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________________ गुणों के आगार और संगीत तथा कला का प्रमुख केन्द्र है। जहाँ पर अनेकानेक सन्तों, शूरवीरों, देशभक्तों और सती- 1 -नरेशमुनि जी साध्वियों ने जन्म लेकर साधना तपोयुक्त उदात्त जीवन से वहाँ के कण-कण को आलोकित और है समय नदी की धार कि गौरवान्वित किया। इस धरा को हो सन्तों की र जिसमें सब वह जाया करते हैं। जन्म भूमि और वीरों की कर्मभूमि होने का गौरव KE है समय बड़ा तूफान कि प्राप्त हुआ है। सचमुच मेवाड़ ऋषि, महर्षि, सन्त, पर्वत भी झुक जाया करते हैं ।। तपस्वी व चिन्तकों की पवित्र भूमि है। वहाँ की अक्सर दुनिया के लोग मिट्टी के कण-कण में, अणु-अणु में महापुरुषों के समय में चक्कर खाया करते हैं। तपःपूत व्यक्तित्व के शुभ परमाणुओं की सुगन्ध लेकिन कुछ ऐसे होते हैं आ रही है । उसी गौरवमय परम्परा की लड़ी की जो इतिहास बनाया करते हैं। कड़ी में स्वनामधन्य जाज्वल्यमान तेजस्वी साध्वी रत्न महासती श्री कुसमवतीजी एक हैं । लघुवय में जैन शासन की उज्ज्वल ज्योति आदर्श साध्वी साधना के कठिन अग्निपथ को अपनाकर निरन्तर रत्न श्रद्धय परम विदुषी महासती श्री कुसुमवती उस पर अपने मुस्तैदी कदम बढ़ाना आपकी पूर्व जी म० को कौन नहीं जानता ? सब जानते हैं उन्हीं जन्म की महान साधना व पुण्यवानी का प्रतीक है। की शिष्याओं ने गुरुवर्या के दीक्षा ५० वर्ष पूर्ण होने संयम के प्रशस्त मार्ग पर बढ़कर आप वहीं पर ही की प्रसन्नता में एक विशालकाय अभिनन्दन ग्रन्थ अवस्थित नहीं हुई, अपितु जीवन को निखारने के निकालने का भागीरथ प्रयास किया है। मुझे भी लिए, वैराग्यभाव में अधिकाधिक वृद्धि करने के या उनके सम्बन्ध में कुछ लिखने को कहा गया है मेरे लिए आपने ज्ञान का तलस्पर्शी गहन अभ्य ऊपर आपका महान उपकार है मुझे सर्वप्रथम ज्ञान, तप और त्याग के रंग में अपने जीवन को रंगा। दर्शन, चारित्र का श्रवण कराने वाली यही शक्ति साधना व संयम का दिव्य सम्बल लेकर अंगड़ाई है जिसके कारण मेरी भक्ति विकसित हुई है। लेती हई तरुणाई में भी निरन्तर आगे बढ़ती रही। श्रमण संस्कृति की विरलधारा में भोग नहीं, प्रकाश; ___ मैं आपके किन गुणों का अंकन करू और किन संग्रह नहीं, त्याग; राग नहीं, विराग; अंधकार नहीं, गुणों का अंकन न करूं यह एक गम्भीर समस्या मेरे समक्ष उपस्थित हुई तथापि “अकरणात मंद प्रकाश; मृत्यु नहीं, अमरता; असत्य नहीं, सत्य; क्षोभ नहीं क्षमा के सिद्धान्त में डुबकी लगाकर जीवन करण श्रेयः" प्रस्तुत उक्ति के अनुसार नहीं करने को परिवर्तन किया। महान सरल आत्मा श्री से कुछ करना श्रेयस्कर है (Some thing is कैलाश वरजी का अपनी शिष्या, प्रशिष्याओं better than nothing) अतः कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। के साथ मदनगज किशनगढ़ नगर में पदार्पण हुआ था, तभी मुझे उनकी अन्तेवासी शिष्या परम आपकी जन्म स्थली राजस्थान की वीर भूमि विदषी साध्वी रत्न श्री कुसुमवती जी म० के संपर्क । मेवाड़ है। जिसका नाम इतिहास के सुनहरे पृष्ठों में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, आपके प्रथम में बड़े सम्मान के साथ स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। दर्शन से मेरे मन जो आल्हाद उभरा था, उसकी यह वीर भूमि अपनी आन-बान और शान के लिए स्निग्ध स्मति से आज भी मन पुलकित हो उठता विश्व विख्यात है व जो त्याग, बलिदान, साहित्य है, और हृदय आदर से भर जाता है। २४ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना o साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ SON.rivate & Personal Use Only
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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