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________________ श्री अतिशय क्षेत्र कुंडलपुर में स्थित श्री जैन उदासीन आश्रम के संस्थापक पं० बाबू लाल जी शास्त्री भू०पू० प्रधानाध्यापक, जैन पाठशाला, कटकी, मध्य-प्रदेश पूज्य बाबा गोकल प्रसाद जी वर्णी के संस्मरण और शिष्य को आशीर्वचन कटनी की जन शिक्षा संस्था से आज जैन समाज भली-भांति परिचित है। यह संस्था प्रतिवर्ष अनेक विद्यार्थियों को विद्वान् बनाकर जन-साधारण की भली-भाँति सेवा कर रही है और दिनोंदिन प्रगतिशील है। इसकी प्रगति में इसका सुव्यवस्थित रूप में हो रहा संचालन मुख्य सहायक है, जो इसे लोकप्रिय बनाकर इसका भरणपोषण कर रहा है। इसका श्रेय इसके सुयोग्य संचालक वाणी-भूषण, व्रती पंडित जगन्मोहनलालजी सिद्धान्तशास्त्री को है। जिस भाँति शैशव अवस्था में माता की अमित ममता से हए लालन-पालन और सिखाये गए बोलचाल, व्यवहार आदि का स्मरण कर कृतज्ञ-जन वयस्क होने पर अपनी माता की सेवा करना अपना कर्तव्य मानता है, ठीक उसी प्रकार ये भी इस संस्था की सेवा करने में अथक परिश्रम कर रहे हैं। आज के पचास वर्ष पूर्व इस संस्था की जननी जैन पाठशाला में आपने हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में लौकिक तथा जैनधर्म विषयक ज्ञान बालबोध और प्रवेशिका कक्षाओं में पढ़कर प्राप्त किया था और उसी के आधार पर स्नातकोत्तर ज्ञान संपादन कर समाज व राष्ट्र-सेवा तथा जैनधर्म प्रभावना बढ़ाने में समर्थ हुए। ये संस्था के उसी ऋणभार के चुकाने के रूप में आज अथक परिश्रम कर रहे हैं। आपने अपने बाल्य जीवन में अपने पूज्य पिता स्वर्गीय बाबा गोकल प्रसादजी की व्रती जीवनचर्या से जो आदर्श सदाचार का अभ्यास किया था, आज अपना उसी के अनुकूल इन्द्रिय-जित व्रती जीवन बनाये हुए अपने छात्रों को भी सदाचारी बना रहे हैं। इतना ही नहीं, चारित्र पालन में अत्यन्त प्रमादी पंडितों के सन्मुख आदर्श भी उपस्थित कर रहे हैं। पंडित जी के पिता श्रीमान् गोकल प्रसाद जी जबलपुर जिलान्तर्गत मझौली कस्बा के निवासी सद् गृहस्थ सज्जन थे। आपकी एक कन्या विनयश्री और एक पुत्र जगन्मोहन-मात्र दो सन्तानें थीं। आप कन्या का पाणिग्रहण जबलपुर के कालेज के विद्यार्थी सदाचारी नवयुवक सिंघई बट्टीलालजी के साथ कराकर निश्चिन्त हुये थे कि दैवदुर्विपाक से कहें सन् १९०९ में बीमारी से आक्रांत होकर आपकी सुलक्षणा आज्ञाकारिणी पतिव्रता धर्मपत्नी स्वर्गवासिनी हो गई। इनके वियोग से आप दुःखी हो गये। इसके कुछ दिनों के पश्चात् आप कटनी में आये। यहाँ आपके मौसेरे भाई स. सि. कन्हैया लाल जी, रतन चंद जी, दरबारी लाल जी और परमानंद जी सम्मिलित रूप में रहते थे। ये कटनी के सुप्रतिष्ठित सवाई सिंघई कन्हैया लाल गिरधारी लाल फर्म के स्वामी थे। इन चारों भाइयों ने आपका अच्छा आदर किया, भली-भांति समझा बुझाकर आपके संतप्त चित्ता को सांत्वना पहुंचाई। अतएव आप कटनी में रहने लगे। बड़े भाई कन्हैया लाल जी ने आपके पुनर्विवाह करने की चर्चा भी चलाई, परंतु आपने उदासीन वृत्ति की ओर प्रगति कर रहे अपने चित्त को पुनः वनिता रूपी बेड़ी में बांधने में अपनी असमर्थता दिखाई। आपने जैनागम का स्वाध्याय द्वारा अध्ययन करना और मनन करना, वैराग्य उपावन भावनाओं का चिन्तन करना ही अपना लक्ष्य बनाया। उस समय मैं कटनी की इसी जैन पाठशाला में अध्यापक था। इसकी स्थापना सन् १९०८ में हुई थी। उस समय यत्र-तत्र जो जैन समाज की पाठशालायें चालू थीं, उनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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