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________________ मेरा जीवन-वृत्त ६१ सन १९३५ में संस्था में माध्यमिक शाला की स्थापना हुई जो अभी भी चल रही है। सन ४० में कन्या माध्यमिक शाला भी पूज्य वर्णी जी के सदुपदेश से चली जो ८ वर्ष चली। कुछ विघ्न-बाधाएँ भी आई जिनको पार कर भी संस्था को संचालित बनाये रखने में शाला की व्यवस्थापक समितियां सफल रहीं। सन् १९३८ में मैं भा० दि० जैन परवार सभा की ओर से प्रकाशित 'परवार बन्धु' मासिक पत्र का में सम्पादक चुना गया। श्री स० सि० धन्य कुमार जी भी सह-संपादक चुने गये और उनके सहयोग से वह पाँच वर्ष चलता रहा। इसके बाद "वीर संदेश" पत्र का भी मैंने दो वर्ष सम्पादन किया । ( सन् ४७ में अखिल भा० परवार सभा का प्रधान मंत्री चुना गया जिसका कार्य में २५ साल करता रहा।) ___ सन् ५३ में मैं भा० दि० जैन संघ मथुरा का प्रधानमंत्री चुना गया। उस पद पर २० वर्ष रहा । "जैन संदेश" के सम्पादन का दायित्व भी मुझ पर सन् ५५ में आ गया। सन् ५७ से श्री पं० कैलाश चंद जी का सहयोग मिला । सन् ६९ के बाद "जैन संदेश" का कार्य पं० कैलाश चंद जी ही पूर्ण रीत्या संभालते रहे। वर्णी ग्रंथमाला का भी मैं मध्य काल में उपाध्यक्ष और पश्चात् अध्यक्ष रहा। सदस्य आज भी हैं। यह प्रगतिशील संस्था आज भी वर्णी-शोध-संस्थान के नाम से है। इस संस्था के संचालन का मुख्य श्रय पंडित फूलचंद जी शास्त्री को है। इन सब संस्थाओं के संचालन में पं० फूलचंद जी का भी सहयोग मुझे सतत मिला है। जैनेतर समाज कटनी की भी मुझ पर आस्था रही। शिक्षा संस्था में नगर के अनेक अजैन छात्र मेरे पास संस्कृत और जैन धर्म की शिक्षा पाते रहे। स्व० डॉ० हीरालाल जी रायबहादुर प्रख्यात विद्वान् थे। वे डिप्टी कमिश्नर भी रहे। उनकी पुस्तकें देश-विदेश में भी चलती थी और चल रही हैं। इतिहास के प्रेमी थे। पुरातत्व की खोज में उनकी खास दिलचस्पी थी। उनकी एक पुस्तक में श्री रामचन्द्र जी के मांस भक्षण व शिकारप्रिय होने तथा सीता माता द्वारा गंगा जी को मद्य के घट चढ़ाने की चर्चा आई थी। हिन्दू समाज में तहलका मच गया। उन्होंने शास्त्रार्थ का चैलेंज दिया। हिन्दू समाज के मुख्य लोग मेरे पास आये, मुझसे चैलेंज स्वीकार कर शास्त्रार्थ करने का प्रेमपर्ण आग्रह किया। कटनी के ब्राह्मण विद्वानों ने उनके अनुनय को स्वीकार नहीं किया, तब वे मुझ से आग्रह करने लगे। मैंने स्वीकार कर लिया और दस हजार की जनता के बीच उनके प्रमाणों का व तर्कों का स्पष्ट उत्तर देकर उसमें सफलता पाई जिससे स्थानीय हिन्दू समाज को बहुत संतोष हुआ। विन्ध्य-प्रदेश के स्पीकर श्री शिवानन्द जी ने एक बार कटनी में अपने भाषण में प्राचीन हिन्दु ऋषियों को तथा जैन तीर्थंकरों को भी मांस सेवन करने वाला कहा। मैंने उनके पास जाकर उनका समाधान किया तथा निराकरण किया। उन्हें अपने शब्द वापिस लेने व जनता से क्षमा मांगने का आग्रह किया। उन्होंने अपना वक्तव्य वापिस लिया और लिखित क्षमा याचना की, अपनी भूल को सुधारा । यह उनका बड़प्पन था जो सराहनीय है। उनकी इस सज्जनता की छाप आज भी मुझ पर है । मथुरा दि० जैन संघ पहले शास्त्रार्थ संघ था। उसके प्रमुख स्थापनकर्ता पं० राजेन्द्र कुमार जी न्याय तीर्थ थे। अनेक बार आर्य समाज से. संघ ने पं० जी के तत्त्वावधान में शास्त्रार्थ कर विजय पाई। अंतिम शास्त्रार्थ में पं० कर्मानन्द जी आर्य समाजी शास्त्रार्थी ने शास्त्रार्थ के अंत में अपनी पराजय के साथ-साथ जैन धर्म भी स्वीकार किया और कालान्तर में क्षल्लक पद भी प्राप्त किया। इन कार्यों से संघ का प्रभाव जैनेतर समाज में भी था । मेरे प्रधानमंत्रित्व के काल में दो बार शास्त्रार्थ के चैलेंज बाये पर संघ के नाम से ही शास्त्राथियों ने शास्त्रार्थ करने से इंकार कर दिया और वे नहीं हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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