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________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ) are क्षाएँ समुत्तीर्ण को उनका अध्ययन जितना गहरा सम्पादन भी किया है। उनकी तेजस्वी प्रतिभा के है उतनी ही उनमें नम्रता है। संदर्शन उन ग्रन्थों में सहज रूप से किया जा “विद्या ददाति विनयं" सकता है। हमें हार्दिक प्रसन्नता है कि उपाध्याय पूज्य __यह युक्ति उनके जीवन में पूर्ण रूप से चरितार्थ गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के मंगलमय आशीर्वाद से आपके लघु भ्राता श्री देवेन्द्र मुनिजी __बहुत सारे व्यक्ति अध्ययन करने के पश्चात् म० ने साहित्य के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किया सेवा से जी चुराते हैं । वे सोचते हैं सेवा करना और पूना सन्त सम्मेलन में आचार्य सम्राट श्री सामान्य व्यक्तियों का कार्य है पर उन्हें यह पता आनन्द ऋषि जी म० ने उपाचार्य पद प्रदान कर नहीं कि सेवा का कार्य सामान्य व्यक्तियों का नहीं संघ में सर्वत्र प्रसन्नता का संचार किया, यह हमारे किन्तु विशिष्ट व्यक्तियों का कार्य है। सेवा एक 1 ऐसा विशिष्ट धर्म है जिससे तीर्थंकर नाम कर्म का लिए बहुत ही गौरव की बात है। 1 भी अनुबन्धन हो सकता है । मैंने देखा है कि महा महासती पुष्पवती जी ने दीक्षा के ५० बसन्त सती पूष्पवती जी जहाँ ज्ञानी और ध्यानी हैं वहाँ यशस्वी रूप से सम्पन्न किए हैं, उस उपलक्ष्य में । सेवा में भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने माताजी प्रभावती अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा रहा है । मैं इस जी आदि की खुब सेवा कर एक आदर्श उपस्थित सुनहरे अवसर पर मंगल कामना करता हूँ कि किया है। महासती पुष्पवती जी ने दशवैकालिक महासतीजी युग-युग तक स्वस्थ और प्रसन्न रहकर पुष्प पराग, सती का शाप, किनारे-किनारे आदि जैन धर्म की ज्योति को जगमगाती रहें । अनेक ग्रन्थ लिखे हैं और अनेक ग्रन्थों का शानदार ALUNAN कककककतावनगलकककककचनकवलवजककककककककर खिल रहे हैं । महक रहे हैं। उद्यान की शोभा को एक महकता पुष्प द्विगुणित कर रहे हैं-ये पावन पुष्प ! आखिर यह उद्यान है किसका ? क्या कोई -साध्वी सुधाकुमारी किसी धनी श्रेष्ठी का है अथवा किसी अन्य मनुष्य ...seksi.bedeskedesbaleshe sleel sexdesisesibeesbabetesesededesesesealeakedeshe का ?-अरे ! किस उद्यान की बात है ? क्या यह - जो बाहर में खिल रहा है, दमक रहा है ? नहीं.... __ अहा ! कितना सुन्दर उद्यान है ! कितनी रम- नहीं ! यह तो कृत्रिम बगीचा है। यहाँ तो प्रतिपल, णीयता है। कितना नयनाभिराम आराम है । क्षण-क्षण में पूष्प सौंदर्यहीन होते जा रहे हैं, अपनी सर्वत्र सुखद एवं शान्त वातावरण ! भीनी-भीनी सूवास से हीन बनकर भूमिसात् हो रहे हैं। चार मधुर सुवास सुरभित हो रही है । उद्यान का कण- दिन इठलाकर अपनी चमक-दमक को छोड़ते हुए, कण महक रहा है। मनमोहक सुन्दर से सुन्दरतर जीवन साथी से बिछुड़ते जा रहे हैं। इनसे क्या फल-फूलों से लदे हुए वृक्ष हैं। कहीं चमेली, कहीं शोभा हो रही है उद्यान की ?-तो फिर किसका केवड़ा और कहीं गुलाब आदि चित्ताकर्षक पुष्प उद्यान है ? एक महक ता पुप्प | १३ +M.SAN
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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