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________________ मुनिजीनां वे एक स्मरणो परम आदर पात्र मुनिजीनी साथे मारो प्रथम परिचय घरणे भागे सद्गत करूरणाशंकरना सानिध्यम थयो हशे एम स्मरण छे । करुणाशंकर तेमने महाराज कहीने उल्लेखता तेश्रो श्रीना पूर्व जीवननी तेमज तेमना स्वाध्याय वगेरेनी बातो कोई कोई बार मारो ते सांभलवानो अधिकार नहि होवा छतां पर तेस्रो करता आ रीते परोक्षभावे तेमनी प्रतिभानां दर्शन थयेलां । पछी तो शान्ति निकेतनमा प्रत्यक्ष रीते मुनिजीने मलवानुं धतु कोई कोई वार बातो पण थती, अलबत अभ्यास विषयक ज्यारे ज्यारे तेस्रो मलता त्यारे त्यारे ऐक माताना जेवा हु फाला स्नेहथी मारा जेवा बालकने बोलावता, कोई कोई बार तेश्रो श्रीनी प्रांखामाथी प्रभाव पण भरतो | कदाच श्रा मारी अंगत समज के लागरणी होई शके छे । " ते समये (इ०स० १९३१-३४) जैन दर्शनने माटे रवीन्द्रनाथे विद्याभवन (अनुस्नातक संस्था ) मां स्थान श्रायेलु ं परिणामे विद्यार्थी अभ्यासी त्यां रहेता । मारी पडखे तेवा बे अभ्यासी प्रो रहेता । दलसुखभाई मालवरिया ने शांतिलाल वनमालीदास शेठ मुनिजी ज्यां रहेता त्याँ एक नानकडु रसोढुं परण चालतु तेनी व्यवस्था एक बहेन करतां । सोनुबहेन पू० नंदलाल बसुना कला भवनमां कलानो अभ्यास करतां, जयंतीलाल झवेरी परण फोटोग्राफी तेमज चित्रो करता । मुनिजी नी साथे बोजा वे एक छोकाराश्रो पण रहेता । श्रा तेश्रोश्रीनो एक नानकडो परिवार हतो । मुनिजी तो पोताना संशोधनना कार्यमांज प्रवृत्त रहेता ; एटले कोई कोई बार सवारे के सांजे अथवा गुरुदेव कांई वांचवाना होय त्यारे तेमना क्षणिक दर्शन थतां । गुरुदेव तेमना प्रत्ये प्रादरथी जोता अने वर्त्तता, एव ं स्मरण छे । तेस्रो एक जैन सुधारक साधु छे, एटले शुष्कताना साधक हशे, कायक्लेश भावनानुं पालन करता शे एवी एक भ्रांति हती ग्रे भ्रांति तूटी गई एक प्रसंगे । दूर दूर गामथी प्रावेला एक वृद्ध दाढ़ीवाला सतारना बजवयाने बजावता तेमने त्यां जोया । मुनिजीने संगीतविद्यामां तल्लीन दीठा । ते प्रो संगीतना अनुरागी छे, ते त्यारे समजायु ं । ए वृद्ध बजर्वया सतार पर विशिष्ट काबु धरावता जाणे वीरणा न वागी रही होय एवो ख्याल प्रावतो । कदाच गुरुदेव पण तेमने सांभलता । हजु परण तेमनी प्रकृति मारा मनमां स्पष्ट छे । मारा मित्र भाई कृष्णलाले एक वृद्ध संगीतकारनु केटलु चित्र जीयुं त्यारे हु प्राश्चर्य पामी गयो के तेम एक वृद्धनुज जाणे आलेखन न क होय । मुनिजीना जीवनना या एक पासानी मारे माटे उपलब्धि हती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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