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________________ प्राचार्य जिनविजयजी विद्यामूर्ति प्रकट सुखमां श त गंभीर जोइ । विद्याभेखी जिन पट विटी क्षात्रसत्त्वाद्वितीया ।। (स्मृति) मानवजीवनमा प्रयत्नथी अलभ्य वा लाभो अर्थात् सद्भाग्यो अनेक मनायां छे। मारे मन सोथी मोट्र सभाग्य सज्जन मनीषीयोनो समागम थवो, सत्संग थवो, अंगत परिचय थवो-मैत्री थवी, वडीलवत्सनो संबंध थवो ग्रे छे । आ बाबतमा हु मारी जातने भाग्यशाली मानुछु। जे सज्जन मनीषीमोनां वात्सल्य मने मल्या छे तेमां पंडित सुखलालजी अने प्राचार्य श्री जिनविजयजी छे। बन्नेने हु कोलेज कालना अंतिम वर्षोमां अने अनुस्नातक अध्ययनना प्रसंगे प्रथम मलेलो ईश्वरनी कृपा थी श्रे बन्ने मनीषीप्रोनु वात्सल्य झरणु हजु पण मने स्नेहाद्र करे छ । (२) प्राचार्य जिनविजयजीने हैं प्रथम मल्यो त्यारथीज तेमनो भक्त थई गयो पूनामां भारत जैन विद्यालयमा तेमनो वास हतो। सौ प्रथम अाकर्षायो तेमना समृद्ध ग्रंथसंग्रहथी। जराक वधारे परिचय थतां तेमना उल्लास भयाँ स्नेहथी तेमनी साथे स्निग्ध थई गयो। हेमचन्द्रनु प्राकृतव्याकरण तेमनी पासे भरणतांभरणतां तेमनी साथे जे विविध वार्तालापो थतां तेमांथी तेमनी सरलता, उदारता, तेजस्विता, विद्वत्ता अने संशोधन वत्तिनो परिचय थतो गयो परन्तु अमनो साथे प्रवाहमा खेंची जाय अवोतो अमनो प्राच्यविद्याप्रोना अध्ययनसंशोधन माटे संस्थाप्रो स्थापवानो उत्साह हतो । प्रा १६१६ नी सालन संस्मरण । आ उत्साहनो लाभ सौ प्रथम भांडारकर अोरिप्रेन्टल रिसर्च इन्स्टिट्य टने मल्यो। मुनिजीने ते समय पण मोटा मोटा विद्वानो-सशोधको मलवा प्रावता । पूनाना ग्रे समयना प्रतिष्ठित विद्वानो डॉ. गुणे, डॉ. बेल्वेलकर आदि पण अमां हता। ग्रे बधा विद्वानो रे साथे मली भांडारकर प्रो. रि. ई. स्थापवानो उपक्रम को हतो। परन्तु मकान करवा पैसानी ताण हती। प्राचार्य जिनविजयजीने प्रेमने सहायक थवान योग्य घायु अने सद्गत श्री लालभाइ कल्याणभाइ जवेरीनी मदद थी मुबइना जैन धार्मिको पासेथी सारी ग्रेवी मदद करावी । अना परिणामें मुंबइ सरकारनो हस्त लिखित प्रतिमोनो भंडार जे डेक्कन कोलेजमां हतो अने जे ते समये मां. प्रो. रि. ई. मां. सोंपायेलो तेनां हस्तलिखित पुस्तकोनु डीस्क्रीप्टीव केटलोग करवानु काम - तेमने सोपायू । काम माटे प्रेमना सहायक तरीके तेमणे मने राख्यो हतो। १९१६ ना त्रणमास-मार्चथी जन-दरमियान प्रेमनी दोरवणी नीचे काम करतां ह. लि. प्रतिमोनो प्रथम परिचय थयो अने तेमनी पुष्पिकायो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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