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[ ले० रसिकलाल छो. परीख
तथा प्रशस्तिोमा सांस्कृतिक इतिहासनी केवी सामग्री भरी छे तेनो ख्याल अाव्यो। अमांथी मने इतिहास संशोधननो-खासकरीने गुजरातना इतिहासनो रस थयो ।
संस्थानो स्थापवाना प्रेमना उत्साहनो बीजो लाभ भारतीय जैन विद्यालय (पूना) ने मल्यो । संशोधन वत्तिने 'जैन साहित्य संशोधक' त्रैमासिक संपादित कराव्यू । आज अरसामां महात्मा गांधी ने गुजरात विद्यापीठनी स्थापना करी हती । तेमां सस्कृत-पाली- प्राकृतना साहित्यना तेमज प्रार्य संस्कृतिना अभ्यास ने महत्त्वनु स्थान मल्यु हतु। ते अगे अक अलग विभाग गुजरात विद्यापीठ मां करवानो अने भा. ग. इ. जेवी संस्था बनाववानो श्री काका साहेब कालेलकर, श्री इन्दुलाल याज्ञिक, श्री रामनारायण पाठक आदि न विचार थयो हतो। तेन संचालन करवा गांधीजीग्रे प्राचार्य जिन विजयजी ने पूनाथी नहीं बोलाव्या । प्रही प्रावी तेमने गुजरात पुरातत्त्व मंदिरनु नाम करण करी ते संस्थान वर्षों सूधी संचालन कई अने मां श्रीमद् राजचन्द्र ज्ञान भंडार ने संगृहीत कर्यो, जेमां ते समये प्राप्य संस्कृत प्राकृत, पाली प्रादि साहित्यना ग्रंथो तेमज संशोधन विषयक अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, हिन्दी, बंगाली, गुजराती, पुस्तको जर्नलो आदि अमूल्य संशोधन सामग्री अकत्रित थई हती। प्रेमा पं. सुखलालजी. पं. धर्मानन्द कोसंबी, पं. बेचरदास, मौलाना अबुझफर नदवी, श्री रामनारायण पाठक आदि समर्थ विद्वानो अध्यापन-संशोधननु कार्य करता हता। पा संस्था द्वारा तेमणे पुरातत्त्वमदिर ग्रंथावलीनु सम्पादन प्रारभ्यु अने 'पुरातत्त्व' त्रैमासिक पण चलावराव्यु।
प्राचार्य जिनविजयजी जन्मे रजपूत छे। तेनो क्षात्र स्वभाव तेमना परिचयनां आवेला बधा जारणे छ । अंक प्रसंगे पूनांथी मुबइ जवा पूनाना स्टेशने तेयो अंदर जवाना दरवाजा आगलना टोलानी पाछल ऊभा हता तेमनी पाछल हैं ऊभो हतो। दरवाजा आगलनो टिकिट चेकर अनी मरजी मुजब मुसाफरोने दाखल करतो हतो; अने बीजाप्रोने धक्का मारी पाछल राखतो हनो। अमां बेणे अंक बाइने छाती उपर धक्को मारी पाछी काढ़ी। मुनिजी पा जोयु अने तरतज पागल धसी टिकिट चेकर ने पकड्यो अने धमधम व्यो, अने ग्रेने नरम बनावी दीधो।
प्रा ज प्रकृतिना बले ज्यारे गांधीजी मीठानी लडत उपाडी प्रने बिरम गाममां स्त्रीग्रो उपर ते समयना हिंदी अमलदारोग्रे घोड़ा दोडाव्या त्यारे तेमनो जीव ऊली उठ्यो अने लडतमा जोडाइ जेलवास स्वीकार्यो।
अाज माहसिक प्रकृति तेमने जर्मनी मोकल्या अने त्यां जर्मन विद्वानोनुमान पाम्या । पररा ते वखते हिंदीग्रोने त्यां रहेवा-जमवानी अगवड जोइ तेमणे 'हिन्दुस्तान हाउस' नामनी संस्था स्थापी ।
जर्मनी थी पाछा प्रावी तेश्रो शांति निकेतनमा जोडाया। अज अरसा मां तेमणे कलकत्ताना श्रीमंत शेठ बहादुरसिंह जी सिंघीना उदारदान थी सुप्रसिद्ध 'सिंघी जैन ग्रन्थमालाना संपादनन कार्य प्रारंभ्यू । आ ग्रंथमाला भारतनी प्राच्य ग्रंथमालाग्रो मां ग्रेनु विशिष्ट स्थान धरावे छे । तेमां ५० उपरांत विविध विषयना दुर्लभ ग्रेवा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश भाषाप्रोमा लखायेला ग्रथो प्रसिद्ध थया छ।
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