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________________ से विरत होकर दीक्षा ग्रहण करने से सम्पूर्ण पृथ्वी का राज्य अपने समस्त दिया । बाहुबली को पोतनपुर का भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ । इस पौराणिक आख्यान से तीन बातें स्पष्टतः प्रतीत होती हैं (अ) किसी एक मूल स्रोत से विश्व की मानव का प्रारम्भ हुआ । यह बात आधुनिक विज्ञान की उस मोनोजेनिस्ट थ्योरी (Monogenist theory) के अनुसार सही है जो मानती है कि मनुष्य जाति के विभिन्न प्रकार प्राणिशास्त्र की दृष्टि से एक ही वर्ग के हैं । पूर्व ऋषभ ने पुत्रों को बांट राज्य मिला । नाम से यह (ब) किसी एक ही केन्द्रीय मूल स्रोत से निकलकर सात मानव समूहों ने सात विभिन्न भागों को व्याप्त कर स्वतन्त्र रूप से पृथक्-पृथक् मानव सभ्यता का विकास किया । यह सिद्धान्त भी आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संभव है जिसमें कहा गया है कि विश्व की प्राथमिक जातियों ने पृथ्वी के विभिन्न वातावरणों वाले सात प्रदेशों को व्याप्त कर तत्तत्प्रदेशों के वातावरण के प्रभाव में अपनी शारीरिक विशिष्ट आकृतियों का विकास किया । (स) पश्चात् पृथ्वी के इन सात भागों में से एक भाग में (पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप में) नो मानव समूहों में जो नौ प्रदेशों को व्याप्त किया उनमें भारतवर्ष भी एक है ।" (ङ) भारतवर्ष - भारतवर्ष से प्रायः इण्डिया उपमहाद्वीप जाना जाता है। किन्तु प्राचीन विदेशी साहित्य में इस इण्डिया उपमहाद्वीप के लिए कोई एक नाम नहीं है । Jain Eco International वैदिक आर्यों ने पंजाब प्रदेश को 'सप्तसिंधव' नाम दिया । बोधायन और मनु के समय में आर्यों ने इस क्षेत्र को 'आर्यावर्त' नाम दिया । रियस ( Darius) तथा हेरोडोट्स ( Herodotus) ने सिन्धु घाटी तथा गंगा के ऊपरी प्रदेश को 'इण्ड' या 'इण्डू' (हिन्दू) नाम दिया। कात्यायन और मेगास्थनीज ने सुदूर दक्षिण में पांड्य राज्य तक फैले सम्पूर्ण देश का वर्णन किया है। रामायण तथा महाभारत भी पाण्ड्य राज तथा बंगाल की खाड़ी तक फैले भारतवर्ष का वर्णन करते हैं । · अशोक के समय में भारत की सीमा उत्तरपश्चिम में हिन्दकुश तक और दक्षिण-पूर्व में सुमात्राजावा तक पहुँच गई थी । कनिंघम ने उस समस्त प्रदेश को विशाल भारत ( Greater India ) नाम दिया और भारतवर्ष के नवद्वीपों से उसकी समा नता स्थापित की 12 इस प्रकार आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं के अनुसार जम्बूद्वीप का विस्तार उत्तर में साइबेरिया प्रदेश (आर्कटिक ओशन) दक्षिण में हिन्द महासागर और उसके द्वीपसमूह, पूर्व में चीन- जापान ( प्रशान्त महासागर ) तथा पश्चिम में कैस्पियन सागर तक समझना चाहिये । अन्त में हम प्रसिद्ध भूगोलशास्त्रवेत्ता, सागर विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष प्रो० एस० एम० अली के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना, कर्त्तव्य समझते हैं जिनके खोजपूर्ण ग्रन्थ, 'दि ज्याग्राफी आफ द पुरान्स' से हमें इस निबन्ध के लेखन में पर्याप्त सहायता प्राप्त हुई । १. डा० एस. एम. अली, 'जिओ० आफ पुरान्स' पृष्ठ - ६-१० ( प्रस्तावना) २. डा० एस. एम. अली, 'जिओ आफ पुरान्स' पृष्ठ - १२६ अध्याय अष्टम, 'भारतवर्ष - फिजिकल' । ३६२ पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ www.jaineffor
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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