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________________ ADAV.. . डा० गदाधर सिंह विश्वविद्यालय प्रोफेसर स्नातकोत्तर हिन्दी-विभाग ह० या० जैन कालेज, आरा । जैन-स्तोत्र-साहित्य : एक विहंगम दृष्टि 2 अकम ज्ञान, कर्म और उपासना-ये तीनों भारतीय श्रद्धा से ही सत्य स्वरूप परमात्मा प्राप्त होता है। साधना के सनातन मार्ग रहे हैं। ज्ञान हमें कर्म- स्तुति का महत्व । अकर्म से परिचित करा शाश्वत लक्ष्य का बोध 'भक्ति रसायन' में लिखा कराता है, कर्म उस लक्ष्य तक पहुँचने का प्रयास काम क्रोध भय स्नेह हर्ष शोक दयादयः । करता है और उपासना के द्वारा हम उस लक्ष्य के पास बैठने तथा उससे तादात्म्य-भाव स्थापित ताप काश्चित्तजतुनस्तच्छान्तौ कठिनं तु तत् ॥ करने में समर्थ होते हैं। इन तीनों के सम्मिलित चित्त को लाख के समान कहा जाता है। वह (8 रूप को ही भक्ति कहते हैं। स्तोत्र या स्तवन उसी काम, क्रोध, भय, स्नेह, हर्ष, शोक आदि के संसर्ग IIKC भक्ति का एक अंग है। में आते ही पिघल जाता है। जिस प्रकार पिघली स्तुति म गुण कथनम् ॥ -महिम्न-स्तोत्र की हुई लाक्षा में रंग घोल देने पर, वह रंग लाक्षा के टीका (मधुसूदन सरस्वती)। कठोर होने पर भी यथावत् रहता है, उसी प्रकार गुणों के कथन का नाम स्तुति है। द्रवित चित्त में जिन संस्कारों का समावेश हो गुण कथन तो चारण या भाट भी करते हैं जाता है, वे संस्कार चित्त के भीतर अपना अक्षुण्ण ARRY) किन्तु वह स्तुति नहीं है । प्राकृत जन या नाशवान स्थान बना लेते हैं। मनोविज्ञान की भाषा में इन्हें तत्त्वों की प्रशंसा स्तुति नहीं है, वरन् सत्य स्वरूप ही 'वासना' कहते हैं। भगवान् के दिव्य मंगलपरमात्मा की प्रशंसा ही स्तुति के अन्तर्गत आयेगी। विग्रह के दर्शन से, उनकी लीलाओं के श्रवण से सत्यमिद्वा उतं वयमिन्द्र स्तवाम् नानृतम् ।। तथा उनके स्वरूप का ध्यान करने से चित्त भी एक विशेष रूप में द्रवीभूत हो जाता है और इस -ऋग्वेद ८/५१/१२. हम उस भगवान् की स्तुति करें, असत्य पदार्थों प्रकार का द्रवीभाव व्यक्ति को लोकोत्तर आनन्द की दिशा में अभिप्रेरित करता है। स्तोत्र का ||KE की नहीं। तमुष्टवाम् य इमा जनान् ॥ -ऋग्वेद ८/८/६ महत्व इसी रूप में है। हम उस भगवान् की स्तुति करें जिसने यह स्तोत्र के माध्यम से भक्त आराध्य के गुणों का सारी सृष्टि उत्पन्न की है। स्मरण करता है और उनके स्मरण से उसमें उन्हीं , ___इस स्तुति या प्रशंसा के पीछे हृदय की उदात्त गणों को अपनाने की प्रेरणा उत्पन्न होती है। वृत्ति श्रद्धा मिली रहती है-श्रद्धया सत्यमाप्यते आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि प्रार्थना से भक्त । (यजु० १६।३०)। भगवान के गुणों को पा लेता हैपचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास ३६३ Foad साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Valleducation Internationar Yor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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