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________________ साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ । निश्चय ही मोक्ष-मार्ग में स्थित उन (साध्वी) के महाव्रतों की ओर चरण-करण रूप गुणों __ की सदा ही मेरी अनुमोदना है। माणट्ठाणं गुणा चेव, जहत्थ-वाइ सासणे । थीणं दा पुरिसाणं वा, पक्खवाओ न कम्हिवि ॥७॥ यथार्थवादी (जिनेश्वरदेव) के शासन में स्त्री या पुरुष के गुण ही आदर के कारण या स्थान है। (इस विषय में) किसो के भी प्रति पक्षपात नहीं है। धम्न-पहावणा ताए, जण-उद्धारणा तहा । बराभिणंदणिज्जा हि, वुढिगा होउ सासणे ॥८॥ उसी प्रकार उन (साध्वी जी) की धर्म-प्रभावना और लोकोद्धार की क्रिया श्रेष्ठ और अभिनन्दन के योग्य है । वास्तव में (उनकी वे क्रियाएं) (श्री जिन) शासन में वृद्धि करने वाली होवें। जिण-संघ-पुंडरीए, सा य महयरी पिवेज्ज सुगुणरसं । पुट्ठि बरेज्ज तुट्ठि, लभेज्जओ सासय-सिव-सुहं ॥६॥ वे (साध्वी रूपी) मधुकरी जिनशासन रूपी पुण्डरीक-कमल में श्रेष्ठ गुणरूपी मकरंद का पान करें, जिससे (वे) (आत्म-गुणों की) पुष्टि और परम तुष्टि का वरण करें। तथा मोक्ष के शाश्वत् सुख को प्राप्त करें। ఆలిండంటంతంత చింతించండంటణండదండడంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంది प्रबल प्रतिभा की धनी ARCORDERCIETIERCISESEDERESCRSEPTVINDERGEDEDEPENSCREENCHCECRETOISEDEDESESESEGCDEEDIGITICESCEDESCHEDEODESEE DSSSSODEDEOSE • प्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचन्द जी महाराज परम विदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी जी महाराज और कविजी महाराज सम्मेलनों में श्रमणसंघ की एक ज्योतिर्मय व्यक्तित्व की धनी अनेक बार साथ रह चुके थे। तथा जयपुर में सन् साध्वी हैं। सन् १९६४ में अजरामरपुरी अजमेर १६५५ में एक साथ वर्षावास भी कर चुके थे। कवि में शिखर सन्त सम्मेलन का भव्य आयोजन था। इस श्री के साथ बहुत ही गहरा उनका स्नेह सम्बन्ध सन्त सम्मेलन में भारत के विविध अंचलों से सन्त था। कविश्री ने उनका परिचय दिया और कहा भगवन्त पधारे थे। मैं भी उस सम्मेलन में प्रतिभा ये मंत्री पुष्कर मुनिजी महाराज हैं। ये इनके गपत्ति उपाध्याय कविरत्न श्री अमरचन्द्रजी महाराज शिष्य देवेन्द्र मुनि हैं। उसी समय कुछ साध्वियाँ के साथ अपने शिष्य अमर मुनि के साथ पहुंचा। दर्शन हेतु वहाँ पर पधारी । कविश्री ने कहा ये इसके पूर्व जितने भी सम्मेलन हुए उसमें देवेन्द्र मुनिजी की माता प्रभावतीजी हैं और ये नहीं पहुँच सका था। प्रथम बार पूज्य भगवन्तों के देवेन्द्र मुनिजी की बहिन पृष्पवतीजी हैं। प्रथम दर्शन का सौभाग्य मुझे मिला। इस सम्मेलन में परिचय में ही मैं उनके सौम्य और तेजस्वी चेहरे अनेक तेजस्वी सन्त पधारे थे । उनमें एक उपाध्याय को देखकर प्रभावित हुआ। श्री पुष्कर मुनिजी महाराज भी थे। पुष्कर मुनि वार्तालाप में मुझे यह अनुभव हुआ कि महासती :: प्रबल प्रतीभा की धनी | | REFERERNARENDI
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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