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________________ रोगोपचार में गृहशांति एवं धार्मिक उपायों का योगदान ३०७ स्रोतों-रोध का प्रतीक है। रोगी के अन्य लक्षणों में ज्वरानुबंध, अग्निमन्दता, अरुचि, अशक्ति आदि पाये गये। इनके कारण रोगी के तमकश्वास के रोगनिदान में सहायता मिली। इस रोगी की चिकित्सा में प्रतिदिन प्रातः, सायं एवं मध्यान्ह मधु के साथ निम्न मिश्रण लेने के लिये प्रयोग किया गया : (i) श्वासकास चिन्तामणि रस १ डेग्रा० लक्ष्मी विलास रस ४ डेग्रा० श्वास कुठार रस ४ डेग्रा० सोम चूर्ण १ ग्राम प्रबाल पंचामृत रस २ डेग्रा० सितोपलादि चून २ ग्राम (ब) प्रातः एवं सायं दूध के साथ १० ग्राम वासावलेह लेने के लिये कहा गया । (स) प्रातः एवं सायं १०० मिली० श्वासवासांतक क्वाथ लेने के लिये कहा गया । (द) भोजनपूर्व प्रतिदिन जल के साथ २४२ अग्नितुंडी बटी का उपयोग किया गया । (य) भोजनोत्तर प्रतिदिन जल के साथ २० मिली. द्राक्षारिष्ट एवं २० मिली. अश्वगंधारिष्ट का प्रयोग किया गया। ग्रेजी दवाइयों का भी उपयोग किया गया : (१) टर्बुटेलीन टेबलेट, 500 mg, दिन में तीन बार (२) एमोक्सिलीन केपसूल, , दिन में चार वार (३) बेनाड्रिल कफ ए क्स्पेक्टोरेन्ट सिरप, २ चम्मच, चार वार इस चिकित्सा व्यवस्था से रोगी को शीध्र लाभ होने लगा । रोगी और रोग को स्थिति का आवश्यकतानुसार परीक्षण करते हए चिकित्सा व्यवस्था में समुचित परिवर्तन किये जाते रहे । यह चिकित्सा लगभग तीन माह तक चलती रही । इससे आशानुकूल लाभ होते हुए भी रोगोन्मूलन हेतु पूर्ण सफलता में न्यूनता परिलक्षित हुई । इस पर विचार करने पर चिकित्सा के अंगभूत ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोगी के निम्न जन्मांग का अध्ययन किया गया। जन्म तिथि, समय व स्थान आश्विन कृष्ण ११ मंगलवार, विक्रम १९७८ ८-४० प्रातः होशियारपुर, पंजाब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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