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________________ "वागड़ के लोक साहित्य की एक झाँखी" खाकर वीरगति को प्राप्त हुआ। अब गलाल और उसका घोड़ा लीलाधर पूरी खुमारी से झूम रहे थे ! कडाणा के महल के चारों ओर भारी कोट था । प्रवेश का कोई मार्ग न देखकर गलाल घोड़े को पूरे जोश से दौड़ा कर कूदा महल के अंदर चौक में कच्चे मौती बिखेरे हुए थे अतः लीलाधर घोड़े का पाँव चटक गया और वह लँगड़ा हो गया। दुश्मन घोड़े को बादमें पीड़ा पहुँचाएगा यह सोचकर घोड़े का सिर धड़ से अलग करके गलाल कडारणा की रा-प्रांगन में खड़ा घूमने लगा। उस पर मौत मँडरा रही थी। बह बीरता के नशे में चूर था। वहाँ केलें थी उन्हें काटने लगा। उसका जनून देखकर कडाणिया की रानी ने कालू को व्यंग्य मारा कि वैरी बाहर आ गया है और तुम घर में छिपे बैठे हो। व्यगोक्ति से चोट खाकर कालू ने गोली दाग दी और गलालेग घायल हो गया। वह मौत की प्रतीक्षा करता हुअा राम का नाम जपने लगा। इतने में कालू की कुमारी सुन्दरी फुलं बाहर आई। वह गलालेंग के रूप पर मोहित हो गई। पानी के दो लोटे रखकर वह गलालेंग का हाथ पकड़कर मंगल फेरे फिरने लगी तब गलाल कहता है "घड़ि पलक ना पामरणा रे तार खोलिय प्रबड़ा व्यु जिये कुवारि कन्या ने वोर गरणा पण्णि ने लगाइयो दागे जिय" तब फूल कहती है 'नति दिक्य घोर ने बारें मों रूप ने फेरा फरिजिय' इतने में कालू और अनूप बाहर पाये और गलालेंग के शरीर पर के अलंकार-गहने लूटने लगे, तब गलाल को चेतन पाया और उसने कहा 'प्राव्यो कडरिणया तारे पागे पण मरद ने पोगे जावे जिय' कडाणिया तलवार उठाता है परंतु उसका वार होते ही गलाल जोर का झटका मार कर पिता पुत्र दोनों को एक साथ मौत के घाट उतार देता है। गलाल की अनुपम वीरता शक्ति से फुलं संतोष और सुख अनुभव करती हुई कहती है "भोवोभोव मने भरतार मलो तो बाप लालेंग नो जायो जिय जिव तमारो गेते जाजु मा आँय सतिये बलु जियें" गलालेंग के प्राणपखेरू उड़ गये और सती की तैयारी होने लगी इतने में महारावल रामसिंह सदलबल प्रा पहुँचे परंतु अब खेल खत्म हो गया था। सारी बात फुलं के मुह से सुन लेने पर राजा रोने लगा। फुल ने कहा कि पहले गलाल की पाघ पछलासा पहुँचा दो क्योंकि वहां दो नव परिणिताएं साथ में पीछे छूट जायंगी---और फिर आप ठाकरडा पहुँचो वहाँ अमरिया जोगी है वह मेरे पति का कवित्त बना देगा, उसे लोक में चलाना । यह कहकर फुलं सती हो गई। उधर रानी झाली और रानी मेंणतरिण भी पछलासा के गमेला तालाब पर सतियाँ हो गई ! साढे तीन दिन में जोगी अमरिया ने गलालेंग की काव्यगाथा केन्द्र (एकतारा) पर गाकर गूथ दी। राजा ने जोगी को जमीन आदि देकर पुरस्कृत किया और . स्वयं डूगरपुर लौट गये । इस प्रकार वीर गलालेंग की गाथा पूर्ण हुई" कटे धाव्या थान मेवाड़ा ने कटे लड़ाइयलाडे जिय कटे मेवाड़ा मोटा थया ने कटे पड़यू धड़े जियें लालसेंग ना सवा गलालग तारं जगमें अमर मामे जिये !! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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