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________________ डा० मनोहर शर्मा अनाचार में लिप्त हो गई। एक दिन वह मनौती के बहाने से पदुमकुमार को एक पर्वत की चोटी पर ले गई और उसे धोखे से धक्का देकर गिरा दिया। परन्तु एक पेड़ में उलझ कर वह बच गया । 33" पदमकुमार पेड से किसी प्रकार निकल कर अपने राज्य में पाया और पिता की मृत्यू हो चुकने के कारण राजा बन गया। उसने दानशालाएं प्रारंभ की, जहां लोगों को भोजन मिलता था । एक दिन उसकी स्त्री भी उस लुज को सिर पर उठाए हुए आदर्श पतिव्रता के रूप में दानशाला में आई। वहां पदुमकुमार ने उसे पहिचान कर सारा भेद खोला और इस प्रकार कहा अयमेव सा अहमपि सो अनो , अयमेव सो हत्थच्छिन्नो अनो । यमाह कोमारपती ममन्ति, वज्झिधियो नत्थि इत्थीस सच्चं ।। इमञ्च जम्मं मुसलेन हन्त्वा, लुछ छवं परदारूपसेविं । इमिस्सा च नं पापपतिब्यताय, जीवन्तिया छिन्दथ कण्णनासं ।। २. इसी क्रम में पंचतंत्र के 'लब्धप्रणाश' नामक तंत्र की एक कथा का सारांश-दृष्टव्य है एक ब्राह्मण कुटुम्बवालों के झगड़े से तंग आकर अपनी प्रिय पत्नी सहित जंगल में चला गया। वहाँ ब्राह्मणी को प्यास लगी तो वह जल की खोज में निकला। जब वह जल लेकर लौटा तो किसी कारण से उसकी पत्नी मर चुकी थी। ब्राह्मण ने आकाशवाणी सुनकर 'सत्यक्रिया' से उसे अपनी प्राधी आयु देकर जीवित कर लिया। फिर वे एक वाटिका में पहुँचे। पत्नी को वहां छोड़कर ब्राह्मण भोजन लाने के लिए गया। पीछे से उसकी स्त्री ने कामातुर होकर एक पंगु से सम्बन्ध कर लिया। ब्राह्मण के आने पर उन्होंने भोजन किया और पंगु को दयावश एक गठरी में बांध कर वे उठा ले चले। आगे ब्राह्मणी ने अपने पति को बाधा समझ कर धोखे से एक ए में धकेल दिया और वह पंगु वाली गठरी लेकर एक नगर में गई। वहां गठरी को चोरी का माल समझ कर राज पुरुष उसे राजा के सम्मुख ले गए। जब गठरी खोली गई तो उसमें से पंग निकला। ब्राह्मणी ने अपने को पतिव्रता प्रकट किया। इससे राजा बड़ा प्रभावित हुआ और उसने उसे सुख से रहने के लिए दो गाँव प्रदान किए । । कुछ दिनों बाद ब्राह्मण किसी तरह कुएं से निकल कर उसी नगर में आया और उसने अपनी पत्नी की लीला देखी। ब्राह्मणी ने उसे अपने पंगु पति का शत्र बतला कर राजा से उसके वध की आज्ञा प्राप्त करली। परन्तु जब ब्राह्मण ने 'सत्यक्रिया' से अपनी दी हई आय वापिस ले ली तो राजा हुआ । उसे सम्पूर्ण पूर्व वृत्तान्त सुना कर ब्राह्मण ने कहा-- यदर्थे स्वकुलं त्यक्त जीविताञ्च हारितम् । सा मा त्यजति निस्नेहा क: स्त्रीणां विश्वेन्नरः ।। ३. अब दशकुमार चरित की मित्रगुप्त-कथा में दी गई एक अन्तर्कथा का संक्षिप्त रूप देखिए त्रिगर्त जनपद में किसी समय धनक, धान्यक और धन्यक नाम वाले तीन सगे भाई रहते थे। वहाँ घोर दुर्भिक्ष पड़ा और लोग सब कुछ समाप्त होने पर अपने बच्चों तथा पत्नी तक को खाने लगे। इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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