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________________ देश का मुंह सत्ता की ओर से मोड़ कर सेवा की ओर करना चाहते थे। पर वह न होना था, न हुआ। गांधीजी आजादी के चन्द दिनों के बाद चले गये। उनके जाने के पश्चात् सारी स्थिति बदल गई। गांधी ने खरे मनुष्य को ऊंचा स्थान दिया था और भावी भारत का अधिष्ठान मानवता को माना था, किन्तु देश के नेताओं का ध्यान शासन सम्भालने और भारतवासियों की दरिद्रता को दूर करने की ओर था। विदेशी सत्ता ने भारत को चूस कर भीतर से खोखला कर दिया था। इस स्थिति को सम्भालने के लिए नये शासकों ने नई नीति अपनाई। जहां गांधी ने मनुष्य को बिठाया था, वहां उन्होंने राजनीति और अर्थ को बैठाया। परिणाम यह हुआ कि मानव की धुरी टूटी और उस स्थान पर राजनीति तथा अर्थ का वर्चस्व स्थापित हुआ। इस वर्चस्व को राजनीति के ही नहीं, अन्य सभी क्षेत्रों में स्वीकार किया गया। सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी अनुभव करने लगा कि यदि उसके हाथ में सत्ता और पैसा नहीं है तो समाज में उसका अस्तित्व ही नहीं है। इसीसे लोगों ने आंख मूंद कर सत्ता और पैसे के पीछे दौड़ लगाई। इसका परिणाम जो होना था, वही हुआ। पद और पैसे को ऊंचा स्थान मिला और इंसान दोयम दर्जे पर आ गया। देश के मूल्य बदल गये, परिस्थितियां बदल गई, परिवेश बदल गये। नैतिक मूल्यों का स्थान भौतिक मूल्यों ने ले लिया। जब पदार्थ मूल्यवान बन जाता है तो मनुष्य के विवेक पर पर्दा पड़ जाता है। इस स्थिति ने देश में अनेक व्याधियों को जन्म दिया। इन व्याधियों में सबसे बड़ी व्याधि भ्रष्टाचार है। आज कोई भी क्षेत्र उससे अछूता नहीं है। राजनीति तो उससे पूरी तरह आक्रांत है ही, समाज व्यवस्था, अर्थ व्यवस्था, धर्म संगठन आदि सभी क्षेत्र उसके शिकार हो रहे हैं। राजनीति का इतना बोल-बाला है कि उसने सब कुछ अपने प्रभाव के घेरे में समेट लिया है। किसी युग में धर्म राजनीति की अगुआई करता था, आज धर्म राजनीति का अनुचर बन गया है। गांधी ने स्वतंत्र भारत के लिए नये मूल्यों की संहिता बनाई थी। उन्होंने कहा था कि जो सच्चा सेवक है. वही देश का सर्वोच्च शासक होगा। उन्होंने कहा था कि स्वतंत्र भारत में उच्च और निम्नवर्ग नहीं रहेंगे। उन्होंने कहा था कि देश के सभी निवासी समष्टि के हित में व्यष्टि का हित मानेंगे और वे अपने स्वार्थ से अधिक देश के हित को वरीयता प्रदान करेंगे। प्राचीन काल से भारतीय मनीषा ने घोष किया था- "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया" यानी सब सुखी हों, सब नीरोग हों। इसी में से गांधी का सर्वोदय का दर्शन उपजा था। सबकी भलाई के लिए उन्होंने कुछ मूल-भूत सिद्धांत निश्चित किये। इन सिद्धांतों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सिद्धांत सत्ता के विकेन्द्रीकरण का था। वह नहीं चाहते थे कि सत्ता इने-गिने व्यक्तियों की मुट्ठी में केन्द्रित हो। उन्होंने कहा कि अणु बम के इस युग में यदि सत्ता एक स्थान पर केन्द्रीभूत रहेगी तो एक बम उसे सहज ही नष्ट कर देगा। लेकिन यदि सत्ता जन-जन में बंटी रहेगी