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________________ कुवलयमालाकहा के आधार पर गोल्लादेश व गोल्लाचार्य की पहिचान ४५१ ५. प्राचीन शिलालेख : शिलालेख किसी जाति के प्राचीन निवास स्थान के सबसे महत्वपूर्ण सूचक हैं।' ६. गोत्रों के नाम : अनेक जातियों के कई गोत्रों के नाम स्थान सूचक हैं । गोत्रों के नाम से सैकड़ों वर्ष पूर्व के निवास स्थान को पहिचान की जा सकती है। तीनों जातियों में गोलापूर्वो की संख्या सबसे अधिक है (लगभग २४०००)। इन पर काफी जानकारी भी उपलब्ध है । इस जाति का संक्षिप्त इतिहास आगे दिया गया है। गोलालारों की वर्तमान जनसंख्या करीब १२,००० है । सन १९१५ में इनकी सबसे अधिक संख्या ललितपुर में (४००) थी। इससे कम जनसंख्या (२७०) भिंड में थी । इनका प्राचीन निवास भिंड के आसपास था, ऐसा माना गया है । इनके शिलालेख ग्यारहवी शती के उत्तरार्ध से मिलते हैं जिनमें गोलाराडे नाम प्रयोग किया गया है। ये गोल्लाराष्ट्र के निवासी होने के कारण ही गोलाराडे कहलाये । इसी प्रकार से महाराष्ट्र के निवासी मराठे, सौराष्ट्र के निवासी सोरठे व काराष्ट्र के निवासी कर्हाडे कहलाये । अहार के लेखों में एक गगंराट जाति का उल्लेख है । ये सम्भवतः गंगराड (जि० झालावाड़) से निकले गंगराडे या गंगेरवाल हैं। गोलसिंघारे लगभग १४०० की जनसंख्या की एक लघुसंख्य जाति है । इसके प्राचीन उल्लेख १७वीं शताब्दी से पूर्व देखने में नहीं आये। लेखों में इन्हें गोलश्रृंगार कहा गया है। सन् १९१२ में इनकी सबसे अधिक जनसंख्या (२९८) इटावा में थी। इनका प्राचीन स्थान भी भिंड के आसपास कहा जाता है। गोलापूवं जाति का बारहवीं सदी के आसपास का निवास स्थान निश्चित रूप से पहिचाना जा सकता है क्योंकि १. इनमें बुंदेलखंडी ही बोलने की परम्परा है । २. कई गोलापूर्व परिवारों के पूर्वज टीकमगढ़, छतरपुर, सागर आदि जिलों से अन्यत्र पिछले १००-२.. वर्षों में जाकर बसे हैं। ३. सन् १९४० की गोलापूर्व डायरेक्टरी के अनुसार इनको काफ़ो जनसंख्या टोकमगढ़ जिले में खरगापुर, बल्देवगढ़ व ककरवाहा के आसपास, छतरपुर जिले में गुलगंज, मलहरा व दरगुओं के आसपास, ललितपुर जिले सोजना, मंडावरा व गिरार के आसपास व सागर जिले में सेरापुर, शाहगढ़ व बरायठा के आसरास बपता है। यह उल्लेखनीय है कि ये सब स्थान धसान नदी के दोनों ओर १५-२० मील के अन्दर-अन्दर ही है। ४. इन स्थानों में गोलापूर्व अन्वय के प्राचीनतम शिलालेख हैं । लेखों में कई बार गोल्लापूर्व शब्द प्रयुक्त हुआ है । कुछ लेखों की सूचनाएं निम्न है : (अ) पपौरा (जि० टीकमगढ़) (१) सं० १२०२ का टुड़ा के पुत्र गोपाल, उसको पत्नो माहिणी व पुत्र सांठु का लेख । (२) सं० १२०२ का गल्ले व उसके पुत्र अकलन का लेख । (३) छतरपुर (१) सं० १२०५ का अरास्त, उसकी पत्नी लहुकण व पुत्र सांतन व आल्हण का लेख । (२) संभवतः इसी समय का कक्का के पुत्र वोसल आदि का लेख । छतरपुर में कुछ लेख पढ़े नहीं जा सके हैं। (स) अहार (१) सं० १२०३ का तावदे, पत्नी जसमती व पुत्र लंपावन का लेख । (२) सं० १२१३ का जाल्ह, पत्नी मलका व पुत्र पोहावन का लेख । (३) सं० १२१३ का जाल्ह पानी मलहा व पुत्र सौदेव, राजजस व वछल का लेख । (४) सं० १२३१ का देवनन्द, पुत्र अमर व पत्नो प्रविणी का लेख । (५) १२३७ के ३ लेख । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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