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________________ भारतीय दर्शन : चिन्तन की रूपरेखा दर्शन का अर्थ __दर्शन का सामान्य अर्थ है, देखना और यह अर्थ सर्वजन प्रसिद्ध है। किन्तु प्रत्येक शब्द का व्यंजनात्मक एक विशिष्ट अर्थ और भी हुआ करता है। उसमें अर्थ-गाम्भीर्य भी अधिक होता है। यह लोक में प्रामाणिक भी माना जाता है। दर्शन शब्द को भी यही स्थिति है । वह अपने अन्तस् में विशेष और गम्भीर आशय गर्भित किये हुए है-सत्य का साक्षात्कार करना । क्योंकि लोक जीवन में प्रत्येक प्रवृत्ति की सत्यता का निर्धारण देखने वाले के कथन से किया जाता है, कानों सुनी बात अप्रामाणिक भी हो सकती है । दृश्य और अदृश्य, भौतिक व आध्यात्मिक आदि सभी क्षेत्रों के लिये भी यही जानना चाहिये। अतएव यह सिद्ध हुआ कि सत्य का साक्षात्कार करना दर्शन शब्द का वाच्य व वास्तविक अर्थ है। सत्य का साक्षात्कार क्या है ? इसी सन्दर्भ में यह ज्ञातव्य है कि सत्य क्या है और उसके साक्षा त्कार का अभिप्राय क्या है ? पं० देव कुमार जैन प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको सत्यवादी मानता है । अपने द्वारा दर्शनाचार्य. साहित्यरत्त प्रतिपादित अनुभूत के प्रति इतना आग्रहशील हो जाता है कि उसके कथन का अपलाप करने में भी नहीं झिझकता है। इसको जन्मान्धों के खजांची मोहल्ला हस्ति परीक्षण के उदाहरण से समझा जा सकता है। वे सभी हाथी के एक-एक अंग को समस्त हाथी मान रहे थे। समग्रता की दृष्टि से बीकानेर उनका कथन सत्य नहीं है । अतएव यह आशय हुआ कि सत्य वह है जो पूर्ण हो और पूर्ण होकर यथार्थ रूप से प्रतीत हो तथा साक्षात्कार का अभिप्राय होगा कि जिसमें सन्देह, विपर्यय, मतभेद, भ्रम आदि न हों । सत्य-साक्षात्कार में भ्रान्ति क्यों ? ___सत्य को जानने और समझने की वृत्ति मनुष्य मात्र में साहजिक है । साधारण-असाधारण सभी जन सत्य के उपासक हैं, सत्य का साक्षात्कार करने की साधना में तल्लीन रहते हैं । परन्तु सत्यान्वेषण, सत्य-निरूपण और सत्य-प्रकाशन की पद्धति सबकी अपनी-अपनी होने से भ्रांति उत्पन्न हो जाती है। इसका पहला कारण है उनका एक पक्षीय विचार, जो सत्यांश तो हो सकता है, किन्तु संपूर्णता को स्पर्श तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन २६५ * साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थORG Jain Education International For private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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