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________________ ● भंवरलाल नाहटा शासन देवी अम्बिका अम्बिका देवी द्वाविंशंतम तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान की शासन देवी है। प्रभावशाली एवं जागरूक होने से इसकी मान्यता न केवल जैनों में ही रही है किन्तु जैनेतरों में भी इसका सार्वभौम प्रचार हुआ है। अम्बिका माता की मूर्तियां अनेक स्थानों पर पूज्यमान संप्राप्त है। अनेक म्यूजियमों में भी इसकी कई मूर्तियां उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम यह शासन देवी कैसे हुई यह जानने के लिए इसका पूर्वभव वृत्तान्त यहां जनप्रभसूरि कृत "विविध तीर्थ कल्प" से दिया जाता है। अम्बिका देवी का विविध तीर्थ कल्प में वर्णन श्री उज्जयंत गिरि शिखर के मंडन श्री नेमिनाथ भगवान को नमस्कार करके कोहंडी देवी कल्प वृद्धोपदेशानुसार लिखता हूं। सौराष्ट्र देश में धनधान्य सम्पन्न कोडीनार नामक एक नगर है। वहां सोमनामक ऋद्धि-समृद्ध, षट्कर्मपरायण, वेदागमपारगामी ब्राह्मण था । उसकी अंबिणि नामक स्त्री थी। यह शील रूपी मूल्यवान अलंकार को धारण करने वाली थी। उसके दो पुत्र थे। 1 सिद्ध और 2- बुद्ध । एक दिन पितृ श्राद्ध पक्ष आने पर सोमभट्ट ने श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को निमंत्रित किया। वे ब्राह्मण वेदपाठी एवं अग्निहोत्र करने वाले थे। अंबिणि ने जीमणवार के लिए खीर, खांड, दाल-भात व्यंजन पक्वानादि तैयार किये। उसकी सासु स्नान कर रही थी। उसी समय मासक्षमण के पारणे के लिए एक साधु उसके घर में भिक्षार्थ आया उसको देखकर अम्बिका उठी और भक्ति पूर्वक उस मुनिराज को भात पाणी देकर प्रति लाभा । साधु भिक्षा लेकर चला गया। सासु नहा करके लौटी। हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International रसोई में जाने पर उसने देखा कि खाद्य पदार्थ पर शिखा नहीं है। उसे बड़ा क्रोध आया और बहू से बोली कि तूने यह क्या किया ? " पापिनी ! अभी तो कुलदेवता की पूजा ही नहीं की है और न ब्राह्मणों को भोजन ही कराया है और न पिंडदान ही हुआ है। अत: तुमने अप्रि-शिखा किस प्रकार से साधु को दे दी । " सासू ने वह सारा वृत्तान्त अपने पुत्र सोम भट्ट को कहा । वह भी बहुत नाराज हुआ। उसने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया। पराभव से दुखी होकर अम्बिणी अपने दोनों पुत्रों को लेकर चली गई। वह बहुत दुखी हुई। उसने अपने एक बच्चे बुद्ध को गोद में लिया और दूसरे पुत्र सिद्ध की अंगुली पकड़कर चलने लगी। मार्ग में प्यास से पीड़ित होकर पुत्र पानी की मांग करने लगे। वहां पानी उपलब्ध नहीं था अम्बिणी अधुपूर्ण हो गई। ठीक उसी समय सामने एक सरोवर दिखाई दिया। उस अमूल्य शीतल जल से उसने अपने दोनों पुत्रों की प्यास बुझाई। भूखे बालकों ने जब भोजन मांगा तो सामने रहा आम्रवृक्ष तत्काल फला। अम्बिका ने उन्हें आम्रफल खिलाये। जब वे आम्रवृक्ष के नीचे सो रहे थे तब वे पत्तलें जिन पर उन्होंने आम्रफल खाये और उन्हें फेंक दिया था वे अम्बिका के शील प्रभाव से सोने की हो गई। इस प्रकार से वे पत्तलें, दोने और बाहर बिखरी हुई जूठन सब सोने और मोती के हो गये। उसी समय उसके घर जिसे वह छोड़ कर आई थी वहां भी अग्निशिखा युक्त बर्तन भरे देखे। उसकी सास को वह सब चमत्कार मालूम हुआ। उसने अपने बेटे सोम भट्ट से कहा कि बेटा तेरी बहू सुलक्षणी और पतिव्रता है उसको तू वापस घर ले आ मां द्वारा दिये आदेशानुसार बेटा पश्चाताप की अग्नि में जलता हुआ वह अपनी पत्नी को वापस लिवा लाने को गया। अंम्बिणी ने अपने पति को आता हुआ देखा तो उसने दिशावलोकन किया तो सामने कूप दिखाई दिया। उसने जिनेश्वर भगवान की मन में अवधारणा करते हुए अपने आपको कुएं में गिरा दिया। उसे सुपात्र दान का फल मिले, वह कामना की। शुभ अध्यवसायों से भरकर वह सौधर्म कल्पस्थित चारयोजन वाले कोहण्ड विमान में अम्बिका देवी नामक महार्द्धिक देवी हुई विमान के नाम से उसे कोहण्डी भी कहते हैं। सोमभट्ट ने उसे कुएं में गिरते हुए देखकर वह स्वयं भी कुएं में गिर गया। वह भी मर करके वहीं पर देव हुआ। अभियौगिक कर्म से सिंहरूप धारण कर वह अम्बिका देवी का वाहन हो गया। अन्य लोग यह भी कहते हैं कि अम्बिका ने रैवन्तगिरि पर झम्पापात किया था सोमभट्ट भी उसके पीछे वहीं मरा था। अम्बिका भगवती के चार भुजाएं हैं। इनके दाहिने हाथ में आम्रलुम्ब एवं पाश है। बाएं हाथ में पुत्र एवं अकुंश धारण किए हुए हैं। उनका शरीर तपे हुए सोने जैसा है यह नेमिनाथ भगवान की शासनदेवी है। इसका गिरनार शिखर पर निवास है। उसके मुकुट, कुण्डल, मुक्ताहार, रत्नकंकण नूपुरादि सर्वागआभरण रमणीय है वह सम्यग् दृष्टि से सबके मनोरथ पूर्ण करती है । विघ्न दूर करती है। उस देवी का मंत्र मंडलादि For Private & Personal Use Only विद्वत् खण्ड / ६८ www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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