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________________ आपश्री को बाल्यावस्था से ही संसार की विनश्वरता, क्षणभंगुरता देखकर आपके मन में विरक्ति की भावना उत्तरोत्तर दृढ़ होती गई । दृढ़ संकल्प व्यक्ति को एक न एक दिन उसके लक्ष्य स्थल तक पहुँचा ही देता है । यथोचित समय आने पर आपश्री ने अल्पावस्था में ही साधु जीवन अंगीकार करके गरु चरणों में जैनागमों का गहन अध्ययन- चिन्तन और मनन किया । जैनागमों के साथ अन्य भारतीय दर्शनों का भी सूक्ष्म अध्ययन किया तथा संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत, गुजराती, पंजाबी एवं राजस्थानी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया । ज्ञानप्राप्ति के उपरान्त अपनी ओजस्वी वाणी द्वारा भगवान महावीर के सन्देश को घर-घर तक प्रसारित करने हेतु ग्राम-ग्राम, नगर-नगर की पद | यात्रा करते हुए समाज सुधार के धार्मिक-सामाजिक 3 कार्य सम्पन्न करके जन-मानस में एक नव चेतना उद्बुध की है। हीरा अपनी चमक से स्वयं प्रकाशित होता है और मणि अपनी चमक से तम हरण करती है । अस्तु, आप अपने सद्गुणों से स्वयं जैन जगत में और श्रमणी समुदाय के मध्य में | प्रकाशमान हैं । जिस प्रकार पारस के संस्पर्श से लोहा विशुद्ध | स्वर्ण बन जाता है, उसी प्रकार महापुरुषों के सम्पर्क में उनसे सम्बद्ध देश-काल, समाज परिवार और व्यक्ति भी चमत्कृत होकर प्रतिष्ठा और परिचय का अधिकारी बन जाया करता है । मुझे आपश्री को अति निकट से देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। आपका जीवन सदा एक | रूप है जहा अन्तो तहा बाहिं । जहा बाहिं तहा अन्तो ॥ जैसा पवित्र मधुर हृदय है वैसी ही कोमल मीठी वाणी है, वैसा ही कोमल हृदय है । आप एक पहुँची हुई साधिका हैं । संयम साधना का अमिट तेज, जैन- जैनेतर दर्शनों का अगाध प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना Education Internand पाण्डित्य होने पर भी आप विनम्र और मितभाषी हैं । आपकी वाणी में मधुरता, निर्मलता और स्निग्धता झलकती हैं । आप अप्रमत्त भाव से साधना में तल्लीन रहती है । आपके जीवन में गुणों की माला इस प्रकार गूँथी है जिसका ओर-छोर नहीं, जिधर से पकड़ो सर्वत्र गुण विद्यमान हैं आपका व्यक्तित्व एक अमूल्य हीरे की भाँति देदीप्यमान है । किसी साधक के दिव्य गुणरूपी सुमनों को उसी प्रकार एक छोटे से लेख में एकत्रित नहीं किया जा सकता, जैसे माली बगीचे के सभी मनोहर फूलों को एक ही गुलदस्ते में संकलित नहीं कर सकता । जैसे गागर में सागर भरना असम्भव है, वैसे ही आपश्री के असीम गुणों का वर्णन करना मेरी लेखनी से बहर है । श्रद्धामूर्ति परम पूज्या महासती श्री के चरग कमलों में अपने हृदय की अनन्त श्रद्धा समर्पित करती हुई अपने को गौरवशालिनी मानती हूँ । हमारी यही मंगल कामना है कि युग-युग तक आपश्री भौतिक युग में धार्मिक श्रद्धा का सुमधुर पाठ पढ़ाते रहें और श्रमण संघ की कीर्ति पताका को ऊँचा उठाते रहें। आपका हार्दिक अभिनन्दन ! अभिनन्दन !! एक ज्योतिर्मय व्यक्तित्व - विदुषी साध्वी उमरावकु वरजी 'अर्चना' मुझे यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि परम विदुषी शासन प्रभाविका साध्वी रत्न श्री कुसुमवती जी महाराज की दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन प्रसंग पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है। अध्यात्मयोगिनी, प्रवचनभूषण, साध्वीरत्न कुसुमवती जी महाराज गत ५२ वर्षों से भारत के ३३ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ & Personal Use Only www.jainsary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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