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________________ ४५२ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड (ब) नावई (ललितपुर) (१) सं० १२०३ का नन्दे व अच्छे का मानस्तम्भों पर लेख । (य) ललितपुर (१) सं०१२४३ का राल, पत्नी चम्पा, उनके पुत्र योल्हे, उसकी पत्नी वादिणी व उनके पुत्र रामचंद्र, विजयचंद्र, उदयचंद्र व हाललचंद्र का लेख । (र) बहोरीबंद (१) सं० १०१० या १०७० का चेदि के कलचुरि गयाकर्ण के राज्यकाल का, गोलापूर्व अन्वय के श्रीसर्वधर के पुत्र महाभोज का लेख । इस लेख का संवत ठीक से नहीं पढ़ा गया है। गयाकर्ण का समय का ई० ११२३ से ई० ११५३ तक माना गया है । अतः १०७० शक संवत् ही होना चाहिये। बहोरीबंद का लेख संभवतः किसी प्रवासी परिवार का है जो व्यापार के लिये निकटस्थ कलचार राज्य में बस गया होगा। (स) महोबा १. सं० १२१९ का भस्म का आदिनाथ प्रतिमा पर लेख । २. सं० १२४३ का रालु पत्नी चंपा, उनके पुत्र पोल्हे, उसकी पत्नी वांछिहणी व उनके पुत्र रामचंद्र व विजयचंद्र के लेख का अभिनंदन प्रतिमा पर लेख । यह वही परिवार है जिसका ललितपुर की प्रतिमा में उल्लेख है। ३. सं० १२४३ की मुनिसुव्रत प्रतिमा पर लेख । यह पूरा पढ़ा नहीं गया है। यहां पर सं० ८२१, ८२२ (संभवतः दोनों कलचुरि सं० हैं), ११४४ व १२०९ की मूर्तियों के निर्माता की जाति का उल्लेख नहीं है । महोबा चंदेलों की राजधानी रही थी। संभवतः इस कारण से यहां अन्यत्र से गोलापूवं आकर बसे हों। ऊपर घसान नदी के आस-पास जिस क्षेत्र का उल्लेख है, उसमें गोलापूवों के बारहवीं शताब्दी से अब तक के सभी सदियों के लेख है। कई अन्य लेख या तो अब तक पढ़े नहीं गये है या उनके निर्माणकर्ता की जाति का उल्लेख नहीं है। गोत्र सं० १८२५ (ई० १७६८) में खटौरा (खटौला, छतरपुर) निवासी नवलसाह चंदेरिया ने वर्धमान पुराण की रचना की थी। ब्रिटिश राज्य के पूर्व का केवल यही एक ग्रंथ है जिसमें गोलापूर्व जाति के बारे में विशेष जानकारी दी गई है। इसमें गोलापूर्व जाति के ५८ गोत्र गिनाये गये हैं। इस ग्रंथ के विभिन्न पाठांतरों व अन्य गोत्रावलियों को मिलाने से करीब ७६ गोत्रों के नाम मिलते हैं। इनमें से अब केवल ३३ गोत्र शेष है। ७६ में से अधिकतर स्थानों के नाम पर आधारित हैं । इनमें से कुछ इस प्रकार पहचाने जा सकते है । चंदेरिया-चंदेरी (टीकमगढ़, बल्देवगढ़ के पास) पपौरया-पपौरा (टोकमगढ़, बल्देवगढ़ के पास) मिलसैयां-भेलसी (टीकमगढ, बल्देवगढ़ के पास) सोरवा-सोरई (ललितपुर, मडावरा के पास) दरगैयां-दरगुवां (जि० छतरपुर, हीरापुर के पास) कनकपुरिया-कन्नपुर (टीकमगढ़, बल्देवगढ़ के पास) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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