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________________ प्राचार्य जिनविजयजी ] श्री कनयालाल मुनशीग्रे भारतीय विद्या भवननी मुबइमा स्थापना करी त्यारे तेनु संचालन करवा तेमणे प्राचार्य श्री जिनविजयजी ने निमंत्री तेमने संस्थारा डिरेक्टर पदे स्थाप्या। आचार्यश्री पोतानो अमूल्य ग्रंथभंडार या संस्थाने समृद्ध बनावया समर्पित कर्यो। सिंघी जैन ग्रथमालानु सम्पादन-प्रकाशन परण असस्था द्वाराज कयु उपरान्त "भारतीय विद्या" नामनु त्रैमासिक परण संपादित करवा मांड्य । स्वराज्य प्राप्त थया पछी प्रेमना वतन राजस्थाने प्रेमने अपनाब्या। अमनी प्रौढ विद्वान-संशोधकसंपादक तरीके रूढ़ थयेली प्रतिष्ठाथी अाकर्षाइ राजस्थान सरकारे अंमना अध्यक्षपद नीचे राजस्थान पुरातत्त्व मंदिरनी स्थापना करी । अमां मणे लगभग लाख जेटली संख्या मां हस्तलिखित प्रतिप्रोनो भंडार को छ । अनी ग्रथावली मां संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश राजस्थानी आदि भाषामो मां लखायेलु विविध विषयोनु साहित्य लगभग ६० ग्रथोमा प्रकाशित थय छ । हजू पण तेश्रो संस्थानु सुकान संभाले छे । हु आशा राखु छु के राजस्थान सरकार अमने जोइ तेवी अनुकूलता करी पापी राजस्थान पुरातत्त्व मदिरनू संचालन तेमना हस्तक ज राखशे । प्राचार्य हरिभद्रनु चित्तौडगढ मां उचित स्मारक करवानो तेमनो उत्साह हजु ऊभोज छ । राजस्थान सरकार अंमने में महान कार्यमा सहकार प्रापशे मेवी आशा राखवी वधारे पडती न गणाय । भारत सरकारे अमने 'पद्मश्री' बनावी कंइक कदर करी छ। असंतोष ग्रेटलोज छे के प्राच्यविद्याना संशोधन मां पाटलु विपुल अने समर्थ काम करनारनी पाटलीज कदर !. (५) प्राचार्य जिनविजयजीन व्यक्तित्व अमना परिचयमां ग्रावेला सौ कोइना चित्त ऊपर मुद्रित थाय अंबछे। अंमनी ऊची, पातली पण भव्य प्राकृति, मोटा पगला भरती अमनी चाल, काला चश्मा थी अंकित अंमनी प्रभावशाली मुख मुद्रा, प्रेमनी अस्खलित वाणी-सौभ्यभावे सस्मित अने रोषाविष्ट होय त्यारे उग्र-या बधु अमना व्यक्तित्वने अकित करे छ। गुजरात-राजस्थानना या विद्यामूर्ति युवान विद्वान संगोधकोने चिरकाल मार्गदर्शन करावे श्रेवी अभिलाषा अंमनो या कृपापात्र अतेवासी जे वो पा प्रपंगे मेवे छे । मेमनी जे छबि मारा मनमा रही छे ते “विद्याभेखी जिन पटविटी क्षात्रसत्वा विद्या मूर्ति" नी छे । अवानो प्रेम प्राप्त थवा थी हु मारी जातने धन्य गणु छु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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