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________________ कोई भी व्यक्ति गांव में जाकर देख सकता है कि वहां की स्थिति कितनी भयावह है। गांवों के बहुसंख्यक निवासी न केवल गरीबी और गंदगी के शिकार हैं निरक्षरता, अंधविश्वास तथा रोग भी उन्हें चारों ओर से घेरे हुए हैं। शहर के लोग मानते हैं कि गांवों के निवासी उनकी मेहरबानी पर जीते हैं। प्रत्येक उपक्रम में गांधीजी जहां साध्य को महत्व देते थे वहां साधनों की शुद्धता पर भी जोर देते थे। उनका कहना था, "लोग कहते हैं आखिर साधन तो साधन ही है।" मैं कहूंगा, "आखिर तो साधन ही सब कुछ है जैसे साधन होंगे वैसा ही साध्य होगा। साधन और साध्य को अलग करने वाली कोई दीवार नहीं है। वास्तव में सृष्टिकर्ता ने हमें साधनों पर नियंत्रण दिया है, साध्य पर तो कुछ भी नहीं दिया। लक्ष्य की सिद्धि ठीक उतनी ही शुद्ध होती है जितने हमारे साधन शुद्ध होते हैं। यह बात ऐसी है, जिसमें किसी अपवाद की गुंजाइश नहीं है। कोई असत्य से सत्य को नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिए हमेशा सत्य का आचरण करना ही होगा।" ___ गांधीजी शासन के लिए लोकतंत्र को सर्वोपरि मानते थे। लोकतंत्र में लोक पहले आता है “तंत्र" बाद में। लोक से उनका आशय लोक शक्ति से था। बिना लोक-शक्ति के सच्चा लोकतंत्र न स्थापित हो सकता है, न चल सकता है। इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने अपने सभी आंदोलनों के द्वारा जन-जन में चेतना पैदा करने का प्रयास किया। वह रचनात्मक कार्यों के द्वारा देश का अभ्युदय करना चाहते थे। उनका कहना था, “मैं ऐसी स्थिति लाना चाहता हूं जिसमें सबका सामाजिक दर्जा समान माना जाय"। रचनात्मक काम का यह अंग अहिंसापूर्ण स्वराज्य की मुख्य चाबी है। आर्थिक समानता के लिए काम करने का मतलब है पूंजी और मजदूरी के झगड़ों को हमेशा के लिए मिटा देना। इसका अर्थ यह होता है कि एक ओर से जिन मुट्ठी भर पैसे वालों के हाथ में राष्ट्र की सम्पत्ति का बड़ा भाग इकट्ठा हो गया है उनकी सम्पत्ति को कम करना और दूसरी ओर से जो करोड़ों लोग भूखे और नंगे रहते हैं, उनकी सम्पत्ति में वृद्धि करना, जब तक मुट्ठी भर धनवानों और करोड़ों भूखे रहने वालों के बीच बेइंतहा अंतर बना रहेगा, तब तक अहिंसा की बुनियाद पर चलने वाली राज्य-व्यवस्था कायम नहीं हो सकती। आजाद हिन्दुस्तान में देश के बड़े-से-बड़े धनवानों के हाथ में हुकुमत का जितना हिस्सा रहेगा उतना ही गरीबों के हाथ में भी होगा। और तब नई दिल्ली के महलों और उनकी बगल में बसी हुई गरीब मजदूर बस्तियों के टूटे-फूटे झोपड़ों के बीच जो दर्दनाक फर्क आज नजर आता है, वह एक दिन को भी नहीं टिकेगा।। गांधीजी की सारी प्रवृत्तियों का केन्द्रबिन्दु सत्य और अहिंसा थे। उन्हीं के आधार पर वह देश के नव निर्माण के आकांक्षी थे। दुर्भाग्य से आज देश मूल्यों के भयंकर संकट से गुजर रहा है। भ्रष्टाचार, महंगाई, आतंक, हिंसा, बलात्कार आदि व्याधियों ने नैतिक मूल्यों का हास कर दिया है। जिस देश में दूध और दही की नदियां बहा करती थीं, उस देश में आज शराब की नदियां बह रही हैं। काला बाजार उजले बाजार पर हावी हो रहा है और येन-केन-प्रकारेण सत्ता को हड़पने और पैसे से अपनी तिजोरियां भरने के लिए देशवासी लालायित हैं। सत्य और अहिंसा का गला घुट रहा है। हिंसा आज इसीलिए उग्र हो रही है क्योंकि अहिंसा निस्तेज हो गई है। अनीति आज इसीलिए फल-फूल रही है, क्योंकि नीति निष्प्रभ हो रही है। इसीसे हमें लगता है कि आज एक और गांधी की आवश्यकता है, लेकिन जिस गांधी ने देश को मानवीय मूल्यों के राज-मार्ग पर अग्रसर किया था, वह गांधी तो चला गया, अब वह आने वाला नहीं है, लेकिन अपने पीछे वह गांधी बहुत कुछ ऐसा छोड़ गया है जिस पर सामूहिक रूप से व्यवहार किया जाय तो गांधी पुनरुज्जीवित हो सकता है। उसी के लिए अब हमें संकल्पबद्ध होकर प्रयास करना चाहिए। सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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