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________________ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ श्री एम० एल० जैन कुलपति, सागर विश्वविद्यालय, सागर म० प्र० ___ पण्डित जगन्मोहनलाल जी शास्त्री के साधुवाद के कार्य प्रारम्भ करने से मैं अति प्रसन्न हूँ। कृपया पण्डित जी को हमारे आदरभाव व्यक्त करें। हम सभी लोग उनके दीर्घ एवं सेवाभावी जीवन की कामना करते हैं। वे हमें सदैव धार्मिक चिन्तन देते रहें । प्रो० राधाकान्त वर्मा कुलपति, अवधेश प्रताप सिंह, विश्वविद्यालय, रीवा, म० प्र० __पं० जगन्मोहन लाल शास्त्री साधुवाद समारोह के अन्तर्गत साधुवाद ग्रन्थ का प्रकाशन पूरे विध्य-क्षेत्र के लिये गौरव की बात है। शास्त्री जी धर्म और ध्यान विद्या में पारंगत हैं तथा उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भी भाग लिया है। उन्होंने अपने कुशल निर्देशन में प्रज्ञाशक्ति द्वारा जो सामाजिक कार्य सम्पन्न किये है, वे चिर-स्मरणीय रहेंगे । ग्रन्थ में धर्म-दर्शन के साथ हो कला, इतिहास-पूरातत्व, ध्यान एवं विज्ञान पर आप सामग्री प्रकाशित कर रहे हैं. यह एक उपलब्धि होगी । मैं स्वयं विंध्य क्षेत्र के जैन मन्दिरों एवं कला पर काम कर रहा हूँ। ग्रन्थ के प्रकाशन की सफलता के लिये मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें। श्री राजेन्द्रकुमार जैन माधवगंज, विदिशा, म०प्र० जिनवाणी की निरन्तर साधना में रत पण्डित जी का व्यक्तित्व सहज, अपूर्व और सरल है। उन्होंने अध्ययनअध्यापन के माध्यम से समाज के साथ-साथ स्वयं को भी आचार-संहिता के कंटकाकीणं पथ में चिन्तन-मननपूर्वक ढाला है। वे यथार्थ में साधुवाद के पात्र है। निरभिमानी तत्त्वचिंतक आत्मसाधक बड़े पण्डित जो शतायु होकर हमारा मार्गदर्शन करते रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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