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________________ संस्कृत की शतक - परम्परा पद्य संख्या सूचक रचनाओं की परम्परा संस्कृत में बहुत प्राचीन तथा समृद्ध है । प्राकृत, अपभ्रंश तथा कतिपय वर्त्तमान प्रादेशिक भाषाओं की भाँति संस्कृत में अष्टक, दशक, पञ्चविशंति, द्वात्रिंशिका, पञ्चाशिका, सपृति, शतक, सपृशती, सहस्र अथवा साहस्री संज्ञक कृतियों का विपुल तथा वैविध्यपूर्ण साहित्य विद्यमान है । इनमें से कुछ विधाओं ने तो जनमानस को इतना मोहित किया कि समय-समय पर विभिन्न कवियों ने वैसी अनेक रचनाएं लिखीं हैं। हिन्दी में प्रायः इन समस्त साहित्यांगों ने व्यापक ख्याति अर्जित की है । संस्कृत में अष्टकों तथा शतकों का प्रचुर निर्माण हुआ * प्राचीन प्रर्वाचीन प्रतिभाशाली प्रख्यात कवियों ने अपनी कृतियों से साहित्य के इस पक्ष को पुष्ट तथा गौरवान्वित किया। स्तोत्र, चरित वर्णन, नीति इतिहास, छन्द, कोश, आयुर्वेद, सदाचार, शृङ्गार, वैराग्य आदि जीवनोपयोगी सभी विषयों तथा पक्षों पर सैकड़ों शतकों की रचना हुई है। छठी शताब्दी ईस्वीं से प्रारम्भ होकर शतक रचना की परम्परा, किसी न किसी रूप में, आज तक अजस्र प्रचलित है । कतिपय वैदिक सूक्तों में भी मन्त्र -सख्या शत अथवा शताधिक है । किन्तु इस साहित्याङ्ग के विकास में उसका विशेष योग प्रतीत नहीं होता, यद्यपि वैदिक मन्त्रों की भाँति अधिकांश प्राचीन शतकों के पद्य भी पूर्णतः प्रसङ्ग मुक्त एवं स्वतः सम्पूर्ण है । कुछ आधुनिक शतक अवश्य सम्बन्ध-सूत्र से स्पूत, हैं भले वह सूक्ष्म अथवा अदृश्य हो । सोमेश्वर-रचित रामशतक ( १३ वीं शताब्दी ) में यह कथा-तारतम्य अधिक मांसल है। इस प्रकार, संस्कृत-शतकों में प्रसङ्ग- स्वातन्त्र्य से प्रबन्ध रूपता की ओर उन्मुख होने की प्रवृत्ति स्पष्ट परिलक्षित होती है । संस्कृत तथा हिन्दी शतक-साहित्य के सम्बन्ध में श्री जा० विश्वमित्र का कथन है कि " भारतीय साहित्य की परम्पराओं के मूलस्रोत संस्कृत-साहित्य में शतकों की संख्या एक शत से अधिक नहीं है । अन्य प्रान्तीय भाषात्रों में भी इस साहित्यांग का समृद्ध रूप ( संख्या और साहित्यिक महत्त्व की दृष्टि से ) प्राप्त नहीं है । हिन्दी - साहित्य में शतकों की संख्या ऊँगलियों पर गिनी जा सकती है ।" १ । परन्तु वास्तविकता इससे सर्वथा भिन्न है । हिन्दी के २२० शतकों की सूची सम्मेलन पत्रिका, भाग ५२, संख्या १-२ में प्रकाशित हो चुकी है। संस्कृत-शतकों की संख्या भी सौ तक सीमित नहीं । गत दो वर्षों को खोज से मुझे १०६ शतकों की जानकारी प्राप्त हुई है, जिनमें अधिकतर प्रकाशित हैं। इसके अतिरिक्त जैन कवियों के ५३ संस्कृत शतकों का विवरण श्री अगरचन्द नाहटा ने अपने एक सद्यः प्रकाशित लेख में दिया है । बौद्ध शतक अलग हैं । अधिक खोज से विभिन्न सम्प्रदायों के विद्वानों द्वारा रचित संस्कृत शतकों की संख्या तीन सौ के करीब १. द्रष्टव्य सम्मेलन - पत्रिका, भाग ४६, संख्या ४ में प्रकाशित लेख तेलगु भाषा में शतक-काव्य की परम्परा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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