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________________ ७६ प्रो० डॉ. एल. डी. जोशी और करगसिया तालाब की पाल पर राजा की फौज में शामिल हो गया। इस वक्त गलालग का तोहफा देखकर सेना के सब क्षत्रिय काँप उठे और राजा के कान भरने लगे। फलतः राजा ने गलाल का मुजरा नहीं झेला और व्यंग्य कहा मों जाणु ते पणवा ग्योतो के तु घोरजमाइ रयो जियें' ___ गलाल को बुरा लगा, उसने कहा एक दिन मैं पीछे रहा, तुम्हारे कितने आदमी काम आये ? और उसने सवा कोस आगे जाकर अपना डेरा डाला। इधर महारावल की फौज में षड़यंत्र हरा और आधी रात को कूव का डंका बजा दिया। गलालेंग ने यह नगारा सुना तो वह उठ बैठा और वक्ता को कहा कि फौज पावे उसके पहले ही हम कडाणा पर टूट पड़े और अपना जौहर जीजाजी को बता देवें । फलतः आधी रात को गलालसिंह अपने मरणियां साथियों सहित चल पड़ा और महीसागर पर पहुंच गया। बाद में पता लगा कि कुछ धोखा हुआ है परंतु गलालंग कहता है 'सड़यो खतरि पासो फरे तो जरणनारनु लाजे थानए जिय' नदी में रात्रि के अंधकार में पानी भरने की आवाज आई, देखा तो सात कन्याएं थीं। घेरा डाल कर उन्हें पकड़ लिया। पूछा तो पता लगा कि, गलालेंग के भय से कडाणा वाले रात को पानी भर लेते थे। उन कुमारियों से पता लगा कि वागड़ का लूटा हुआ सारा धन बावों के मठ में छिपा रक्खा है। गलालेंग के इशारे से वखतसिंह ने सातों को मौत के घाट उतार कर कालिया दर्रे में फेंक दिया। उन्हें जीता छोडते तो हांक मच जाती। नदी में अंतिम बार अफीम के कसूबे पीकर बावों के मठ पर धावा बोल दिया तथा प्रामगर तथा धामगर बावों को मारकर धन निकलवाया। सात ऊंट भर कर एक बहन जि को डुगरपुर, दूसरा ऊट सागवाड़ा बहन सेठानी को, तीसरा ऊँट पादरडी बहन पटलानी को, चौथा ऊँट जीजाजी रावल रामसिंह को तथा शेष तीन ऊँट पछलासा दोनों पत्नियों, भाई गुमना तथा माँ पियोली के लिये भिजवाये और कहलवाया "माजि साप ने मजरो के जु तारो बेटो करणे सड़या जियें राणिझालि ने एटलं केजु गमेले सतिये थाजु जियें भाइ घुमना ने मजरो केजु माडिना करणे सड़या जिय" बावों का मठ तोड़ कर और वागड़ का लूटा हुआ धन वागड़ भेज कर गलालसिंह मौत के उन्माद में आवेश में आगया और पूरे जोर शोर से कडारणा पर हमला बोल दिया। घमासान युद्ध हमा "जड़ा जिड़ बन्दुके सुटे भाल रा घमोड़ा उडे जिय कटारिय ना कटका या तरुवार ना टसका लागें जियें सामा सामि खतरि लडें कय गुजर झगड़ा लागा जिय रिन झाल वोरे गलालेग वैरि ना गाले धारगए जिय. दारु गोले ना में वर ने खतरि ना मसाला लागें जियें" . कालू कडॅणिया और उसका पुत्र अनूपसिंह डर कर महल में जा छिपे । परंतु अब गलाल रुकने वाला नहीं था। वह मौत का प्रच्छन्न स्वरूप बना हुमा यमराज की तरह टूट पड़ा और सारा कडारणा भस्मीभूत कर डाला। चौराहे पर नगारा बजाने वाला जोदिया तथा ड्योढी पर वखतसिंह भी २१ घाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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