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________________ ४६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड वाले धार्मिक आयोजन प्रभावक होते हैं। आप का जन्म अषाढ़ शुक्ल ८ सन् १९२४ में हुआ था। आपकी साहित्य जना में भी रुचि होने के कारण पंचकल्याणक भजन आदि आपने स्वयं रचे हैं। चिकित्सा विद्वान एवं संग्रह आपकी सम्पादित रचनायें हैं। प्रतिष्ठा कार्यों में आप सिद्धहस्त हैं। आपने सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि, किशनगढ़, खजुराहो, सरधना, हस्तिनापुर, अहमदाबाद, वीनाबारहा आदि स्थानों में पंचकल्याणक जिनबिम्ब प्रतिष्ठा एवं महा गजरथ महोत्सव जैसे विशाल महोत्सव बड़ी कुशलता, योग्यता, प्रभावना और निर्विघ्नता से सम्पन्न कराये । आपको द्रोणप्रांतीय नवयुवक सेवा-संघ ने १९७७ में सम्मानित कर वाणीभूषण की उपाधि से विभूषित किया है । पं. कमल कुमार जी शास्त्री वाणीभूषण पं० कमल कुमार जी नारायणपुर, जिला टीकमगढ़ के निवासी हैं। अहार, पपौरा एवं इन्दौर के विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत आपने श्री दि० जैन वीर विद्यालय, पपौरा में कुछ समय तक प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य किया। आप कुशल एवं प्रभावी वक्ता हैं। अहमदाबाद में आपको वाणीभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया है। आपमें साहित्य के प्रति रुचि है । पपौरादर्शन आपकी पद्य रचना है । साथ ही, समय-समय पर जैन पत्रों में समाज सुधारक लेख प्रकाशित होते रहते हैं। आपने १९६४ में गजरथ पत्रिका पपौरा जी का सम्पादन भी किया है । आप मृदुभाषी, प्रसन्नचित्त, उदार और कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। पं० पूर्ण चन्द्र जी "सुमन" ककरत्राहा जिला टीकमगढ़ के विद्वान् सुमन नाम से प्रसिद्ध पं० पूर्णचन्द्र जी ने काव्यतीर्थ, शास्त्री तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद शाहगढ़, नवापारा राजिम के जैन विद्यालयों में बहुत समय तक अध्ययन कार्य किया। इसके पश्चात् दुर्ग में स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित किया है। पूज्य वर्णी जी से प्रभावित एवं प्रेरणा प्राप्त कर आपने कविता करना प्रारम्भ किया। संगीत में विशेष रुचि के कारण सुमन संगीत सरिता की रचना की। इसके अलावा नेमी काव्य, भक्तामर पद्यानुवाद, अभिनय, नाटक एवं संवादों की रचना की है। आप प्रायः सामाजिक संगठन एवं सधारात्मक लेखों को लिखते हैं जो जैन मित्र, छत्तीसगढ़ केसरी, दैनिक नवभारत आदि में समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं । राजनीति में भी आप सक्रिय हैं । जैन विद्वानों की दष्टि से निःसंदेह टीकमगढ़ जिला विद्वानों की खान रहा है। यहाँ अनेक योग्य विद्वान्, साहित्यकारों व लेखकों ने जन्म लेकर जैन समाज, संस्कृति एवं धर्म की महान् सेवा करते हुये राष्ट्र की भी महती सेवा की है। उपरोक्त विद्वानों के अतिरिक्त पठा निवासी पं० वारे लाल जी ने, जिन्हें सर्वसाधारण राजवैद्य के नाम से जानती है, लगभग ४० वर्ष से अधिक अहार क्षेत्र के मंत्री के रूप में महती सेवा की है, प्रसिद्ध ज्योतिषी और वैद्य रहे हैं। वरमाताल के श्री ब्रजलाल जी एम. ए., एम. एड., कारी निवासी पं० रतन चन्द्र जी, एरोरा जिला टीकमगढ़ के श्री पं० सरमन लाल जी उपनाम दिवाकर, मवई के पं० बाबूलाल जी सुधेश, जतारा जिला टीकमगढ़ के पं० धनश्याम दास जी शास्त्री आदि ऐसे विद्वान् हैं जिनके द्वारा जैन धर्म और संस्कृति की महती सेवा हो रही है। ये सामाजिक संगठन के लिये महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। छतरपुर जिले में जैन विद्वान् पुराने विन्ध्य-प्रदेश में छतरपुर जिला जैन संस्कृति, पुरातत्त्व और साहित्य से सम्पन्न रहा है। यहाँ जैन संस्कृति एवं पुरातत्त्व के प्रतीक श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि, रेशन्दीगिरि (नैनागिरि) एवं कलातीर्थ खजुराहो के अलावा छतरपुर के समृद्ध विशाल जैन मन्दिर, डेरा पहाड़ी स्थित चहार दीवारी के अन्दर चार विशाल जैन मन्दिर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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