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________________ THAR सरलता की मूर्ति गतार्थ अजमेर से वहाँ पर पधारी थीं। मैं उस समय वैराग्य अवस्था में था। गुरुदेव श्री के चरणारवृन्दों -उपप्रवर्तक प्रेम मुनिजी में रहकर धार्मिक अध्ययन कर रहा था। श्रमण संघ की विदुषी महासती श्री कुसमवती सन् १९७३ का वर्षावास गुरुदेव श्री का अजराजी म. से सन् १९७५ में पूज्य गुरुदेव घोर तपस्वी मर पुरी अजमेर में हुआ। उस वर्षावास में विदुषी रोशनलालजी म. के साथ ब्यावर नगर में मिलना महासती कुसुमवती जी, सद्गुरुणीजी श्री पुष्पवती हुआ। शास्त्रीय चर्चाओं के द्वारा मैंने पाया आपको जी और माताजी म० प्रतिभा मूर्ति श्री प्रभावती शास्त्र का गहरा ज्ञान है, आपके व्यवहार से मुझे जी म० आदि सती वृन्द भी वहाँ पर गुरुदेव श्री की मात्र अनुभव हआ कि आप सरलमना, स्वाध्यायी व सेवा सेवा हेतु विराज रही थीं। भोजन कर लौटते समय आदि के गुणों से युक्त हैं। आपने संस्कृत, प्राकृत, मैं महासती जी के दर्शनार्थ उनके स्थान पर जाता हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं का गहन अभ्यास था। महासती जी मुझे बहुत ही मधुर शब्दों में किया है साथ ही आपकी प्रवचन शेली अति प्रभावो- शिक्षा प्रदान करती थीं। वर्षावास के उपसंहार काल MR) त्पादक है। आपके प्रवचनों का श्रोताओं के हृदय में मेरो दीक्षा उल्लास के क्षणों में सम्पन्न हुई । मेरे पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जहाँ-जहाँ भी आपने साथ ही वैरागिन बहन स्नेहलता ने भी दीक्षा ग्रहण चातुर्मास किये हैं वहाँ-वहाँ संघ एकता के कार्य हुए को और उनका नाम दिव्यप्रभा रखा गया। हैं, संगठन की भावना प्रबल हुई है। आपने भारत वर्षावास के पश्चात् गरुदेव श्री अहमदाबाद (ॐ वर्ष के कई प्रदेशों में विहार व चातुर्मास करके , पधारे। वहाँ का वर्षावास पूर्ण कर पूना, रायपुर, जिन शासन का प्रभावना की है। आपकी तरह ही बैंगलोर मदास. सिकन्दराबाद. उदयपर, राखी का आपका शिष्या परिवार भी प्रतिभा सम्पन्न व चातर्मास सम्पन्न कर सन १९८१ में जब गरुदेव श्री प्रभावशाली रहा है। पाली विराज रहे थे तब आप श्री ने पुनः गुरुदेव के दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के इस सुनहरे अवसर पर दर्शन किये । सन् १९८३ में आपश्री का वर्षावास मैं यही मंगल कामना करता हूँ कि आप सदा स्वस्थ गुरुदेवश्री के सान्निध्य में हुआ और सन् १९८६ में रहकर जिनशासन की प्रभावना करते रहें। भी पाली में गुरुदेव श्री के सान्निध्य में वर्षावास हुए। और सन् १९८८ में गुरुदेव श्री इन्दौर का वर्षावास सम्पन्न कर सन् १९८६ में उदयपुर पधारे तो आपसे पुनः मिलने का अवसर मिला। जब भी गुणों की खान मिले हैं तब स्नेह और सद्भावना के साथ मिले हैं। महासती जी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा -दिनेश मुनि है, यह आल्हाद का विषय है। मेरी यही मंगल महासती कुसुमवती जी एक परम विदूषी कामना है कि महासतीजी सदा स्वस्थ रहकर जिनसाध्वी हैं। स्वभाव से सरल, वाणी से मधुर और शासन की निरन्तर प्रभावना करती रहें । हृदय से उदार । प्रथम दर्शन में ही दर्शक उनके चित्ताकर्षक व्यवहार से प्रभावित हो जाता है । मैंने सर्वप्रथम उनके दर्शन पुष्कर में किये । सद्गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० अजमेर वर्षावास हेतु पधार रहे थे वे भी श्रद्धय गुरुदेव श्री के स्वा प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना CREAK साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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