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________________ किदवरावकककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककब प्रज्ञा की ज्योतिर्मय मूर्ति ---महासती रत्नज्योति जी teste testastootesteslastegtestestostestest este destacadastesteslasesteste sustasesteste stasjasta este stesa.estastasesteste de destacadesetose stes deste sledece testosteastedete साध्वी रत्न महासती श्री पुष्पवती जी स्थानकवासी समाज की साध्वियों में अग्रगण्य हैं। महासती जी प्रज्ञा की एक ज्योतिर्मय सजीव मूर्ति हैं। उनका सरल स्वच्छ, सहज, सद्व्यवहार प्रत्येक सहदय को सहसा आप्यायित कर देता है। उनका गहरा अध्ययन और सूक्ष्मचिन्तन कठिन से कठिन विषय को भी अन्तर तल तक स्पर्श करवे सरल रूप में प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने ज्ञान को आत्म-साक्ष्य भाव से निहारा है और उसे अपने आचरण में उतारा है। यही कारण है कि ज्ञान की उष्मा ने उन्हें केवल तार्किक नहीं बनाया अपितु श्रद्धा के दिव्य आलोक से आपूरित किया है। महासती जी केवल दार्शनिक ही नहीं हैं अपुति उनके पास साधना और संयम का विशेष बल है । जो भी रिक्त साधन उनके पास जाता है वह भरा हुआ आता है । सन् १९७६ में पुज्य उपाध्याय विश्व सन्त पुष्कर मुनि जी महाराज का महाराष्ट्र से कर्नाटक पदार्पण हुआ। गुरुदेव के आगमन को सुनकर जन-जन के मन में अपूर्व उत्साह का संचार हुआ। मेरे नाना जी देवराजजी बाघमार और मेरे पुज्य पिताजी गुलाबचन्द जी बरडिया और माताजी आनन्दी बाई जो धर्म के जीवन्त रूप हैं। उन्होंने अत्यन्त आल्हादित होते हुए कहा कि हमारा कितना सद्भाग्य है कि गुरुदेव श्री राजस्थान से कर्नाटक में पधार रहें हैं। मैं अपने अभिभावक गणों के साथ दर्शनार्थं पहुँची। प्रथम दर्शन में ही मुझे यह अनुभूति हुई कि गुरु देव के साथ जन्म-जन्म का सम्बन्ध है । मैंने इन महापुरुषों को कभी न कभी देखा है, पर कब देखा यह स्मृति पर जोर देने पर भी मुझे स्मरण नहीं आ रहा था। इस भव में तो नहीं, किसी न किसी भव में तो अवश्य ही देखा है। गुरुदेव श्री गजेन्द्र गढ़ पधारे । प्रवचन के पश्चात् मैं माता जी के साथ दर्शन हेतु पहुंची । मेरी भूआ सद्गुरुणी जी श्री पुष्पवती जी महाराज के पास कुछ समय से धार्मिक अध्ययन कर रही थी। मैंने गुरुदेव से पूज्य महासती जी के सम्बन्ध में जिज्ञासा प्रस्तुत की और देवेन्द्र मुनिजी से यह भी पूछा-आपने दीक्षा कैसे ली ? दीक्षा के सम्बन्ध में महाराज श्री ने जानकारी दी । और मेरी सहज भावना को निहारकर मुझे प्रतिबोध भी दिया कि संसार असार है, कि यह आत्मा अनन्त काल से संसार में परिभ्रमण कर रहा है। दीक्षा एक ऐसा उपक्रम है जिसमें साधक अधिक से अधिक अन्तर्मुखी होकर अपने आपको निहारता है। दीक्षा बुभुक्षु नहीं, मुमुक्षु लेता है। गुरुदेव के उपदेश का असर मेरे पर हुआ। मेरी माँ के संस्कारों का असर मेरे पर पहले से ही था गुरुदेव के उपदेश से वे संस्कार अधिक प्रभावित हो गये। गुरुदेव वर्षा-वास हेतु रायचुर पधारे और वहाँ का यशस्वी वर्षावास सम्पन्न कर गदग पधारे। उधर उदयपुर में मेरी सांसरिक भूआ आशा जी जो साध्वी बनने के बाद किरण प्रभाजी के नाम से विश्रु त हैं। उनकी दीक्षा होने वाली थी. उस सनहरे अवसर पर मैं उदयपर पहुंची। गरुणी जी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य मिला, मेरा हृदय कमल खिल उठा और मन मयूर नाच उठा । मैंने अपनी माँ से यह निवेदन किया कि प्रज्ञा की ज्योतिर्मय मूर्ति | ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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