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________________ आशीर्वचन एवं शुभकामनाएं श्री महेन्द्र कुमार मानव सम्पादक, पंचायत राज, भोपाल-२, म०प्र० पण्डित जगन्मोहनलाल जी की साधुवाद-योजना से मैं प्रसन्न हूँ। निश्चय ही पण्डितजी निरभिमानी एवं साधु प्रकृति के पण्डित हैं। वे जैन दर्शन के मर्मज्ञ एवं जैन आचार के आदर्श पथिक हैं। वे दर्शन ज्ञान और चारित्र के समवेत रूप हैं । उन्हें मेरे प्रणाम कहें। बेजोड़, बेनजीर आगामी आचार्य डा. महेन्द्र सागर प्रचंडिया अलीगढ़ एक बार पंडित मण्डली में उन्होंने मेरा भाषण सुना वे पास में बैठे मित्र-संगी पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री से मेरे विषय में जांच-पड़ताल कर बैठे। पण्डित जी बोले-"अरे, यह अपना डाक्टर प्रचण्डिया है, प्रभावक वक्ता है, विद्वान् है ।" कार्यक्रम समाप्ति पर उन्होंने अपनी भुजाओं में मुझे समेट लिया। उन्होंने मुझे अपनी दो पुस्तकें भी भेजी जो आज भी मेरा मार्गदर्शन कर रही है । यह उदाहरण है, "गुणी जनों को देख हृदय में, मेरा प्रेम उमड़ आवे' । पण्डित जी कोरी शास्त्र अभिज्ञता नहीं रखते। वे मात्र शब्द-साधक भी नहीं है । तपस्या के मार्ग पर उनके चरण बहुत आगे बढ़ गये हैं। यह बात सर्वथा विरल मानी जावेगी। जब तक चरण सदाचरणमय न हो, तब तक चिन्तन का मार्ग प्रशस्त नहीं होता। पण्डित जी आगम के चलते-फिरते कोश हैं। दर्शन के आचार्य हैं। चरित्र के चूड़ामणि है। गुण के प्रति सच्ची श्रद्धा कोई उनसे सीखे । इस त्रिवेणी-संकुल गुणोजन को मेरा बार-बार अभिवन्दन । हम जैन विद्याओं के मूर्धन्य मनीषी एवं ज्ञान तपोपूत पंडित जगम्मोहनलाल शास्त्री का अभिवंदन करते हुए उनके दीर्घायुषी मार्गदर्शन की शुभकामना करते हैं : १. सदस्यगण, जैन ट्रस्ट एवं जैन केन्द्र, रीवा, म०प्र० २. सदस्यगण, खजुराहो तीर्थक्षेत्र कमेटी, छतरपुर, म०प्र० ३. सदस्यगण, पपौरा क्षेत्र कमेटी, टीकमगढ़ ४. सदस्यगण, साधुवाद समिति, रीवा-दमोह-जबलपुर ५. पंडित गोविन्दराय शास्त्री, झूमरीतिलैया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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