तो कोई कितने बम गिरायेगा? इसलिए उन्होंने शासन की बुनियाद पंचायत को माना। उन्होंने कहा कि हमारा शासन नीचे से ऊपर की ओर रहेगा। पंचायत को वह शासन की नींव बनाना चाहते थे। पक्की नींव पर ही पक्का भवन खड़ा रह सकता है। लेकिन सत्ता की होड़ ने सारी राजनैतिक शक्ति को मुट्ठी भर लोगों के हाथों में सीमित कर दिया। सत्ता के साथ सारे साधन और वैभव भी उनके हाथों में केन्द्रित हो गये। ___ गांधीजी आर्थिक समानता के पक्षपाती थे। वह जानते थे कि एक ओर ढेर लगेगा तो दूसरी ओर अपने आप गड्ढा बन जायेगा। उन्होंने एक स्थान पर लिखा, “अगर धनवान लोग अपने धन को और उसके कारण मिलने वाली सत्ता को खुद राजी-खुशी से छोड़कर और सबके कल्याण के लिए, सबके साथ मिलकर बरतने को तैयार न होंगे तो यह सच समझिये कि हमारे मुल्क में हिंसक और खूखार क्रान्ति हुए बिना नहीं रहेगी।" उन्होंने धनपतियों से कहा कि वे अपनी नितांत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन को रखकर शेष धन को समाज की धरोहर मानें और उसके न्यासी बन कर रहें। उन्होंने सांप्रदायिक एकता पर भी बल दिया। उन्होंने कहा “एकता का मतलब सिर्फ राजनैतिक एकता नहीं है। सच्चे मानी तो है वह दोस्ती, जो तोड़े न टूटे। इस तरह की एकता पैदा करने के लिए सबसे पहली जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस-जन, वे किसी भी धर्म के मानने वाले हों, अपने को हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी सभी कोमों का नुमाइंदा समझें। उन्होंने मानव के परिष्कार के लिए ग्यारह व्रतों का प्रावधान किया। उनमें अन्य बातों के साथ सबसे अधिक बल मद्य-निषेध पर दिया। उनका मानना था कि शराब सब बुराइयों की जननी है। उन्होंने तत्कालीन सरकार से कानून बनाकर उस व्याधि को रोकने का जहां अनुरोध किया, वहां शराब की दुकानों पर धरने की भी व्यवस्था की। मुझे याद आता है कि धरने के लिए उन्होंने मुख्यत: बहनों को चुना, क्योंकि वे मानते थे कि जितना प्रेम, करुणा और संवेदनशीलता बहनों में होती है उतनी पुरुषों में नहीं। बहनें शराब की दुकानों पर खड़ी हो जाती थीं और जब कभी कोई शराब पीने के लिए वहां आता था तो वे हाथ जोड़कर रोकने का प्रयत्न करती थी, किन्तु यदि कोई सिरफिरा व्यक्ति उनकी बात नहीं मानता था तो वे दुकान के सामने लेट जाती थीं तब किसी की भी हिम्मत नहीं होती थी कि वह उनके सीने पर पैर रखकर दुकान के भीतर प्रवेश करे। गांधीजी भारत को गांवों का देश मानते थे। उनका कहना था कि देश के चंद शहर लाखों गांवों की कमाई पर जीते हैं। इसलिए उन्होंने बार-बार कहा कि गांव उठेंगे तो देश उठेगा। गांवों का पतन होगा तो देश का पतन अवश्यम्भावी है। अत: उन्होंने नवयुवकों से आग्रह किया कि वे देहातों में जाएं और देहातियों के बीच उन्हीं की तरह रहकर उनके अभिक्रम को जागृत करें और गांवों की बुराई दूर करें, लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के दिनों में शहर पनपे, गांव सूखे। आज हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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