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________________ रचना पूर्वक आराधना करने वाले भक्तों के अनेक प्रकार की ऋद्धि-समृद्धि देखी जाती है। उन्हें भूतपिशाच, डाकिनी और दुष्ट ग्रह पराभव नहीं करते हैं। पुत्र, कलत्र, धन-धान्य, राजश्री आदि सब सम्पन्न रहते हैं। (लेख के अन्त में मंत्र दिया जा रहा है।) इस प्रकार से अम्बिका देवी के बहुत से मंत्र रक्षा करने वाले हैं। यह स्मरण योग्य मार्ग क्षेमादिगोचर है। उन मंत्रों व मण्डल को यहां विस्तार भय से नहीं दिया जा रहा है। इन्हें गुरुमुख से जानना चाहिए। वह कल्प निर्विकल्प चित्तवृत्ति से बांचने, सुनने वाले संमोहित पूर्ण होते जब अम्बिका शासन देवी हो गई वह सतत जागरुक रहकर शासन सेवा में प्रवृत्त होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने लगी तो समस्त भारतवर्ष में उसकी मूर्तियां और मन्दिर बनने लगे एवं जिनालय एवं स्वतंत्र मन्दिर भी प्रतिष्ठित हो गये। गिरनार पर्वत की दूसरी ट्रंक अम्बिका देवी के लिए प्रसिद्ध है। सुदूर बंगाल में भी एक अम्बिकापुर है जहां अम्बिका देवी का मन्दिर है। उसके पास ही भगवान ऋषभदेव का प्राचीन मन्दिर है। हमें नदी पार करके बस द्वारा बांकुड़ा जाना था। अत: प्राचीन जैन मन्दिर का सूक्ष्मता से अध्ययन नहीं कर सके। परन्तु अम्बिका मन्दिर का जीर्णोद्धार बंगला संवत् 1320 दिनांक 16 फाल्गुन को राजा राईचरण धवल ने रानी लक्ष्मीप्रिया की स्मृति में कराने का उल्लेख देखा था। पाकवीर में एक प्राचीन पांच मन्दिरों का समूह है जहां अनेक खण्डित मूर्तियां हैं इनमें से एक अम्बिका की भी है। नाडोल के दांता गांव की पंचतीर्थी के लिए लिखा है, “दांता गांवने देहरो जुहारूं जगदीश। जोगमाया अधिष्ठायका जय अम्बा देवीश'। दो एक जगह दक्षिणी भारत में भी अम्बिका देवी के नाम से गांव हैं। श्री जिनप्रभसूरिजी महाराज ने सात सौ वर्ष पूर्व "विविधतीर्थ कल्प" की रचना की जिसमें अनेक स्थानों में अम्बिका देवी के मन्दिरों का उल्लेख किया है। उज्जयंत कल्प में अम्बिका के आदेश से काश्मीर के रत्न श्रावक ने लेप्य मय बिंब के स्थान पर पाषाणप्रतिमा स्थापित की। इसी में अंबिका आश्रम पद में स्वर्ण सिद्धि प्रयोग की चमत्कारिक बात भी लिखी है। रेवन्तगिरिकल्प में लिखा है कि काश्मीर के श्रावक अजित व रत्न आये थे। प्रतिमा गल जाने से उन्होंने आहार त्याग दिया तो अम्बिका ने संघपति को उठाकर रत्नमय बिम्ब कंचन बालाणक से एक तीर से खींच प्रतिमा लाकर रख दी। उन्हें सीधे देखने पर मना करने पर भी उन्होंने देखा तो वह निश्चल हो गई। देवी ने कुसुम वृष्टि पूर्वक जय-जय कार किया। अब भी गिरि पर चढ़ने पर अम्बिका देवी का भवन दिखाई देता है। कन्नौज से यक्ष नामक एक महर्द्धिक व्यापारी के गुजरात आने पर अणहिलपुर पाटन के निकट लक्षाराम में आकर ठहरा, वहां सार्थ सहित रहते वर्षाकाल आ गया। मेघ बरसने लग गये। भादवे के महिने में बैलों का सारा सार्थ कहीं चला गया। पता नहीं लगा। वह व्यापारी अत्यंत चिन्ता में सो रहा था। अम्बादेवी प्रकट हुई और कहा, बेटा सोते हो या जागते हो। सेठ ने कहा कि मां