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________________ कावीबन्न पुष्पवती अभिनन्दन गन्ध H ROO HINATINEKHORTHRIRMIRROR ISKAnemiaNCAREERUARMATIPREGNENOUPermarinecte : 2 THESEREE STORI -- म D First ................... "बिन्दुध्यान" और "महालय" अथवा "लयसिद्धियोग समाधि" का दिग्दर्शन है। 31 यही ध्यानयोग की प्रक्रिया है। 'हठयोग' में ८४ आसनों के साथ-साथ प्राणायाम का स्वरूप स्पष्ट करके "महाबोध समाधि' और "ज्योतिध्यान" का दिग्दर्शन कराया है।31 प्राणायाम के माध्यम से ही ध्यानयोग की प्रक्रिया स्पष्ट की है। ____ 'राजयोग' साधना पद्धति में अष्टांगयोग का सरल सुबोध स्वरूप प्रतिपादन किया है । वह सहज प्रक्रिया है । इनसे मन की एकाग्रता बढ़ती है । इस अवस्था को ही 'ब्रह्मध्यान" कहा है । इन सभी साधनाओं के मूल में मन की एकाग्रता को प्रधानता दी गई है। यही ध्यानयोग का स्वरूप है। भारतीय इन साधना पद्धतियों को आधुनिक युग में नया रूप अपनी-अपनी स्वानुभूति के अनुसार दे रहे हैं। उनमें से कुछ नमूनों के तौर पर आपके सामने रख रहे हैं, जैसे33 कि रामकृष्ण परमहंस-कर्मयोग और भक्तियोग को ही प्रेमयोग के माध्यम से ध्यानयोग का स्वरूप स्पष्ट किया है । उनकी दृष्टि से प्रेम के द्वारा ही मन को एकाग्र किया जा सकता है। यही ध्यानयोग है। स्वामी विवेकानन्द-ईश्वर दर्शन का परम साधन मानव सेवा है । उनके कथनानुसार कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, प्रेमयोग, वैराग्ययोग अथवा राजयोग का समन्वय ही मानव सेवा है। यही ईश्वर प्राप्ति का अपूर्व साधन है । मानव सेवा ही ध्यानयोग है। महात्मा गाँधी--(१) सत्य, (२) अहिंसा, (३) ब्रह्मचर्य, (४) इन्द्रियनिग्रह, (५) अस्तेय, (६) अपरिग्रह, (७) स्वदेशी, (८) अभयव्रत, (६) अस्पृश्यता, (१०) देशी भाषाओं के माध्यम से शिक्षा और (११) शरीरबल ये ग्यारह सूत्र उनके ध्यानयोग के साधन हैं। उन्होंने 'सत्याग्रह' के माध्यम से आध्यात्मिक साधना का स्तर नई शब्दावली में समझाने का प्रयत्न किया है। उनको दृष्टि से सत्य की साधना ही ध्यानयोग साधना है। सत्यशील साधक ही "प्रार्थना" के माध्यम से ध्यान की अवस्था में पहुँचता है । मन को एकाग्र करने को यह श्रेष्ठ प्रक्रिया है । यही ध्यानयोग है। रवीन्द्रनाथ टैगोर-साधना पद्धति का माध्यम "कविता" और "कला" को माना है। काव्यकला को ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया है। अतः काव्य सौष्ठव से ही ध्यानयोग का स्वरूप स्पष्ट किया है। उनका कथन है कि वैराग्य मुक्ति का साधन नहीं, किन्तु अनुराग के पाश से ही मुक्ति के आनन्द का अनुभव होता है। 'प्रेम' को भक्तियोग का अंग माना है। भगवान के पास पहुँचने में "अनुराग' हो साधन है । यही ध्यानयोग है। - अविन्द-आत्मा के साथ एकाकार होने की क्रिया ही योग है। विशेष शब्दावली में कहें तो 'विज्ञान' और 'कला' ही योग है। 'अतिमानस' अवस्था ही ध्यानयोग का स्वरूप है। अतिमानस अवस्था का रहस्य है कि जीवन में दिव्यशक्ति की ज्योति, शक्ति, आनन्द और सक्रिय निश्चलता को प्रज्वलित करना । उन्होंने इसे ही 'अध्यात्मयोग' अथवा 'पूर्णयोग' की संज्ञा दी है। पूर्णरूपेण स्वयं को प्रभु के समक्ष अर्पित करना ही 'पूर्णयोग' है । इसमें अशुभ विचारों को स्थान नहीं होता। सिर्फ शुभ विचारों का चिन्तन होता है । शुभ विचारों का चिन्तन ही ध्यानयोग है। ABHHIR PATHA ३३६ | सातवां खण्ड : भारतीय संस्कृति में योग ... ducation international -re ForPnhate saniy www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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