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________________ पूर्ण स्वास्थ्य के लिए योगाभ्यास १७७ गुणों से शरीर की नाड़ियों के वैद्युतपरिपथ को प्रभावित करती हैं और उनमें परिवर्तन लाती हैं । आसनों को सरलता से करने के लिए पहले शारीरिक शुद्धि हेतु आपको षट्कर्म करने होंगे जो शरीर शुद्धि की छः विधियाँ हैं । प्राणायाम श्वास-सम्बन्धी विज्ञान है । प्राणायाम को भी हमने बहुत ढंग से समझा है। लोग इसे श्वास की कसरत समझते हैं जबकि वस्तुतः यह हमारे प्रसुप्त प्राण को जागृत करता है। इससे शरीर को विभिन्न अस्त-व्यस्त कोशिकाओं में सुधार हो जाता है । जब शरीर “षट्कर्म" की क्रिया द्वारा शुद्ध हो जाता है और आसन में निपुणता प्राप्त हो जाती है, तब प्राणायाम का अभ्यास आरम्भ किया जा सकता है । प्राणायाम करने से शरीर में शक्ति फिर से आवेशित होती है तथा इड़ा और पिंगला नाड़ी के माध्यम से यह शक्ति मस्तिष्क समेत शरीर के हर हिस्से को प्रभावित करती है। मन्त्र और यन्त्र : मस्तिष्क के बोझ को हल्का करने के लिए पूर्ण स्वास्थ्य के लिए मन्त्र, यन्त्र और मण्डल के विज्ञान को जानना भी बहुत आवश्यक है। मन्त्र विज्ञान, ध्वनि विज्ञान है। ध्वनि-तरंगें शारीरिक और मानसिक शरीरों-दोनों को ही प्रभावित करती हैं। ध्वनि ऊर्जा का इतना सशक्त रूप है कि आधुनिक विज्ञान ध्वनि की सहायता से ऐसे माइक्रोवेव चूल्हे का निर्माण करने वाला है जिसकी गर्मी से कुछ सेकेण्डों में ही आप अपना भोजन पका सकते हैं । लोग समझते हैं कि दवा, इंजेक्शन, गोलियां और जड़ी-बूटियां बीमारियों को मिटा देती हैं। ये अच्छी चीजें है, परन्तु यह निश्चित है कि इन सब से बढ़कर एक और विधि है जो ज्यादा शक्तिशाली और प्रभावशाली है और वह है-ध्वनि । विशेष रूप से वह ध्वनि जो मन्त्र के रूप में होती है। मन्त्र योग में आप बार-बार एक ही तरह के शब्दों को और एक ही तरह की ध्वनि को दोहराते हैं। मन्त्र फिर ध्वनि में रूपान्तरित हो जाता है जो शद्ध शक्ति का स्वरूप है । इससे शरीर की शक्तिहीन कोशिकाओं को फिर से नया जीवन मिलता है और वे पुनः कार्यशील हो जाती हैं । ____ मनुष्य का मस्तिष्क अनगिनत आद्यरूपों (archetypes) का भण्डार होता है। ये आद्यरूप मनुष्य के वर्तमान जन्म और पूर्वजन्म के तथा उसके पूर्वजों के अनुभवों के प्रतीक होते हैं। हर वह अनुभव जिसे हमारो चेतना ग्रहण करती है. हमारे मस्तिष्क में सांकेतिक रूप में अंकित हो जाता है। अनुभवों को अंकित करने वाली तथा उन्हें रूपान्तरित करके अपने मस्तिष्क में रखने वाली प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है-उस समय से जब जन्म होता है और उस समय तक जब मत्यु होती है, ऐसा कोई अनुभव नहीं है जिसे हमारी चेतना नष्ट कर सके। यहाँ तक कि सोते समय. स्वप्न देखते समय, अर्धनिद्रित अवस्था में, पूर्ण बेहोशी के समय भी जो अनुभव हाते हैं, वे भी स्थूल, मानसिक या कारण शरीरों में कोई न कोई प्रतीक का रूप ले लेते हैं। ये ही संस्कार मनुष्य के कर्मों के प्रतिरूप है। इन अनगिनत संस्कारों की इस जीबन मे (जो दुःख और सुख, आशा और निराशा, स्वास्थ्य और बीमारियों से भरा हुआ है) अभिव्यक्ति होती रहता है । यन्त्र ज्यामितीय प्रतीकों का विज्ञान है । ये हमें उन संस्कारों से छुटकारा दिलाते हैं, जो हमारी केतना में, बिम्बों. अतीन्द्रिय अनभवों, दैवी अनुभवों या अशांति के रूप में कहीं बहत गहराई में एकत्र हो गये हैं। इस तरह हमारे मन-मस्तिष्क को भार-रहित करके मन्त्र और यन्त्र हमारी अंतःशक्ति को निर्मुक्त कर देते हैं । योगनिद्रा : मस्तिष्क को तनावरहित करने के लिए हम अपने दिमाग, शरीर और अपनी भावनाओं पर तनावों का बोझ डालते रहते हैं, जिससे हमारा स्वास्थ्य प्रभावित हो जाता है। योग में इस तनाव से छटकारा पाने के लिए या तो अपने मन-मस्तिष्क को शिथिल कर दिया जाता है या फिर योगनिद्रा का अभ्यास विया जाता है । इस क्रिया से प्रत्याहार की स्थिति आ जाती है । यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें मस्तिष्क का इन्द्रियों से सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है। मन, मस्तिष्क और चेतना पूरी तरह से परिवर्तित हो जाते है । ऐसा मालूम होता है कि ये नये रूप लेकर जन्मे है । तब मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक तनाव शीघ्र ही दूर हो जाते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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