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________________ TRO प उस प्रथम दर्शन में ही मैंने पाया कि श्री कुसुम- विदुषी है पर विद्वत्ता का-किंचित् मात्र भी अभिवती जी म० सरलचित्त प्रसन्नवदन और मिलन- मान नहीं है। सार स्वभाव की,एक मनस्वी, यशस्वी, तेजस्वी और आपने अथक श्रम से शिक्षा के क्षेत्र में आशावर्चस्वी साधिका हैं। आपके सरल निश्छल और तीत प्रगति की है। आप हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, आत्मीयता पूर्ण व्यवहार से मेरा मन विभोर हो गजराती आदि अनेक भाषाओं की साधिकार 7EOS जाता था, मुझे लगा कि आप सहृदयता शालीनता प्रकाण्ड पण्डिता हैं । न्याय व दर्शन शास्त्र का भी तथा सौम्यता की एक जीवन्त प्रतीक हैं । आपसे गम्भीर अध्ययन है। जैन सिद्धान्ताचार्य जैसी कई ज्ञान-ध्यान सीखने में मुझे गौरव व आनन्द की उच्च परीक्षायें समुत्तीर्ण की हैं । , अनुभूति होती थी। कई बार लम्बे समय तक ___आपका स्वभाव सरल है, आप में क्षमा, मृदुता, - वैराग्य काल में व पश्चात आपसे मिलने व साथ समता सादगी प्रभृति आदि श्रमणी जीवन के गुण में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। विशेष रूप से झलकते हैं। विनय आपके जीवन का ब्यावर में बहन सरोजकुमारी के पुनीत दीक्षा मूल मन्त्र है । आपके दिल में दयालुता है, विचार प्रसंग पर दूसरी बार आपके दर्शन करने व चरणों विशाल और स्वभाव सौन्दर्य से परिपूर्ण हैं । आप में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, उसी दिन की प्रकृति में प्रेम की प्रधानता है आपका जीवन आपके महिमा मण्डित व्यक्तित्व से मुझे दिव्य आक- गलाब की तरह सूवासित, नवनीत के सामान मृदु र्षण की अनुभूति हुई और मैंने-निश्चय कर लिया व कोमल, मिश्री के समान मीठा है । भौतिक चकाकि मुझे भी सांसारिक आसक्ति से विरक्त होकर चौंध के युग में भी प्रभूता प्रदर्शन से दूर रहकर साधना पथ पर अग्रसर होना और जीवन का लक्ष्य । आप शान्त स्वभावी, आध्यात्मिक साधिका के रूप बदलना है। जैसे एक कुशल माली नन्हें-नन्हें पौधों में आत्म कल्याण व लोक कल्याण के कार्यो में को जल प्रदान कर और रात-दिन उसका संरक्षण सतत संलग्न हैं। आपके उज्ज्वल अन्तःकरण में कर विशाल वृक्षों के रूप में परिवर्तित कर देता है भविष्य की सुनहली आशाएँ हैं, वर्तमान में गति वैसे ही श्रद्धे या सद्गुरुणी रूपी माली ने मेरा सिंचन शील कदम हैं और भूत की भव्य अनुभूतियाँ हैं । कर विरक्ति भावना का विकास किया है। आप “तिण्णाणं तारियाणं" के पावन लक्ष्य की पूर्ति महासती श्री कुसुमवती जी स्थानकवासी ही के लिए सदा जागरूक रहती हैं, दीन दुखियों के । नहीं अपितु, सम्पूर्ण जैन समाज की एक ज्योतिर्मान प्रति आपके मानस में करुणा की गंगा सदा प्रवाहित निधि हैं । आपके ओजस्वी, तेजस्वी कृतित्व से रहती हैं। किसी व्यक्ति को जब अन्तर्वेदना से परिसमाज भली-भाँति सुपरिचित है। आप विलक्षण व्याकुल देखती हैं, तो उसके वेदनाजनित परिताप प्रतिभा की धनी उत्कृष्ट साधिका हैं। आप में से आपका कोमल हृदय नवनीत की भांति पिघल विनय सरलता, सहज स्नेह कूट-कूट कर भरा है। उठता है, परहित साधना में यदि कहीं कष्ट का मैंने महासती जी को बहत ही सन्निकटता से देखा भा सामना करना पड़ ता उ भी सामना करना पड़े तो उससे कभी भी आप जी व परखा है। नहीं चुरातीं । “परोपकाराय सतां विभूतयः" के समुज्जवल आदर्श को साकार बनाकर छोड़ती हैं, 'जहाँ अन्तो तहा बाहि जहा वाहि तहा अन्तो' विघ्न और बाधाओं की चट्टानों को चीरती हुई के अनुसार आप जैसी अन्दर हैं वैसी ही बाहर हैं। आगे बढ़ना आपके जीवन का परम लक्ष्य है । जड़ता ) आपके जीवन में बहरूपियापन बिल्कुल नहीं है। व स्थिति पालकता आपको कतई पसन्द नहीं हैं आप स्नेह सौजन्य की साक्षात मूर्ति हैं। आप आप अपने जीवन के अमूल्य क्षण प्रमाद, आलस्य, प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ :
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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