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________________ १] विन्ध्य क्षेत्र के जैन विद्वान्-१. टीकमगढ़ और छतरपुर ४७ मेला ग्राउन्ड में स्थित जैन मन्दिर, उर्द मऊ का प्राचीन शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, धौरा के विशाल जैन मन्दिर, जगत सागर के जैन मन्दिर, अचट्ट में प्राप्त प्राचीन जैन प्रतिमायें इस बात के जीवन्त प्रमाण हैं। जिले में लगभग ३०% ग्रामों में जैन समाज और जैन मन्दिर हैं। जिले में जैन समाज की पर्याप्त संख्या होने पर निश्चत ही विद्वानों की बहुलता होनी चाहिये । इस दृष्टि से जब हम इतिहास देखते हैं तो लगभग ३०० वर्षों से यह प्रमाण मिलते हैं कि यहाँ पर्याप्त जैन विद्वान् रहे हैं । इन्होंने अपने धर्माराधन के अलावा साहित्य सम्बर्द्धन एवं सृजन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है । गौड़ राजाओं की पूर्व राजधानी खटौला में जैन समाज बहुमान्य रहा। वहाँ भी-विद्वानों की परम्परा रही है । वर्द्धमान पुराण के रचयिता पं० नवल शाह खटौला के ही मूल निवासी थे। बाद में आपने भेलसी जिला टीकमगढ़ अपना निवास बनाया। उन्होंने अपने ग्रंथ के अन्त में अपना परिचय दिया है। इससे स्पष्ट होता है कि उनके पूर्वज तो भेलसी के निवासी थे। ये खटोला में रहते थे। छतरपुर में स्थित डेरा पहाड़ी ( जिसे पांडे बाबा भी कहते हैं ) पर पं० भागवली और बाल किशुन के रहने का उल्लेख मिलता है । इनका कार्य शास्त्र लिखने का रहा है । पर्याप्त प्रयास करने पर छतरपुर जिले के जिन जैन विद्वानों की जानकारी प्राप्त हो सकी है और जिन्होंने जैन धर्म, समाज एवं साहित्य की श्रीवृद्धि में अपना योगदान दिया है, उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है। यह शोधकर्ताओं के लिये लाभकारी होगा, ऐसी आशा है । कविवर पण्डित नवल शाह ( १७४३-) वर्द्धमान पुराण के रचयिता कविवर नवल शाह के पूर्वज टीकमगढ़ जिला के ग्राम भेलसी के निवासी थे। बाद में ये खटोला में आ गये थे जो छतरपुर जिले की विजावर तहसील में बड़ामलहरा के पूर्व में लगभग १० मील की दूरी पर स्थित है। पूर्व में यह ग्राम उन्नत ग्राम रहा है और गौड़ राजाओं की राजधानी रहा है । जैन समाज के साथ ही सभी सम्प्रदाय के व्यक्ति निवास करते थे। वर्तमान में यह ग्राम ऊजड़ हो गया है और मात्र कुछ कृषकों के घर ही वहाँ पर स्थित हैं। कवि ने अपनी रचना में स्वयं अपना परिचय दिया है। नवलशाह के वंशज प्रकृति प्रकोप के कारण ग्राम भेलसी छोड़ खटौला में आ गये थे। इनके पिता का नाम देता राम और माता का नाम प्रानमति था। ये चार भाई थे जिनमें जेष्ठ नवलशाह ही थे। इसके अलावा तुलाराम, घासीराम और खुमान सिंह अन्य भाई थे। नवलशाह जैन सिद्धान्त के अधिकारी विद्वान् थे और ये काव्यगत सभी छंदों के ज्ञाता थे। इन्होंने सकल कीर्ति आचार्य के वर्धमान पुराण के आधार पर वर्धमान पुराण की पद्यात्मक रचना की है। कवि ने पूर्ण विद्वान् होते हुये भी अपनी लघुता को प्रगट किया है । उन्होंने वर्द्धमान पुराण की रचना भक्तिवश एवं स्वान्तःसुखाय की । इसे ग्रंथ के अन्त में कवि ने स्वयं भी लिखा है। कवि ने अपने जन्म के सम्बन्ध में कहीं भी उल्लेख नहीं किया है। अपने ग्रन्थ में उन्होंने यह उल्लेख तो किया है कि ये गोलापूर्व चंदेरियावंश के थे। अतः इनका समय निर्धारण इनके द्वारा रचित वर्द्धमान पुराण की समाप्ति सम्वत् से किया जा सकता है । वर्धमान पुराण की समाप्ति वि० सं० १८२५ फागुन शुक्ल पूर्णमासी बुधवार सन् १७६८ को हुई है । इससे यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि कवि का जन्म इस सम्वत् से कम २५-३० वर्ष पूर्व अवश्य हुआ होगा । अतः इनका जन्म काल १७४३ से पूर्व का होना चाहिये। कवि द्वारा रचित वर्द्धमान पुराण की रचना १६ अधिकारों में हुयी है। कवि ने इस पुराण की रचना १६ अधिकारों में ही क्यों की, इसका औचित्य स्वयं कवि ने ही बताया है । उन्होंने सोलह स्वप्न, षोडश कारण भावना, सोलह स्वर्ग तथा चद्रमा की १६ कलाओं में सोलह की संख्या का महत्व देखा और अपने पुराण में सोलह अध्याय रखे । इस पुराण में आपने जैन-जातियों के सम्बन्ध में भी विवरण दिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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