मुझे नींद कहां? जिसका सर्वस्व भूत बैलों का सार्थ चला जावे उसे नींद कहां? देवी ने कहा भद्र! इसी लक्खाराम में इमली के वृक्ष के नीचे तीन प्रतिमायें हैं। तीन पुरुष जमीन खुदवा कर इन्हें ग्रहण करो। एक प्रतिमा अरिष्टनेमि भगवान की, दूसरी पार्श्वनाथ भगवान की और तीसरी अम्बिका देवी की। यक्ष सेठ ने कहा कि भगवती ! इमली के वृक्ष बहुत हैं अत: उस वृक्ष को कैसे जाना जाए? देवी ने कहा कि धातुमय मण्डल एवं पुष्पों का ढेर जहां देखो, उसी स्थान पर तीनों प्रतिमाएं हैं। उन्हें प्रकट करने पर तुम्हारे बैल स्वयं आ जावेंगे। इन प्रतिमाओं को प्रातः काल पूजा विधान पूर्वक करके प्रकट की गई। ब्रह्माणगच्छ के आचार्य श्री यशोभद्र सूरिजी के पधारने पर सं0 502 मार्गशीर्ष पूर्णिमा को ध्वजारोपण महोत्सव हुआ। वे अरिष्ठनेमि भगवान कोहण्डी कृत प्रतिहार्य से आज भी पूजे जाते हैं। जिनप्रभसूरिकृत यह कल्प 33 ग्रन्थाग्रंथ परिमित है। काश्मीर से आये हुए रतन श्रावक ने गिरिनार पर कुष्माण्डी अम्बिका के आदेश से लेप्यमय बिम्ब के स्थान पर पाषाणमय नेमिनाथ प्रतिमा स्थापित की। अम्बाजी के आदेश से स्वर्णसिद्धि, रौप्य सिद्धि आदि प्राप्त की। इस प्रकार से अम्बिका देवी को न्हवण, अर्चन, गन्ध, धूप, दीपक से पूजन कर प्रणाम करके धनार्थी अर्थ लाभ ग्रहण करते हैं। ___ विविध तीर्थ कल्प के पृष्ठ 7 पर गिरनार पर अम्बिका के वर्णन की गाथा... सिंह याना हेम वर्णा सिद्धबुद्ध सुतान्विता कृप्रायं लुम्बिभृत पाणिरत्राम्बासंघ विघ्नहत्॥3॥ इस पर्वत पर सुवर्ण सी कान्तिवाली सिंहवाहिनी, सिद्ध और बुद्ध नामक पुत्रों को साथ लिये हुए कमनीय आम्र की लुम्ब जिसके हाथ में है ऐसी अम्बा देवी यहां रही हुई है। यह संघ के विघ्नों का संहार करती है। ___ अहिच्छत्रा कल्प में लिखा है कि प्राकार के समीप नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा सहित सिद्ध बुद्ध धारित, आम्रलुम्ब धारणी सिंह वाहिनी अम्बिका देवी विद्यमान है। मथुराकल्प में लिखा है कि वहां नरवाहिनी कुबेरा और सिंहवाहिनी अम्बिका देवी विद्यमान है। हस्तिनापुर के दोनों कल्पों के अनुसार वहां अम्बिका देवी का देवकुल था। सत्यपुर (सांचोर) तीर्थकल्प के अनुसार वल्लभी के शीलादित्य द्वारा रत्नजटित कांगसी के लिए अपमानित शंका सेठ गज्जणपति हमीर को चढ़ाके लाया तब चन्द्रप्रभ प्रतिमा को अम्बादेवी और क्षेत्रपाल के बल से गगनमार्ग द्वारा देवपतन ले जाई गई। _ विविधतीर्थ कल्प में एक रोचक प्रसंग और वर्णित है। इसमें गांधार जनपद सरस्वती पत्तन में मदन सार्थवाह उज्जयन्त गिरि का महात्म्य सुनकर वहां गया। मार्ग में देवी ने रूदन करती स्त्री के रूप में हुतासन प्रवेश कराया। अग्नि का जल हो गया। देवी ने स्तुति महिमा की। आगे अम्बा के वर से भील को जीतकर मथुरा स्तूप और चम्पक में वासुपूज्य स्वामी का वन्दन-पूजन किया। सौराष्ट्र के मार्ग से मिथ्या दृष्टि देवी ने परीक्षा पूर्वक संतुष्ट होकर जय जयकार किया और निर्विघ्न यात्रा करने को हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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