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________________ पुष्करलाल केड़िया युवा पीढ़ी और समाज सेवा : एक पैगाम - युवा शक्ति के नाम प्रताप के चेतक का नाम तुम जानते हो - जो आज से चार सौ वर्ष पूर्व हुआ था। क्या अपने पूर्वजों के बारे में जानते हो- जो सिर्फ सौ वर्ष पहले हुए थे? स्मरण उसी का किया जाता है जो औरों के लिए जीता है। __ आज समाज एवं देश की निगाहें- सिर्फ युवाशक्ति की ओर है। वैसे आज जिस वातावरण में तुम रह रहे हो- सभी बातें जीवन के प्रतिकूल है। दूरदर्शन एवं सभी प्रचार माध्यमों में धूम्रपान, वासना, फिजूलखर्ची आदि दृश्यों की भरमार है। लगता है जीने की कला का आधार ही बदल रहा है। जिन अभिनेताओं को हम श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं- वे ही अभिनेता-अभिनेत्री अब इन विज्ञापनों में अर्थ लाभ के लिए अपनी गरिमा को भूलकर सहर्ष योगदान दे रहे हैं। अशोक कुमार पान पराग में, धर्मेन्द्र शराब में और न जाने कौन-कौन, कैसे-कैसे... तुम तो देखते ही होगे यह सब । क्या तुम भी शराब, पान पराग, फैशन, वासना एवं किसी भी तरह धनोपार्जन करना ही जीवन का आधार बनाना चाहते हो? उन सब अभिनेताओं को अपने विचारों से अवगत कराओ। उनसे अनुरोध करो- ऐसे विज्ञापनों से अपनी छवि न बिगाड़ने की। __तुम कम्पास के बारे में अवश्य जानते होगे। कम्पास को रखते ही तुमने देखा होगा कि उसकी सूई उत्तर दिशा की ओर चली जाती हैजानते हो यह आकर्षण-शक्ति कितनी दूर है- तुम हैरान रह जाओगे यह जानकर कि यहां से करीब सोलह हजार किलोमीटर दूर उत्तरी गोलार्द्ध में यह चुम्बकीय आकर्षण-शक्ति है- जो इस जरासी नोक को अपनी ओर खींच रही है। इसी तरह हम सबकी आत्मा उस परम पिता परमात्मा की ओर खींची रहती है जो कम्पास की तरह ठीक दिशा निर्देश करता है। लेकिन यदि कम्पास असंतुलित हो अथवा उसका स्क्रू-पूर्जा ढीला हो जाये तो वह सही दिशा नहीं दिखाता। ठीक यही हाल हमारी आत्मा का है। यदि हम असंतुलित हो जायें अथवा मानसिक यंत्र का कोई भी पूर्जा गड़बड़ा जाये तो हमारी आत्मा सही निर्देश नहीं देती। तुम जानते होगे कि यह कम्पास पचास रुपये का भी आता है एवं कई लाख रुपयों का भी। लाखों रुपयों के कम्पास वाला व्यक्ति हवाई जहाज द्वारा हजारों व्यक्तियों को अपने निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचाता है। अपनी आत्मा को जगाओ उसी बड़े कम्पास की तरह, औरों को सही दिशा दिखाने के लिए। जीवन एक-एक क्षण से बना है। सेकेन्ड से मिनट, मिनट से घंटा, घंटे से दिन, दिन से सप्ताह, सप्ताह से वर्ष और इसी क्रम को हम जीवन कहते हैं। एक व्यक्ति कोई भी कारबार, नौकरी अथवा कर्म करके यदि सिर्फ अपना एवं परिवार का ही निर्वाह करता है- तो वह यदि सौ के बदले दो सौ, चार सौ वर्ष भी जीये तो उसे यही क्रम करते रहना है। समय को सुकार्य में भी लगाना है, इसका ध्यान हमेशा रखना। ___ हमारा शरीर पांच तत्वों का एक अद्भुत मिश्रण है। संत तुलसीदास ने मानव शरीर के लिये लिखा है, "बड़े भाग मानुष तन पावा"। अत: मेरे युवा साथियों! इस पैगाम में मैं आपको आप नहीं कहकर तुम कह रहा हूं। ईश्वर को हम तू कहकर सम्बोधित करते हैं। इसीलिये इस अति अपनत्व के तुम शब्द का सम्बोधन कर रहा हूं। तुमने सुना होगा - एक बार एक भक्त ने भगवान से प्रश्न किया। "प्रभु तेरे में मेरी पूरी श्रद्धा है - तुझको मेरे पर विश्वास है या नहीं?" प्रभु ने कहा - 'तेरी मेरे में पूरी श्रद्धा होती तो तू यह प्रश्न ही नहीं करता। मुझे तुम पर पूरा विश्वास है इसीलिये अपने मन की बात कह रहा हूं।' ___ जहां भी तुम जैसे युवा साथियों की जमात खड़ी होती है- जानते हो सबकी दृष्टि उधर क्यों चली जाती है। तुम्हारे समूह में देखने वालों को उस विराट स्वरूप का बोध होता है जो सृष्टि रचना के पांच तत्वों में छिपा पड़ा है। समुद्र में तूफान, वायु में आंधी, अग्नि में दावानल, मिट्टी में सहनशीलता एवं आकाश में तेज। सभी कुछ तो है तुम्हारे अन्दर। सब चाहते हैं- तुम अपनी इन महान् शक्तियों को पहचानो और मर्यादा में रहकर इनका सदुपयोग करो। किसी भी महापुरुष की जीवनी में उन्होंने जीवन में क्या किया हैइसीका कथानक रहता है। औरों के भले के लिए क्या किया हैइसी का उल्लेख रहता है। कोई व्यक्ति सिर्फ अपना एवं परिवार का ही निर्वाह करता रहे- उसे परिवार वाले भी स्मरण नहीं करते। राणा हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012029
Book TitleJain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKameshwar Prasad
PublisherJain Vidyalaya Calcutta
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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