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________________ ASTRO R E बना जनजीवन में प्रवाहित करें जिससे नवयुग के अभि- सत्यं और सत्वं की संसृति-महासतो जात बालक-बालिकाओं का जीवन सद्गुण सुमनों से सदा फूलता-फलता रहे और सुमधुर पवित्र- - प्रवर्तक भंडारी श्री पदमचन्द जी महाराज चरित्र की सुगन्ध से जन-जन का मन प्रसन्न और ____ 'कुसुम' शब्द के उच्चारण से ही मन में एक समाज का वातावरण सदा सुरभित बना रहे । ऐसे कोमलता, सौम्यता और प्रसन्नता का अनुभव होने प्रसन्न वदन, सरल, कर्मठ, सुयोग्य, लगनशील लगता है। महासती श्री कुसुमवती जी के अभिसाध्वीरत्न से समाज और देश को बड़ी-बड़ी नन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन की सूचना और उसके साथ आशाएँ हैं। वे निष्ठा और अध्यवसाय से श्रमण संघ की सेवा करें. श्रमण संघ को गरिमा का सम्व उनका जीवन परिचय जब पढ़ा तो लगा, हमारे द्धन करती हुई, शतजीवी हों। - श्रमणी समुदाय में अनेक ऐसी दिव्य ज्योति, विभू- Va तियाँ हैं जिनका जीवन सत्य-शील-कोमलता___ कुसुमवतीजी से मेरा सम्बन्ध बहुत वर्षों का । सौम्यता-साधुता और सत्वशीलता का सुवासित रहा है। मुझे उन्हें बहुत ही निकट से देखने का सदा बहार पूष्प है। उनकी सद्गुण सुरुचि से जनसंयोग प्राप्त हआ है। उनका यशस्वी व्यक्तित्व और जन का मन सदा प्रसन्नता का अनुभव करता। कृतित्व सहज संस्कारी है । मानवीय मूल्यों के प्रति रहता है। उनके अन्तर्मानस में गहरी आस्था है। वह आस्था 'सती' शब्द 'सत्य और सत्व' के मिलन से न उनके जीवन का अभिन्न अंग है। वे केवल मान- बना है। जिस जीवन में सत्य की अविचल साधना वीय मूल्यों का उत्कीर्तन हो नहीं करती अपितु है, और सत्य के लिए प्राणार्पण करने की सत्वजीती भी हैं। उनके हृदय में जैनागम, जैन आचार शीलता-साहसिकता है-वही है भारतीय परसंहिता के प्रति अगाध-अबाध प्रेम है। उनकी यह म्परा की सती! सती जब गृहस्थजीवन का परिआन्तरिक इच्छा है कि दूसरों के हित के लिए वेश त्याग कर संयमी, अपरिग्रही और मोह-ममता अपने आपको समर्पित कर दूं । उनका व्यक्तित्व 1 से मुक्त होकर भिक्षणी धर्म को स्वीकारती है तो ) सीधा सरल सहज और आदर्श है । कोई आडम्बर, ___ वह 'महासती' कहलाती है। अभिमान या वक्रता नहीं है। महासती का जीवन त्याग और शौर्य का वे वाणी की धनी हैं। वे अपने विचार सेतु है। महासती श्री कुसुमवती जी का जीवन बहुत ही प्रभावशाली ढग से प्रस्तुत करती हैं। अनेकानेक सद्गुणों का खिला हुआ गुलदस्ता है । उनके विचारों में उलझन नहीं और न भाषा में जिसकी सूवास से सम्पूर्ण स्थानकवासी समाज किसी प्रकार की अस्पष्टता ही है । वाक् चातुर्य, गौरवान्वित है । अभिनन्दन के शुभ प्रसंग पर मैं वाग् विलास के आधार पर न होकर हृदय की उनके आरोग्यमय दीर्घजीवन की शुभकामना के TER सहज सरलता पर आधृत है। उनके प्रवचन में साथ हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। कोई प्रवञ्चना नहीं और न परोपदेशे पाण्डित्यम् की अविश्वसनीयता और कृत्रिमता ही है। वे सच्चाई और ईमानदारी से सोचती हैं। उनकी Co/ सराहना और उनका प्रस्तुत अभिनन्दन संस्कारों का सुदृढ़ पाथेय रूप बने । यही मंगल कामना है। ज प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 01 Jain Education International For tarivate a Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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