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________________ ४४८ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ २. श्रवणबेलगोला के लेखों में इस देश सम्बन्धी क्या जानकारी है ? ३. क्या प्राचीन काल में गोलापूर्व, गोलालारे व गोलसिघारे जातियाँ एक ही प्रदेश की वासी थीं ? यह स्थान कहाँ था ? ४. यह क्षेत्र गोल्लादेश कब से व किस कारण से कहलाया ? इसके उल्लेख मिलना क्यों बन्द हो गये ? ५. गोल्लाचार्य कौन थे ? उनका समय क्या था ? आदि ग्रन्थों से गोल्लादेश को स्थिति का निर्धारण [ खण्ड कुवलयमालाकहा इन ग्रन्थों से पता चलता है कि ८-१२ वीं सदी के आसपास भारत के अधिकांश भाग में करीब १८ प्रमुख देश - भाषायें बोली जाती थीं। इनमें से सभी देशों को ( गोल्लादेश के छोड़कर) सही पहिचान की जा सकती है। आधुनिक भारत का जो भाषाशास्त्रीय विभाजन किया जाता है, वह इन ग्रन्थों के विभाजन से काफी मिलता है। यह सम्भव है कि अलग-अलग भाषाओं व बोलियों की सीमाओं में तब से अब तक कुछ परिवर्तन हो गया हो क्योंकि जनसमुदाय की अन्यत्र आस-पास जाकर बसने की प्रवृत्ति रही है। फिर भी, सुगमता के लिए यूनिवर्सिटी आफ शिकागो द्वारा प्रकाशित 'ए हिस्टारिकल ऐटलस आफ साउथ एशिया में आधुनिक भाषाशास्त्रीय विभाजन के मानचित्र का प्रयोग किया जाता है । इन देशों की पहिचान इस तरह से की जा सकती है : १. आंध्र यह स्पष्ट ही वर्तमान तेलुगू भाषा क्षेत्र अर्थात् आंध्र प्रदेश हैं। इसमें तेलंगाना भी शामिल है। २. कर्णाटक : कन्नड़ भाषी प्रदेश । कुछ उत्तरी भाग को छोड़कर वर्तमान समस्त कर्णाटक प्रदेश । ३. सिधु यह पाकिस्तान का सिप प्रदेश है। मुलतानी हिन्दी पंजाबी से मिलती है। अतः इसमें से मुल्तान निकाल देना चाहिए। कच्छी सिंधी से मिलती जुलती है । इसलिये कच्छ को सिंधु देश में मानना चाहिए । इसमें सौराष्ट्र शामिल है। वर्तमान राजस्थान का कुछ भाग भी इसमें माना जाना चाहिये। यह भाग प्राचीन काल में गुर्जर राष्ट्र का भाग माना जाता था क्योंकि यहाँ गुर्जर जाति ४. गुर्जर वर्तमान गुजरात का राज्य था । ५. महाराष्ट्र: मराठी भाषी । इसमें कोंकण भी माना जाना चाहिये । विदर्भ का काफी भाग गोंड आदि जातियों से बसा था, इसे प्राचीन महाराष्ट्र में नहीं माना जाना चाहिये । ६. ताजिक : वर्तमान सोवियत संघ व चोन-ताजिक भाषी, प्रदेश । प्राचीन काल में यहां के यारकन्द व खोतान में पंजाब आदि से व्यापारिक सम्बन्ध थे। यहाँ अनेक प्राचीन ब्राह्मी व खरोष्ठी लेख पाये गये हैं। ७. टक्कु पंजाबी भाषी पाकिस्तानी व भारतीय पंजाब, जम्मू व सम्भवतः मुलतान को भी इसी क्षेत्र में माना जाना चाहिए । हरियाणा का कुछ भाग । ८. मालय वर्तमान में इसे मध्यप्रदेश का मालवा हो माना जाता है। वास्तव में राजस्थान का कोटा के आसपास का कुछ दक्षिणी भाग भी प्राचीन मालव का भाग था। यहां प्राचोन काल में मालव जाति का राज्य था। ९. मरु | मारवाड़ो भाषी प्रदेश | राजस्थान से प्राचीन गुर्जर राष्ट्र, प्राचीन मालव व ब्रजभाषी क्षेत्र को निकाल कर जो शेष है, उसे ही मरु समझा जाना चाहिये । १०. मगध बिहारी व भोजपुरी (पूर्वी उत्तर प्रदेश ) भाषी प्रदेश ११. कोशल इस नाम के दो स्थान थे। एक तो वाराणसी के आसपास व दूसरा मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ के आसपास दूसरा क्षेत्र दक्षिण-कोशल कहा जाता है। वर्तमान में दोनों क्षेत्रों की भाषायें पूर्वी हिन्दी के अन्तर्गत आती है। अतः कोशल देशभाषा का क्षेत्र पूर्वी हिन्दो (अवधी, बघेली व छत्तीसगढ़ों) का ही माना जाना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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