। इसे अतिशय म मेगटी मंदिर में जैनाचार्य रविकीर्ति द्वारा लिखित सन् ६३४ ई. क्षेत्र कहा जाता है। यहाँ २२ शिलालेख हैं, जिनमें सान्तर राजवंश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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