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________________ "वागड़ के लोक साहित्य की एक झांखी" ७५ परंतु शृङ्गार रस के गीत सुनकर माता पियोली जाग उठी और द्वार पर प्राकर गलाल को खरी खोटी सुनाई ___ 'तारे बाप नु बिण लजव्यु मां जणनारी नु थाने जिय" मां के व्यंग्य बाणों से आहत गलालेंग अधूरे अरमान लेकर रण-भूमि में जाने की तैयारी करने लगा। दोनो रानियों ने अपने देवर वखतसिंह को कहा 'पियोर में तो मां नो जायो ने हारि में हाउ नो जायो जिय जालि मेल नं ताले खोलो, परण्यानु दरसण करें जिय' वक्ता ने दोनों रानियों को बाहर निकाला। दोनों नवोढाए लाज शर्म छोड़कर गलालेंग के आगे आकर खड़ी हई ओर बोली "घडि पलक भेगा ने रम्या परणि ने लगाव्यो दागे जिय मनमें दगा मता परण्या तमें वलता परणि लेता जिय" तब गलालेग कहता है होल. वरनि होलेंगणिरे तु कय ललसावे जिवे जियें गाम कडंणे काम प्रावता तो कोण हतिये बलतु जिय' तब रानियाँ कहती हैं "जो बावसि भले पदारो तमें जिव नं जतन करो जिय पार्क काम करणे करजू गमेलिये हत्ती बलं जिय" रानियों को विलाप करते छोड़कर गलालसिंह लीलाधर पर सवार होकर युद्ध को रवाना हो गया ! सागवाड़ा के नगर सेठ की पत्नी ने मोड़-मीढल युक्त गलालेंग को रण-चढने जाते देखकर उसे रोका और स्वागत करके भाई कहकर उसे सागवाड़ा रहने और रावल रामसेंग को दंड भर देने की इच्छा व्यक्त की "मां ना जण्या भाइ गलालेंग सगवाड़े बेटा रेवो जियें प्रजुर धरिण जे डण्ड करें मों घोरना भरुडण्डे जिय" पादरडी की पटलाणी और सागवाड़ा की सेठानी की सहानुभूति और स्नेह का कायल गलालसिंह कहता है नके बोनबा वसन खरसो मों ने ठेयी ने जोगे जिये खतरिये ना दावड़ा प्रमें उसिन लाव्या मोते जिय" वह कहता है कि रावलजी सुनेंगे तो कहेंगे मरवा भागो बिनो गलालेग वारिणयण ने हण्णे पेटो जियें वह आगे बढता है परंतु पगपग पर अपशुकन होते हैं । सामने विधवा स्त्री मिलती है तब भावी की आशंका मन में उभरती है। फिर भी धीर, वीर, गंभीर और दिलेर जवाँमर्द शौर्य की खुमारी से कहता है 'खतरिय ना दावड़ा भाइ मापे औंदा हकन वाद जियें' खतरिय रांगडेंना वावड़ा भाइ भाले भरवं पेटे जियें" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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