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________________ HHHHitisatta साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ) HTTPS ၇၇၀၀၀ •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• मेरी जीवन सर्जन सद्गुरुणी जी -दिनेश मुनि dadesadosta dostostestestestostestada se stesstedesteslashdododesestedesbastasadastaseste deste stastastestostestedado de dododododesbostadadesteste destacada desta sadasta desdede ___ सामान्य मानव कहाँ पर जन्म लेता है उसका पालन पोषण किस प्रकार से होता है यह जानने की जिज्ञासा किसी में नहीं होती, पर वही सामान्य व्यक्ति जब अपना जीवन सर्वजनहिताय, सर्वजन सुखाय समर्पित कर देता है तो उसके जीवन का प्रत्येक पहलु जानने के लिए जन-मानस आतुर रहता है। उसका प्रत्येक क्रिया-कलाप जन-जन के लिए प्रेरणादायी होता है । वह प्रकाश स्तम्भ की तरह सभी को मार्ग दर्शन देता है । पथ प्रदर्शन करता है। जिन का जीवन महान् होता है उनके जीवन को शब्दों की फ्रेम में बाँधना बहुत ही कठिन है। वे शब्दों की फ्रेम में बाँधे नहीं जा सकते । उनमें एक नहीं अनेक विशेषताएँ होती हैं, वे सारी विशेषताएँ शब्दों की पकड़ में नहीं आतीं । जब मैं सद्गुरुणी जी परम विदुषी साध्वीरत्न महासती पुष्पवती जी म० के विराट व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व को शब्दों में बाँधने का उपक्रम करता हूँ तब मेरे सामने यही समस्या समुपस्थित होती है। मैं जितना अधिक उन्हें शब्दों में बाँधना चाहता हूँ उससे कहीं अधिक वे बाहर रह जाती हैं । शब्दों के हल्के बाट उनके गुरुतर व्यक्तित्त्व को किस प्रकार बाँध सकते हैं ? | मुझे सद्गुरुणी जी के सम्बन्ध में लिखना है पर कठिनता यह है कि जो व्यक्ति जितना अधिक निकट होता है उसके सम्बन्ध में लिखने में उतनी ही कठिनता है । मैं गुरुणीजी महाराज को अपने बचपन से ही जानता है। दीक्षा के पूर्व सर्व प्रथम उन्होंने मुझे अपने सन्निकट बिठाकर बहत ही प्रेम से दीक्षा के महत्त्व को समझाया और कहा-कि जो तुम्हें जीवन मिला है वह प्रबल पुण्यवानी के पश्चात् मिला है। यह जीवन खेल और कूद में बिताने के लिए नहीं हैं। जीवन के अनमोल क्षण है यदि तुमने इन क्षणों का सदुपयोग कर लिया तो तुम निहाल हो जाओगे । उन्होंने विविध दृष्टान्तों और रूपकों के माध्यम से मुझे यह रहस्य हृदयंगम करा दिया, कि जीवन कूकर और शूकर की तरह गली और कूचमें भटक कर बिताने के लिए नहीं हैं । इस जीवन का उद्देश्य है, नर से नारायण बनना, आत्मा से परों मात्मा बनना और इन्सान से भगवान बनना । सद्गुरुणीजी के उपदेश की छाप मेरे मन पर बहुत गहरी हुई। मैंने मन ही मन में यह दृढ़ संकल्प किया कि पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म० उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म० के पास दीक्षा अवश्य लेनी हैं । मेरी उम्र उस समय बारह-तेरह वर्ष की थी। मेरे पूज्य पिता श्री रतनलालजी मोदी तो पूज्य गुरुदेव के प्रति पूर्ण समर्पित ही थे/है। उन्होंने अपने जीवन के उषाकाल में ही यह नियम ले रखा था कि यदि कोई भी पारिवारिक सदस्य दीक्षा लेना चाहेगा तो मैं इन्कार नहीं होऊँगा। पिता श्री मेरे विचारों के अनुकूल थे। पर मेरे ज्येष्ठ बन्धु श्री हीरालाल जी और ख्यालीलाल जी दीक्षा दिलवाने के पक्षधर नहीं थे । अन्य पारिवारिकजन भी दीक्षा दिलवाने के लिए अन्तरायभूत ही थे। एक पारिवा १८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन HHim www.jaine ?
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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