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________________ [ खण्ड १३० पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ आधुनिक दृष्टि से अनुसंधान किये जा रहे हैं। ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी आदि अनेक पाश्चात्य देश भी इस दिशा में भारतीयों के सहयोग से काम कर रहे हैं । लोनावला के करमबेलकर और घारोटे, मुंगेर के स्वामी सत्यानन्द सरस्वती, मेनिजर संस्थान, अमेरिका के स्वामी राम, सत्यानन्द आश्रम, गोस्फोर्ड ( आस्ट्रेलिया ) के चिकित्सा - शास्त्री सन्यासी स्वामी शंकरदेवानन्द और कर्मानन्द सरस्वती तथा आचार्य तुलसो व उनके शिष्य साधु-साध्वीगण इस क्षेत्र में महनीय कार्य कर रहे हैं। महर्षि महेश योगी, स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, आचार्य रजनीश तथा ब्रह्म कुमारियों ने भी ध्यान के विशिष्ट रूपों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में व्यापक बनाने का प्रयत्न किया है। इन सभी के कार्यों से भारत के साथ विश्व के अनेक भागों में ध्यान के प्रति जागरुकता बढ़ी है । यह मन्तव्य इस तथ्य से प्रमाणित होता है कि अकेले स्वामी सत्यानन्द द्वारा संचालित योग-प्रचार कार्य में सत्तर हजार से अधिक वेतनभोगी योग शिक्षक विश्व के कोने-कोने में लगे हुए हैं । इनकी योग प्रक्रिया का लाभ जेल के कैदियों, स्कूलों के बच्चों, अपराधियों तथा तनावपूर्ण वातावरण के कारण उत्पन्न रोगों के शिकार अनेक व्यक्तियों को मिल रहा है। इस कार्य में विदेशियों का योगदान सर्वाधिक है । स्वामी सत्यानन्द को इस बात का कष्ट है कि जो भारत ध्यान-विद्या का जन्मदाता माना जाता है, वह इस कार्य में बहुत पीछे है। यही नहीं, स्विट्जरलैंड, इटली तथा फ्रांस आदि देशों में ध्यान योग को स्कूलों के नियमित पाठ्यक्रम में समाहित किया जा रहा है। भारत में भी कुछ योग-शिक्षण केन्द्र खुले हैं, पर वे इतने लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। इसका एक ताजा उदाहरण शारीरिक शिक्षा सस्थान, ग्वालियर का है, जहाँ योग शिक्षकों को शरोर शिक्षा के क्षेत्र में मान्यता तो क्या, प्रशिक्षण तक देना खतरनाक माना जाता है। आचार्य तुलसी भी प्रेक्षा ध्यान के माध्यम से कैदियों, विद्यार्थियों एवं जनसाधारण को इस दिशा में प्रेरित कर रहे हैं। देश में ध्यान शिविरों की वर्तमान संख्या भारत में इसकी बढ़ती हुई लोकप्रियता का प्रतीक है । वर्तमान में ध्यान योग का प्रचार भारत की लुप्त या प्रसुप्त संस्कृति का प्रतीक है। महाप्रज्ञ ने बताया है कि कुछ आचार्यों ने काल और परिस्थिति का नाम लेकर ध्यान से लोकिक और अलौकिक सिद्धियों को प्राप्ति का निषेध कर दिया (ये सिद्धियां वैसे भी आनुषंगिक मानी जाती हैं) और अनेक विच्छेद बताकर ध्यानमार्ग में अवरोध उत्पन्न कर दिया । इससे सदियों तक ध्यान-मार्गं कुण्ठित हो गया। लोग अध्याम मार्ग के बदले व्यवहार मार्ग ओर मुड़ गये । लगता है, अब युग परिवर्तित हो रहा है । यह शुभ लक्षण है । ध्यान की आधुनिक परिभाषा और लोकसंग्रह की योगियों ने ध्यान के विषय में कुछ भी कहा हो, पर ध्यान के वस्तुतः तीन आयाम हैं- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक । ये दोनों ही धर्म, भाषा और राजनीति से परे हैं। ध्यान का प्रथम प्रभाव शरीर-तन्त्र पर पड़ता है, रक्तचाप, हृदय, ग्रन्थियों और भावनाओं पर पड़ता है। यह उत्तरात्तर शरीर, मन और अन्तश्चेतना को ऊर्ध्वमुखो बनाता है । अन्य शारीरिक क्रियाओं के समान ध्यान से भो मस्तिष्क की तरंगों में परिवर्तन हाता है। ध्यान के अध्यास से इन तरंगों की प्रकृति, परिमाण एवं ताव्रता में परिवर्तन होता है। अतः यह मन को विश्रान्त एव स्थिर करने की प्रक्रिया है । इससे इन्द्रियाँ भी स्वतः नियन्त्रित हो जाती हैं । ध्यान के अभ्यास से शरोरस्थ अनेक चक्र और मेरुदण्ड में जागरण होता है । इससे हमारी अन्तःशक्ति में वृद्धि होती है । ध्यानयोग व्यक्तित्व के निर्माण की विद्या है। यह एटमम के समान विनाश नहीं करती । यह आत्म-बम है, यह शक्ति संचय की विद्या है। यह तामसिक वृत्ति को नष्ट कर राजसिक एवं सात्विक वृत्ति को उत्तरोत्तर विकसित करती है । ध्यान शरीर और मन दोनों को शक्तिशाली बनाता है । हमारी बीमारी की उत्पत्ति प्रथमतः हमारे मन में होती है । ध्यान मन की वासनाओं, अवरोधों व संस्कारों को दूर कर चेतना जागृत करता है । इससे व्यक्ति में रोगप्रतिकार क्षमता बढ़ती है। ध्यान और प्राण विद्या शरीर में उच्च ऊर्जा स्तर बनाने में सहायक होते हैं । हमारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012026
Book TitleJaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherJaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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