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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
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पुटुिं वरेज्ज तुहिँ
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---प्रवर्तक श्री उमेश मुनि “अणु" जीवणसीहस्स गिहे, पेमवईइ उयराउ पुण्णवई ।
सिरि-सुन्दरित्ति जाया, कुलंमि कोलइ विहिसुयाव्व ॥१॥ श्रीमान् जीवनसिंह जी (बरडिया) के घर में (माता) प्रेमवती (या प्रेम देवी) के उदर से लक्ष्मी के सदृश पुण्यशालिनी सुन्दरी (नाम की बालिका) का जन्म हुआ। जो ब्रह्मा की पुत्री (सरस्वती) के समान (पितृ) कुल में क्रीडा करती रही।
ताराचंद-महाथेर गणे अज्जा सुसोहणी।
समणी-संघ-अज्झक्खा, सोहणकुँवरी वरा ॥२॥ महास्थविर (पूज्यपाद) श्री ताराचंद जी महाराज के गण में भली-भाँति शोभायमान होने वाली या (स्व-पर के गुणों को) भली-भाँति शोधन करने वाली श्रमणीसंघ की अध्यक्षा श्री सोहन1. कुंवरजी श्रेष्ठ आर्या (साध्वी) थी।
सा ताअ सीसणी जाया, पुप्फवई जसोहरा ।
अज्झयण-रया सेठें जोइं धरेइ साहुणी ॥३॥ वह (बालिका सुन्दर कुमारी) उन (महासती श्री सोहनकुंवरजी) की “पुष्पवती" नाम से यशस्विनो शिष्या हो गयो और (वह पुष्पवतो) साध्वी अध्ययनरत (होती हुई) श्रेष्ठ (ज्ञान) ज्योति __ को धारण करती है।
पहावईअंब-अज्जाए, णामं उज्जोयए सुहा।
संघे विक्खायसाहुस्स, सा देविदस्स अग्गया ॥४॥ वह (महासती श्री पुष्पवती) श्रमणसंघ में विख्यात साधु श्री देवेन्द्र मुनिजी की शुभा अग्रजा (साध्वी बनी हुई अपनी) माता श्री प्रभावतीजी आर्या के नाम को उज्ज्वल करती है।
____ सीसणी-तारया-मज्झे, सरदिंदुव्व सोहइ ।
वक्खाणं च करती सा, वियरंतीव चंदिमं ॥५॥ वह (पुष्पवती सती) शिष्या रूप तारिकाओं के बीच में व्याख्यान देती हुई (ज्ञान) चन्द्रिका फैलाती हुई-सी शरद् ऋतु के चन्द्र समान शोभित होती है।
ताए महव्वयाणं च, चरण-करणाण य । मोक्खपहे ठियाए हु, सयाणुमोयणा मम ॥६॥
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| ८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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