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________________ आप ब्यावर पधारीं । इधर गुरुदेव भी सोजत सन्त भीड़-भड़क्का बना रहता है। अनेक बाधाएँ उपसम्मेलन समाप्त कर जयपुर वर्षावास हेतु पधार स्थित होती हैं, तथापि समय निकालने पर साधक रहे थे। तब ब्यावर में आपसे मिलना हआ । उसके कुछ न कुछ लिख सकता है, ऐसा मेरा अपना अनुबाद अलवर में, जयपुर में, अजमेर में आपसे मिलने भव रहा है। के अवसर प्राप्त होते रहे। महासती कुसुमवती जी का अध्ययन काफी दीक्षा के पश्चात् सन् १९७३ में आपके साथ गहरा रहा । उन्होंने संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी का तथा वषोवास का अवसर मिला और उसके पश्चात् सन् जैन-दर्शन का गम्भीर अध्ययन किया है। मैंने का १९८३ में पुनः मदनगंज में वर्षावास हुआ और सन् समय-समय पर गुरुबहिन होने के नाते उन्हें १६८६ में पाली में वर्षावास साथ करने का अवसर प्रेरणा भी प्रदान की, कि वे जैनधर्म, जैनदर्शन | प्राप्त हुआ। अजमेर वर्षावास में मैं 'भगवान महा- पर कुछ न कुछ लिखें । पर लिखने के प्रति उनका वीर : एक अनुशीलन' ग्रंथ लेखन में अत्यधिक व्यस्त रुझान नहीं सा है। उनका विश्वास अध्ययन में था। श्रमण भगवान महावीर ने साढ़े बारह वर्ष ज्यादा रहा है । अध्ययन के साथ ही उनकी आवाज तक अखण्ड मौन साधना कर कैवल्य प्राप्त किया बहुत ही सुरीली है । इसलिए जब वे प्रवचन करती था, तो मेरे अन्तर्मानस में भी यह प्रेरणा उबद्ध हैं, तब श्रोता झूम उठते है। हुई कि महावीर के व्यक्तित्व और कृतित्व को महासती कुसुमवती जी भाग्य की धनी हैं इस१ उजागर करने के लिए मौन रहना आवश्यक है। लिए उनकी अनेक शिष्याएँ परम विदुषी हैं। स मौन रहकर अधिक से अधिक समय महावीर के चारित्रप्रभा जी, प्रवचन कला में दक्ष हैं और दिव्यजीवन को प्राचीन स्रोतों के आधार से पूर्ण करने प्रभाजी भी प्रवचनकला में निष्णात हैं। महासती (5) में लगा हुआ था। इस वर्षावास के उपसंहार काल दर्शनप्रभाजी ने आचार्य हरिभद्र पर शोध-प्रबन्ध में वेरागी चतरलाल ने तथा वैरागिन स्नेहलता लिखकर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है तो बहिन ने दीक्षा ग्रहण की और वे क्रमशः दिनेशमनि दिव्यप्रभाजी ने भी उपमितिभवप्रपञ्च कथा पर और दिव्यप्रभाजी के नाम से जाने-पहचाने लगे। शोध-प्रबन्ध लिख दिया है। शीघ्र ही उन्हें भी पीवर्षावास साथ होने पर भी कार्य में अत्यधिक व्यस्त एच. डी. की उपाधि प्राप्त होगी तथा अनेक प्रशिहोने के कारण वार्तालाप का अवसर कम ही मिल ष्याओं ने एम. ए., साहित्यरत्न, शास्त्री आदि परीपाता था। मदनगंज वर्षावास में मेरा स्वास्थ्य क्षा काफी अस्वस्थ रहा। उस वर्षावास में लेखन का बहिन कुसुमवतीजी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाकार्य नहींवत् हुआ । वर्षावास में वार्तालाप के प्रसंग शित होने जा रहा है। अभिनन्दन ग्रन्थ में ज्ञानमें बाल्यकाल की मधुर स्मृतियाँ यदा-कदा उद्बुद्ध विज्ञान, धर्म-दर्शन, साहित्य और संस्कृति पर विपुल होती रहती थीं । पाली वर्षावास में साध्वीरत्न श्री सामग्री का संकलन होता है। व्यक्ति को माध्यम पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ के सम्पादन में मैं दत्त- बनाकर जो विपुल सामग्री अभिनन्दन ग्रन्थ के चित्त से लगा हुआ था। क्योंकि सन्त जीवन में माध्यम से प्रस्तुत की जाती है वह भारतीय साहित्य वर्षावास का समय ही एक ऐसा समय है जहाँ की अनमोल धरोहर होती है। इसीलिए अभिनन्दन | चार माह तक सन्त अवस्थित रहता है । साहित्य ग्रन्थ का महत्त्व है । मेरी यही मंगल कामना है कि भी उपलब्ध हो सकता है । इसलिए वर्षावास सन्तों विदुषी महासती श्री कुसुमवतीजी अपने यश की के लेखन का बसन्तकाल है। यद्यपि इस समय भी सौरभ दिदिगन्त में प्रसारित करें। अपने जीवन भारत के विविध अंचलों से दर्शनार्थी बन्धुओं का के अनमोल अनुभवों के आधार पर धार्मिक संस्कार प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना O AD साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थOA Sinusrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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