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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ मेरठ में लम्बे समय तक साथ रहने का अवसर मिला। उनके द्वारा लिखित और सम्पादित साहित्य को भी मैं पढ़ता रहा हूँ । उनका अपार स्नेह और सद्भावना व श्रद्धा मुझे मिलती रही। उनसे मुझे यह ज्ञात हुआ कि साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी दीक्षा के पच्चास बसन्त पार कर रही हैं । दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के सुनहरे अवसर पर अभिनन्दन ग्रन्थ का आयोजन हो रहा है । यह पढ़कर मुझे अतीत की सारी स्मृतियाँ चलचित्र की तरह स्मृति पटल पर चमकने लगी । मेरी इस पावन प्रसंग पर यही मंगल कामना है कि महासतीजी पूर्ण स्वस्थ और प्रसन्न रहकर जिनशासन की खूब प्रभावन करें । ऐसी प्रतिभासम्पन्न साध्वियों पर ही समाज को गौरव है । मेरा हार्दिक आशीर्वाद है कि वे खूब अपना आध्यात्मिक विकास करें। तथा समाज को सतत् मार्गदर्शन देती रहें । कककककव तप और त्याग की : FF FF FF FF जीती जागती प्रतिमा - उपाध्याय विशाल मुनिजी म. အားအက်ားက်ာာာာာာာာာာာာ भारतवर्ष की महान संस्कृति एवं उज्ज्वल परम्परा में नारी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । वह परिवार समाज और धर्म के क्षेत्र में अपनी महकती भूमिका निभाती रही है, उसमें विविध गुण है, वह ममतामयी मां है, सहज स्नेह बिखेरती हुई भगिनी है | श्रद्धा स्निग्ध कन्या है, और तनमन को समर्पित करने वाली सहधर्मिणी भी है । वैदिक काल में गार्गी और मैत्रेयी ऐसी विशिष्ट नारियाँ रही हैं जिन्होंने जीवन के सभी सुखों का परित्याग कर एक उज्ज्वल आदर्श उपस्थित किया था । तो भगवान महावीर के युग में हजारों महिलाएँ भिक्षुणी बनकर तप और त्याग के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया । नारी का जीवन अतीत काल से ही उच्च आदर्श उपस्थित करता रहा है । भौतिकवाद की आँधी ने नारी की स्वर्णिम छवि को धूमिल कर दिया है, चलचित्रों में नारी का विकृत रूप प्रस्तुत किया जाने लगा हैं । चाहे कोई भी विज्ञापन हो वहाँ नारी का अर्धनग्न चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है । जो उसकी गौरव गरिमा के प्रतिकूल है । प्रसन्नता है जैन धर्म में नारी का एक विशिष्ट रूप अंकित है । वह नारायणी है तप और त्याग की जीती-जागती प्रतिमा है । आधुनिक युग में भी जैन श्रमणियों का स्थान उच्चतम रहा है । परम विदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी नारी की महिमा को बढ़ाने वाली साध्वी हैं उन्होंने संयम साधना और तपः आराधना कर अपने जीवन को चमकाया है । मैंने सर्व प्रथम आपको नासिक में देखा । पूना सन्त-सम्मेलन की ओर हमारे कदम तेजी से बढ़ रहे थे। जब हम नासिक पहुंचे तब हमें यह समाचार प्राप्त हुआ कि उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म० अपने शिष्य समुदाय सहित नासिक पधार रहे हैं । उपाध्याय श्री जी के दर्शन हम पहले मेरठ में कर चुके थे, उनके चरणों में अनेक बार बैठ चुका था । उनकी हमारे पर असीम कृपा रही है इसलिए हम उनके दर्शन हेतु वहाँ रुक गये। दूसरे दिन महासती पुष्पवतीजी भी वहाँ पर पधार गयी। मुझे ज्ञात हुआ कि आप उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी की ज्येष्ठ भगिनी हैं तो बहुत ही प्रसन्नता हुई । आप से वार्तालाप कर हृदय बहुत ही आल्हादित हुआ । पूना सन्त सम्मेलन में पुनः आपसे मिलने का अवसर मिला । मैंने देखा, महासतीजी ज्ञान गरिष्ठ और वरिष्ठ हैं, उनमें आगम, दर्शन और तत्त्व सम् बन्धी गम्भीर ज्ञान है किन्तु ज्ञान का उनमें अहंकार नहीं है । तप और त्याग की जीती जागती प्रतिमा | ११ www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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