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________________ एक राजस्थानी लोककथा का विश्लेषणात्मक अध्ययन ६५ है । 'बाकला' उबाले हुए मोठ का नाम है । 'बछवारस' (वत्सद्वादशी) व्रत की लौकिक कहानी में इसी प्रकार एक सेठ का बनवाया हया तालाब नहीं भरता है और वह अपने पोते की बलि देता है। फिर देवकृपा से तालाब भर जाता है और सेठ का पोता भी पुनर्जीवित हो जाता है । प्रस्तुत लोककथा में इससे कुछ परिवर्तन जरूर है । ६. लोककथा की नायिका एक नट पर मुग्ध होकर उसके पीछे हो लेती है। राजस्थान में नट लोगों का तमाशा देखने के लिए बड़ी जनरुचि है। वे नाना प्रकार के खेल दिखलाते हैं और शारीरिक प्रदर्शन करते हैं। कई नटों का शरीर बड़ा सुडोल होता है । प्रसिद्ध 'नटड़ो' लोकगीत की नायिका भी उसके रूप पर आसक्त होकर उसके पीछे हो लेती है । वह सरोवर पर अपनी ननद के साथ पानी लाने के लिए जाती है और नट को देख कर कहती है-"देखो बाईजी इण नटई को रूप प्रो, कोइ थारैजी बीरै मैं दोय तिल आगलो।"राजस्थानी लोकगीत में रूपासक्ति को प्रधानता दी गई है। यही तत्व लोककथा में समाविष्ट है, भले ही इसके रूपान्तरों में ऐसा न हो। लोककथा देश और समय के बंधन को स्वीकार नहीं करती । आज जो लोककथा सुनी जाती है, वह काफ़ी प्राचीन हो सकती है। वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलकर अविनाशी रूप धारण करती है। समया सार देश विशेष में वह साधारण रूप-परिवर्तन जरूर करती है। जो लोककथा एक देश में प्रचलित है, वही अन्य सुदूर देशों में भी स्थानीय वातावरण धारण किए हुए मिल सकती है। विमाता के कष्टों से पीड़ित भारतीय 'सोनलबाई' इङ्गलैंड में 'सिन्डरेला' (कोयलेवाली लड़की) के रूप में सहज ही पहिचानी जा सकती है। प्रस्तुत राजस्थानी लोककथा भी काफी पुरानी है। इसका मूल भारतीय लोककथा-कोश में अनुसंधेय है। इस विषय में आगे प्रकाश डाला जाता है : १. 'चुल्ल पदुम' जातक की कथा का सार रूप इस प्रकार है राजकुमार पदुमकुमार के छः छोटे भाई थे। वे बड़े हुए और उनका विवाह हुआ। राजा को उनसे यह भय पैदा हुआ कि कहीं वे उसकी जीवित अवस्था में ही उससे राज्य न छीन लेवें। अतः उन सब को वन में जाने की आज्ञा दे दी गई। सातों भाई अपनी स्त्रियों सहित भयंकर कान्तार में जा पहुँचे। वहां खाने-पोने का सर्वथा अभाव था। ऐसी स्थिति में वे प्रतिदिन एक भाई की पत्नी को मार कर खाने लगे। पदुमकूमार अपना भाग बचाकर अलग छोड़ देता था। अंत में उसकी पत्नी की बारी आई तो उसने बचाया हा भाग सब भाइयों को सौंप दिया और जब वे सब सो गए तो उसे साथ लेकर भाग चला। मार्ग में पत्नी को प्यास लगी। इस पर पदुमकुमार ने उसे अपनी जंघा चीर कर खून पिलाया। फिर वे गंगातट पर पाश्रम बनाकर रहने लगे। एक दिन नदी में एक राज्यापराधी चोर बहता हुआ आया, जिसको हाथ, पैर और नाक आदि काट कर एक बोरे में बंद करके पानी में डाल दिया गया था । पदुमकूमार ने उसकी चीख-पुकार सुनकर रमे निकाला और सेवा द्वारा स्वस्थ किया। परन्तु उसकी स्त्री उस चोर पर आसक्त होकर उसके साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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