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________________ मै तो गुरुणो जो महाराज को सेवा में रहकर धार्मिक अध्ययन कहो । माँ को अनुमति से मैं उदयपुर गुरुणी जी महाराज की सेवा में रह गई । गुरुणीजी महाराज की सेवा में रहने पर मुझे अपूर्व आनन्द की अनुभूति हुई । उस समय माता जी महाराज विराज रही थीं, वे वात्सल्यमूर्ति थीं । उनका अनार स्नेह मेरे पर था । उनका सम्पूर्ण जीवन तप और त्याग का पावन प्रतिष्ठान था ! उनके जीवन में ज्ञान और क्रिया की ऐसी समन्विति थीं कि जो देखते ही बनता था । मेरे मन में यह दृढ़ संकल्प था । जब दक्षिण भारत की यात्रा कर गुरुदेव श्री इधर पधारेगें, तभी मैं दोक्षा ग्रहण करूंगी। मैंने अपने हृदय को बात मद्रास वर्षावास में और सिकन्दराबाद में गुरुदेव श्री को निवेदन की । गुरुदेव श्री ने मेरे पर अपार कृपा कर सिकन्दराबाद से विहार कर उदयपुर पधारे। दो हजार से भी अधिक किलो मीटर का विहार पाँच-छः महिने में करना कोई बच्चों का खेल नहीं, गुरुदेव पधारे और बहुत ही उत्साह के क्षणों से सन् १९८० में मेरी दीक्षा उदयपुर में सम्पन्न हुई । मेरा सांसारिक नाम सुन्दर कुमारी था। इसके स्थान पर मेरा नाम रत्न ज्योति रखा गया । यह एक नियम है, जो वस्तु बहुत हो सन्निकट होती है उसे देखना बहुत ही कठिन होता है । जो महापुरुष सन्निकट होते हैं उनके सम्बन्ध में लिखना और कहना बहुत ही कठिन है । क्योंकि सभीम शब्द असीम व्यक्तित्व का उट्टं कन नहीं कर सकते । सद्गुरुणी जी महाराज के सम्बन्ध में मैं क्या लिखूं ! वे विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं । इस संसार में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनमें प्रतिभा का अभाव होता है पर वे प्रतिभा का विज्ञापन करते हैं। कितने ही व्यक्ति वो होते हैं जिनमें प्रतिभा होती है किन्तु प्रतिभा का विज्ञापन नहीं करते । गुरुणीजी महाराज में प्रतिभा है पर वे अपनी प्रतिभा का कभी प्रदर्शन नहीं करती। उन्हें स्वदर्शन में विश्वास है, प्रदर्शन में नहीं । गुरुणी जी महाराज के जो भी सम्पर्क में आता है, वह उनकी तेजस्वी प्रतिभा से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता । आप श्री का आगमों का अध्ययन बहुत ही गहरा है । आगम के रहस्यों को जिस सरलता और सुगमता से आप समझाती हैं। वह कठिन से कठिन विषय भी सहज रूप से समझ में आ जाता है । मैने आप श्री से अनेक आगमों का अध्ययन किया । वस्तुतः आपको प्रतिभा को देखकर सिर नत हो जाता है | आगम ही नहीं जैन दार्शनिक ग्रन्थों का अध्ययन जब आप कराती हैं तो उस विषय की एक-एक कली आप स्पष्ट कर देती हैं । अद्भुत हैं आप में अध्ययन करने की कला । जता, आपकी प्रवचन कला भी बहुत ही अनूठी व चिताकर्षक है। प्रवचन तो सभी करते हैं पर प्रवचन की कला किसी-किसी में होती है । जो शब्द हृदय की गहराई से निकलते हैं । उसमें स्वाभाविकता, सहसरलता होती है । जो उपदेश आत्मा से निकलता है; वह आत्मा को स्पर्श करता है जो शब्द केवल जीभ से ही निकलते हैं वे शब्द कानों तक पहुँच कर ही अटक जाते हैं वे शब्द हृदय को छू नहीं पाते, हृदय को स्पर्श नहीं कर पाते । गुरुणी जी महाराज के प्रवचनों की यह विशेषता है कि 'उनके प्रवचनों में गहरा चिन्तन मनन और अपने अनुभवों का और सत्य का प्रकृष्ट बल है । उनकी वाणी में मधुरता है, नदी की धारा की भाँति उसमें गति है। अग्नि की ज्योति की तरह उसमें तेज है, प्रकाश है, उसमें आपके चिन्तनशील मस्तिष्क का स्पष्ट प्रतिबिम्ब निहारा जा सकता है। आपकी भाषा में माधुर्यं के साथ ही चुटीलापन भी है और विचार प्रवणता भी । आपका हृदय पवित्र है । इसलिए आपकी वाणी में पवित्रता का अजस्र स्रोत प्रवाहित होता है । जिस घर में गन्दगी का अम्बार लगा हुआ हो वहाँ पर कितनी ही अगर बत्तियाँ जलाई जाय तो भी सुगन्धी महक नहीं सकती। जीवन में अपवित्रता है तो वहाँ पर धर्म का तेज प्रकट नहीं हो सकता ३२ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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