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से समस्त भव्य प्राणियों को प्रमुदित करने वाली, अर्चनीय व पूजनीय है। उत्कृष्ट श्रमण भाव को सन्मार्ग से च्युत प्राणियों को उपदेश देने वाली, धारण करती है, और सुरेश भी जिनकी वन्दना नित्य कल्याणकारिणी, सद्गुणों के सुन्दर योगों से करते हैं। सद्गुणों के सुन्दर लक्षणों से युक्त ऐसी अर्थात् लक्ष्यों से युक्त साध्वी कुसुमवतीजी की जय साध्वी कुसुमवतीजी की जय हो। हो।
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यशः पुञ्जो यस्या प्रसरति मही मण्डल तले । प्रबुद्धा संशुद्धा कुगतिइव रुद्धा सुगतिदा ।
जगदम्या यम्या विमल शिवदा भाषण कला ॥ शरण्या भक्तानां विनय सहितानां प्रतिदिनम् ।। प्रसादादस्यायं विकसति सदा धर्मविटपः ।
सदासर्वाधाराः विशदमतिना संयमपरा। सुयोगैः संयुक्ता कुसुमवति साध्वी विजयताम् ॥ सुयोगैः संयुक्ता कुसुमवति साध्वी विजयताम् ।।
प्रबुद्ध, शुद्ध, कुगतियों को रोकने वाली, सुन्दर जिनका कीर्ति पुञ्ज समस्त पृथ्वी मण्डल पर | गति देने वाली, विनययुक्त भक्तों को प्रतिदिन शरण छा रहा है और जिनकी सुन्दर कल्याणकारी भाषण
प्रदान करने वाली या रक्षक और जिनके प्रसाद कला अत्यन्त रमणीय है, जो सदैव सभी की आधार अर्थात् कृपा से सदैव धर्म वृक्ष विकसित होता रहता प्रेरणा स्रोत है, स्वच्छ बुद्धि के साथ संयम में तत्पर है, सद्गुणों के सुयोगों से युक्त ऐसी साध्वी कुसुम- है। सद्गुणों के सुन्दर लक्षणों से युक्त ऐसी वतीजी की जय हो।
साध्वी कुसुमवतीजी की जय हो ।
गुणज्ञा तत्वज्ञा व्रत-नियम-पूर्णातिविमला। यदीयां सत्कीर्ति कथयति सदा जैनजनता, अनेकान्तान् मार्गाननुसरति नित्यं शुचिधिया | विचारा चाराभ्यामनुचरति सिद्धान्त समताम् । समयातान् जीवान् प्रति दिशति निश्रेयस पदम्। अहिंसा सन्देशान् प्रति दिशति लोकान् रुचिकरान्, सुयोगैः संयुक्ता कुसुमवति साध्वी विजयताम् ॥ सूयोगैः संयुक्ता कुसुमवति साध्वी विजयताम् ॥
गुणज्ञ, तत्वज्ञ, व्रत एवं नियमों से परिपूर्ण, जिनकी सत्कीति का वर्णन जैन जनता सदैव अत्यन्त पवित्र अनेकान्त धर्म का अनुसरण करने करती रहती है और जो विचार एवं आचार से वाली, पवित्र बुद्धि वाली, शरण में आये जीवों को सिद्धान्तों का अनुसरण करती है तथा जो लोगों कल्याण पथ प्रदान करने वाली, सद्गुणों के सुयोगों को सुन्दर लगने वाले अहिंसा के सन्देशों का उपदेश से युक्त ऐसी साध्वी कुसुमवतीजी की जय हो। करती रहती है । सद्गणों के सुन्दर लक्षणों से युक्त
ऐसी साध्वी कुसुमवतीजी की जय हो। सुधा सिक्ता वाणी हरति जनतापं च सकलम् । चारित्रान्ते प्रभाख्याहं करोमि कुसुमाष्टकम् । समा संपूज्या जगति जनसंघः सुविधिना ॥
यः पठेत् श्रुणुयान् नित्यं प्राप्नोति स परां गतिम् ।। समुच्चैः श्रामण्यं सुवहति सुरेशोपि नमिता। सुयोगैः संयुक्ता कुसुमवति साध्वी विजयताम् ।।
मुझ चारित्रप्रभा ने इस कुसूमाष्टक की रचना जिनकी वाणी अमृत से सिचिंत है, जो लोगों के
. की है जो नित्य पढ़ेगा व सुनेगा वह परमगति को
प्राप्त करेगा। सम्पूर्ण तापों या दुःखों को नष्ट करने वाली है और जो संसार में लोगों के द्वारा अच्छी प्रकार से
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना o
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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