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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासगए तालाब आज भी जनता के उपयोग में आ रहे हैं। वीर शैवों शिलप्पधिकारं (पहली, दूसरी शती) के रचयिता इलंगोवडिगल द्वारा नष्ट किए जाने के बावजूद जैनधर्म आन्ध्र में जीवित रहा, चेरनाडु के युवराज थे। शिलप्पधिकारं के गंभीर अध्ययन से यह उसके लोकमांगलिक कार्यों का ही फल कहा जाना चाहिए। पता चलता है कि इलंगोवडिगल पक्के जैन थे। केरल के जैनधर्म को समाप्त करने में शंकराचार्य का विशेष हाथ रहा है। केरल पुरातत्त्व विभाग यदि प्राचीन स्थलों की खुदाई करे और वैदिक केरल में जैनधर्म कर्नाटक या तमिलनाडु से गया होगा। मंदिरों और मस्जिदों की गहराई से छानबीन करे तो जैनधर्म के वह यहाँ ई.पू. तृतीयचतुर्थ शताब्दी तक तो पहुँच ही गया था। इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ सकता है। अन्य प्रदेशीकी तरह यहाँ भी जैनधर्म अच्छी स्थिति में रहा है पर मसलमानों ने भी जैनों पर कम अत्याचार नहीं किए। अनेक कारणों से उसका सम्यक् अध्ययन नहीं हो पाया। कभी अत्याचारों के कारण ही जैन परिवर्तित होकर शैव, वैष्णव और जैन-स्थानों को बौद्ध बता दिया गया तो कभी वैदिक बना लिया मुस्लिम बन गए। 'जैन अल्लाउदीन' जैसे नाम यह तथ्य प्रस्तुत गया, कभी उन्हें नष्ट कर दिया गया तो कभी मस्जिदों के रूप में करते हैं कि परिवर्तित जैन-समुदाय आज भी जैनधर्म को अपने परिवर्तित कर दिया गया। कुणवसिस कोट्टम का प्रसिद्ध जैनमंदिर में समाए हुए है। हैदरअली की विनाशलीला का शिकार बन गया। टीपू सुल्तान ने भी ऐसे ही घृणात्मक कार्य किए हैं। दसों जैन-मंदिरों ने कर्नाटक मस्जिदों का रूप ले लिया। दक्षिण भारत में जैनधर्म के प्रचार प्रसार में ई.पू. चतुर्थ वर्तमान तमिलनाडु के दो जैनस्थल चित्रल और शती के अंतिम चरण के आसपास श्रुतकेवली भद्रबाहु और नागरकोविल प्राचीन त्रावनकोर के भाग थे। अब कोचीन और चन्द्रगुप्त के आगमन से तेजी अधिक आई। श्रीलंका में तो मलाबार को मिलाकर केरल राज्य बना दिया गया। यहाँ प्राकृतिक जैनधर्म इसके पूर्व था ही। भद्रबाहु-संघ का प्रवेश कर्नाटक में गुहामंदिर मिलते हैं, जिन्हें समाधि-स्थल का रूप दे दिया गया कदाचित्, उत्तर भारत के मालवा क्षेत्र से हुआ होगा। कर्नाटक -मूनिमडा कहकर या फिर नए मंदिर बना लिए गए। अरियन्नूर से ही फिर जैन धर्म तमिल क्षेत्र में पहुंचा होगा। श्रवणवेलगोल कदाचित् प्राचीनतम स्थल है, जहाँ पर्वत को काटकर समाधि के शिलालेखों से इस परंपरा की पुष्टि होती है। चालुक्य, के योग्य स्थान बनाया गया था। राष्ट्रकूट, गंग आदि वंशों ने जैन धर्म का राज्याश्रय और उसका इसी तरह कल्लिल का गुहा मंदिर है, जिसमें महावीर, अच्छा प्रसार-प्रसार किया। सारा प्रदेश जैनमय सा हो गया। यहाँ पार्श्वनाथ और पद्मावती की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। महावीर की की कुरुम्बर जाति मूलतः जैन थी जो सारे दक्षिण में फैली थी। मूर्ति अपरिपूर्ण है। लोगों की धारणा है कि देवगण उसे पूरा करने मद्रास के पास पुलाल में उसका प्रथम शती ई.पू. का आदिनाथ आते रहते हैं। महावीर मूर्ति गुफा की पृष्ठभाग की दीवार पर खुदी का एक भव्य मंदिर है। ऐसे ही अनेक उदाहरण मिलते हैं। का एक है, सिंहासन में बीच में सिंहलांछन है, ऊपर त्रिछत्र है. चारों के चामुंडराय, इरगप्पन तथा हुल्लर जैसे अमात्यों और राजाओं ने साथ गंधर्व है, दायीं ओर पद्मावती है, और बायीं ओर पार्श्वनाथ o कर्नाटक में जैन-पुरातत्व को काफी समृद्ध कर दिया है। मूर्ति है। इसका समय लगभग आठवीं शती होना चाहिए। पर डॉ. राजमल जैन इसे और भी प्राचीन मानना चाहते हैं। वायनाड जिले के सुल्तान बत्तारी में एक ध्वस्त जैन मंदिर ऐहोल (बीजापुर) में मेगुटिनाक जिनालय में सुरक्षित यह देखा जा सकता है, जहाँ के स्तम्भों पर बडी संदर सर्पाकृतियाँ शिलालेख शक सं.५६१ (६३४ ई.) का है, जिसे कवि रविकीर्ति उकेरी गई है। ये आकतियाँ आज भी देखी जा सकती हैं। ने बड़ी प्रांजल संस्कृत भाषा में कन्नड़ लिपि में लिखा। इसमें प्राचीनकाल में केरल में जैनधर्म काफी लोकप्रिय था। केरल चालुक्यवंश की कीर्ति का वर्णन करते हुए सत्याभय पुलकेशि को, उस समय चेरनाडू कहा जाता था। तमिल महाकाव्य की जैनयात्रा और जिनमंदिर निर्माण का वर्णन है। दिग्विजय का an d idrohidibidroidrotonianbrdinidroid१२३Hamiraramiridwordridridoravarsamirmiriamirritories मैसूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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