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________________ తండండించడం साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि महा- द्वारा ही मार्ग दर्शन नहीं करते पर उनका आदर्श सती पुष्पवती जी का अभिनन्दन ग्रन्थ मुद्रित हो रहा जीवन ही जन-जन के लिए मूक प्रेरणादायी होता है। उन्होंने दीक्षा के ५० बसन्त यशस्वी रूप से है। उनके तप, त्याग का असर सुदूर प्रान्तों में रहने संपन्न किए हैं । मैं अपनी ओर से और अपने गुरुदेव वाले साधकों को भी मार्ग दर्शन प्रदान करता है। तपस्वी रत्न श्री समतिप्रकाश जी म० की ओर से प्राणी मात्र के मन में प्रेम का संचार करता है। यह मंगल कामना करता हूँ कि आप पूर्ण स्वस्थ रहें और उनके सन्निकट पहुंचने पर कर्त्तव्य की प्रेरणा और खूब धर्म की प्रभावना करें। प्रदान करता है। जो भी उनके प्रति श्रद्धा से नत होता है, वह भव बन्धन से मुक्त होता है । . ____ मुझे महासती जी के प्रथम दर्शन का सौभाग्य कब मिला? वह तिथि तो स्मरण नहीं है पर जब 1. एक बहुमुखी व्यक्तित्व भी मिला, मैं उनके दिव्य प्रभाव से प्रभावित हआ। का अभिनन्दन सद् गुरुणीजी श्री शीलकुँवरजी म. के पावन उप देश को श्रवण कर मेरे में वैराग्य भावना उद्बुद्ध --श्री हीरा मुनिजी म. हुई और मैंने महास्थविर श्री ताराचन्द जी म. के चरणारविन्दो में आहती दीक्षा अंगीकार की, दीक्षा 800000999999999504999999999999999999SE लेने के पश्चात गुरुदेव श्री के साथ जब हम उदयपुर - स्थानांग सूत्र में चार प्रकार के पुष्पों का वर्णन पहुँचे, तब वहाँ पर परम विदुषी महासती श्री है । कितने ही पुष्प दिखने में बड़े ही सुन्दर दिखलाई सोहनकुंवरजी म. अपनी शिष्याओं के साथ विराज देते हैं किन्तु उन पुष्पों में गन्ध नहीं होती, उनमें रही थी। मेरे से पहले पुष्पवतीजी म० की दीक्षा सुगन्ध का पूर्ण अभाव रहता है। कितने ही पुष्प हो चुकी थी । गुरुदेव श्री उन्हें अपनी मधुर वाणी दिखने में सुन्दर नहीं दिखलायी देते, पर उनमें में हित शिक्षा प्रदान करते थे और मैं भी पास में भीनी-भीनी मधुर महक होती हैं । कितने ही पुष्प न बैठा-बैठा उस शिक्षा को सुनता था। दिखने में सुन्दर होते है और न उनमें गंध ही होती मह ती जी के लघु भ्राता श्री देवेन्द्र हैं और कितने ही पुष्प दिखने में भी सुन्दर होते हैं मुनि जी ने पूज्य गुरुदेव श्री के पास सन् १९४० में और उसकी भीनी महक भी दिल और दिमाग को दीक्षा ग्रहण की। देवेन्द्रमुनिजी का और मेरा अध्यताजगी प्रदान करती है । परम विदुषी साध्वीरत्न यन साथ-साथ में चलता रहा, देवेन्द्र मुनि जी के पुष्पवतीजी चतुर्थ प्रकार के पुष्प है। उनकी दीक्षा के पश्चात् उनकी पूज्यनीया मातेश्वरी ने भी आकृति सुन्दर है तो प्रकृति भी उतनी ही मधुर है। दीक्षा ग्रहण की और वे महासती प्रभावती जी के वे यथानाम तथागुण हैं। आपका जीवन नम्रता, नाम से विश्रुत हुई। महासती प्रभावतीजी को सरलता, सादगी, स्नेह और सद्भावनाओं से ओत- आगम, साहित्य और थोकड़े साहित्य का गहरा ज्ञान प्रोत हैं। था। इस प्रकार एक ही घर से माता, बहिन और कहा जाता है-काला कलूटा लोहा भी पारस भाई का दाक्षा सम्पन भाई की दीक्षा सम्पन्न हुई। के सम्पर्क से सोना बन जाता है। वैसे ही सामान्य महासती पुष्पवतीजी ने छोटी उम्र में दीक्षा मानव भी सन्त और सतियों की कृपा से महामानव लेकर प्रतिभा की तेजस्विता से उन्होंने संस्कृत, बन जाता है । सन्त और सती वृन्द का जीवन सद्- प्राकृत, हिन्दी भाषाओं का गहरा अध्ययन किया। गुणों का पावन प्रतिष्ठान है। वे केवल उपदेशों के आगम, न्याय, व्याकरण, दर्शन आदि उच्चतम परी १२ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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