SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ PORAROOOOOOOOOOS20098280 ___ सद्गुण गुलदस्ता-कुसुमवती जी म. ऊर्जस्वल-व्यक्तित्व -परम विदुषी चांद कुवर जी म. सा. -उपप्रवतिनी साध्वी श्री कौशल्याजी महाराज महान्-आत्माएँ वे ही होती हैं जो कि शुभ फूल तो बहुत खिलते हैं, कृत्य दीप जलाकर अपने कर्मक्षेत्र को जगमगा देते सुगन्ध देता है कोई कोई। हैं उन्हीं में से स्वनामधन्य विदुषी साध्वी पू. कुसुम पूजा तो बहुत करते हैं, वती जी म. सा. जो अमोल माधुर्य भावों के स्तबक की भांति चुना हुआ सद्गुणयुक्त गुलदस्ता है जो पूजनीय बनता है कोई कोई ॥ | अनवरत 'कसम' की ही भांति खिलकर संसार-भर शस्य श्यामला भारत वसुन्धरा ऋषि-मुनियों में अपनी गुण सुरभि को संसार भर में लुटा रहे । है की प्रसव भूमि रही है। अनेक जाज्वल्यमान रत्न L मणियों ने विश्व को निज आलोक से आलोकित 'यथा नद्याः स्यंदमाना समुद्रः' जैसे नदियाँ किया है । रत्नों की श्रृंखला में एक विलक्षण रत्न बहते-बहते समुद्र में समाहित हो जाती हैं। वैसे है-परम श्रद्धया, महामहिम, परम विदुषी । महान आत्मा की प्रवाहमान जीवनधारा लोकड़ित महासती श्रीकुसुमवती जी म. सा.। एवं जनकल्याण करती है वैसे ही आपने सरिता आप श्री यथानाम तथागुण हैं। आपका एवं मेघ की तरह शुष्क जीवन में नवचेतना का आनन सदैव कुसुम की भांति प्रफुल्लित रहता है है संचार करके नीरस जीवन को सरसब्ज बनाकर, तथा मन शान्ति,ज्ञान और विनम्रता आदि विशिष्ट मन-वच-कर्म में अमृत का झरना बहाकर जन गुणों से ओत-प्रोत है। मानस को आप्लावित किया। कान्तिमान श्याम वर्ण, भव्य ललाट, मंझला __आप संयमी क्षणों को स्वर्णमय बनाने प्रतिपल कद, सौम्य-मुखाकृति, तेजोमय नेत्र, ब्रह्मचर्य का अखण्ड तेज, ऐसा मन-भावना स्वरूप देखते ही जाग्रत रहे हो, ज्ञान रश्मियों को फैलाकर जन-मन को आलोकित किया है, आपके इन शुभ कृत्य व नयनों के मार्ग से सीधा हृदय में उतर जाता है। गुणों के प्रति हृदय गद्गद् हो जाता है, अन्तर्मन से दया, करुणा, अनुकम्पा, सेवा, सद्भावना का दिग् दर्शन आपके हर व्यवहार में होता है। आपके । यही शुभकामना है कि आपका संयमयात्रा पथ शुभ कृत्य-सुरभि से महकता रहे जिनशासन सेवा अनेकानेक गुणों की सौरभ से मैं बहुत ही प्रभावित हूँ। आपके व्यक्तित्व में सब कुछ सुन्दर ही सुन्दर हेतु दीर्घायु-चिरायु बने। है। विचारों में चुम्बक जैसा आकर्षण, वाणी में । 'कुसुमवत्' है जीवन आपका, महकते सुरभित कुसुमों सा वर्षण और कर्म में योगी सद्गुणों ने पाया विस्तार। सी एकाग्रता, सीधा-सादा रहन-सहन, सीधा सरल | अभिनंवन वेला में स्वीकारो, मधुर व्यवहार, निश्चय ही आपके पावन पवित्र शुभकामना का उपहार । व्यक्तित्व का एक मधुर परिचय है। सरलता सुचिता व्रत साधना, विमलता निर्लेप अकामता । साध्वी कुसुमवती कुसुम समान हैं, विनय-विज्ञ-विवेक. वितान है ।। प्रथम खण्ड: श्रद्धार्चना Cames साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy